प्रवासी पक्षियों ने भी महसूस किया सुकून युद्धविराम से
दो मुल्कों-हिन्दुस्तान और पाकिस्तान को बांटने वाली अंतरराष्ट्रीय सीमा की जीरोलाइन से मात्र कुछ गज के फासले पर स्थित इस वर्ड सेंचूरी में इस बार कुछ अलग ही नजारा

--सुरेश एस डुग्गर--
घराना वर्ड सेंचूरी (आरएस पुरा-जम्मू सीमा) । दो मुल्कों-हिन्दुस्तान और पाकिस्तान को बांटने वाली अंतरराष्ट्रीय सीमा की जीरोलाइन से मात्र कुछ गज के फासले पर स्थित इस वर्ड सेंचूरी में इस बार कुछ अलग ही नजारा है। झुंड के झुंड प्रवासी पक्षियों के जमा हुए हैं। कुछ क्षण के लिए वे हवा में उड़ान भरते हैं और फिर पुनः वहीं लौट आते हैं। उनकी चहचहाट से यह महसूस किया जा सकता है कि वे सीमा पर चल रहे युद्धविराम से सुकून पा रहे हैं।
आग उगलने वाली जम्मू कश्मीर की सीमाओं पर जम्मू से करीब 34 किमी की दूरी पर भारत पाक सीमा रेखा से करीब 600 मीटर पीछे स्थित इस घराना बर्ड सेंचुरी का अस्तित्व अभी तक खतरे में माना जा रहा था। ऐसा इसलिए था क्योंकि जहां पाकिस्तानी गोलीबारी निरंतर प्रवासी पक्षियों के अमन में खलल डाल रही थी वहीं सीमांत क्षेत्रों में दबाई गई बारूदी सुरंगों के विस्फोट उन्हें शांति से यहां रूकने नहीं दे रहे थे।
मगर अब कुछ ऐसा नहीं है। पिछले 16 साल से जारी सीजफायर के कारण अमन-चैन का आनंद प्रवासी पक्षी भी उठा रहे हैं और इस बार उनकी तादाद को देख यह लगता है जैसे वे अपने अन्य साथियों को संदेशें भिजवा रहे हैं कि:‘अमन ने पांव पसारे हैं आप भी चले आओ।’
अभी तक सीमा पर बने हुए तनाव का परिणाम इन प्रवासी पक्षियों को भी भुगतना पड़ रहा था। चीन, अफगानिस्तान, रूस, साईबेरिया इत्यादि के शीत प्रदेशों से आने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्या अभी तक नगण्य ही थी जिसमें होने वाली बढ़ौतरी गांववासियों के साथ-साथ सैनिकों में भी खुशी ला रही है।
असल में उनकी शांति में पाक गोलीबारी लगातार खलल डालती रही थी। ‘16 साल पहले पाक सैनिकों ने तारबंदी को रूकवाने की खातिर घराना बर्ड सेंचुरी को निशाना बना मोर्टार दागे थे,’ सीमा सुरक्षा बल के अधिकारियों ने इस संवाददाता को बताया था जो इस बर्ड सेंचुरी के दौर पर था। यह सीजफायर की घोषणा से दो दिन पहले की बात थी। इतना जरूर था कि इस बार इस वर्ड सेंचूरी में पक्षी जरा जल्दी ही आ गए थे क्योंकि सर्दी जल्दी ही आरंभ हो गई थी।
हालांकि सीजफायर के कारण पक्षियों को जो सुकून मिला है वह गांववाले भी महसूस करते हैं। तभी तो गांववालों को सरकार पर भी गुस्सा है। सरकार की ओर से इस बर्ड सेंचुरी की कोई देखभाल नहीं हो रही है। नतीजा यह है कि कभी चार से पांच वर्ग किमी क्षेत्र में फैला बर्ड सेंचुरी का क्षेत्रफल अब घट कर एक वर्ग किमी रह गया है जबकि पानी कमी के कारण पक्षियों को चारे की कमी भी हो गई है। ‘पानी की कमी से कीचड़ हो गया है। और कीड़े मकौड़े तथा मछलियों की कमी के कारण भी पक्षियों के लिए इस बार खाने की समस्या उत्पन्न हो रही है,’घराना गांव के प्रेमलाल का मत था।


