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अल्पसंख्यकों को भरोसा खो रहा है प्रशासन

उदयपुर के हाजी शफी मोहम्मद सवाल करते हैं, कि हम कब तक दहशत में रहेंगे। क्या रास्ता है हमारे सामने। अधिकांश मुस्लिम युवक छोटा काम करते हैं, दो दिन काम पर ना जाएं, तो खाने के लाले पड़ जाते हैं

अल्पसंख्यकों को भरोसा खो रहा है प्रशासन
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राजस्थान से लौटकर भारत शर्मा

नई दिल्ली। उदयपुर के हाजी शफी मोहम्मद सवाल करते हैं, कि हम कब तक दहशत में रहेंगे। क्या रास्ता है हमारे सामने। अधिकांश मुस्लिम युवक छोटा काम करते हैं, दो दिन काम पर ना जाएं, तो खाने के लाले पड़ जाते हैं, पर दहशत ऐसी है, कि काम पर जाएं, तो पुलिस के पकड़ने का डर बना रहता है।

उदयपुर के हाजी शफी पेशे से सेवानिवृत्त इंजीनियर हैं। राजस्थान के दौरे पर गई भूमि अधिकार आंदोलन की टीम के सामने उन्होंने अपना दर्द रखा। इस टीम में दो सांसद, एक विधायक, सर्वोच्च न्यायालय के वकील, सामाजिक और किसान आंदोलन के कार्यकर्ता थे। टीम के सामने बड़ी संख्या में मुस्लिम युवक आए थे। हाजी शफी मोहम्मद जिस घटना का जिक्र कर रहे हैं, वह राजसमंद की घटना के बाद उदयपुर जैसे शांत शहर में घटी। 6 दिसम्बर को राजसमंद में अफराजुल की हत्या के बाद 8 दिसम्बर को उदयपुर में मुसलमानों ने रैली निकाली। इसके जबाव में हिंदूवादी संगठनों ने भी रैली निकाली, जिसमें जिला अदालत पर भगवा झंडा फहराने की घटना सामने आई। अब तक सब ठीक था, पर 14 दिसम्बर के बाद मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी शुरु हो गई।

आरोप लगा, 8 दिसम्बर की रैली में युवाओं ने भड़काउ नारे लगाए थे। शफी मोहम्मद बताते हैं, उन्हें पुलिस के कुछ अधिकारियों ने बताया था, कि 10 लोगों की सूची सीआई कार्यालय से आई है, पर जिन लोगों को पकड़ा जा रहा है, उसमें उससे बाहर के लोग भी हैं। पुलिस की गिरफ्त में रहकर आए मोहम्मद शोएब बताते हैं, कि वे रैली में थे, पर नारे नहीं लगाए, जो नारे लगे हैं, उसका वीडियो है, देखा जा सकता है। शोएब 6 दिन जेल में रहे, इस दौरान थाने में उनके साथ पिटाई भी की गई और गाली गलौच भी की गई।

शोएब युवा हैं, पुलिस की इस ज्यादती का विरोध नहीं कर सकते, क्योंकि उन्हें डर है,कि उन्हें किसी दूसरे मामले में फंसा दिया जाएगा। अब्दुल सलाम मक्कड समाजसेवी हैं, उनका कहना है, पहले अगर किसी मामले में वे थाने जाते थे, तो उनकी बात सुनी जाती थी, अब डांटकर भगा दिया जाता है।

उदयपुर में जनसुनवाई में आए अधिकांश अल्पसंख्यक युवाओं को देखकर लगता है, कि सरकार के साथ प्रशासन पर भी उनका भरोसा कम हो रहा है। आला अफसरों को जिस निष्पक्षता के साथ काम करना चाहिए, उसमें वे सफल नहीं हो पा रहे हैं। यह संघ का उसी तरह का प्रयोग है, जो पहले गुजरात में किया गया। वहां भी पहले प्रशासन को सांप्रदायिक किया गया, जिससे अल्पसंख्यक खुद को असहाय महसूस करने लगे। उदय़पुर के युवाओं का भी यही दर्द है, वे कहते हैं, थाने जाने पर उनसे इस तरह बात की जाती है, जैसे वे आतंकवादी हों।


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