माइक्रो फाइनेंस कंपनी के मकड़जाल में फंस रहे भोले-भाले ग्रामीण
जिले में एक बार फिर माइक्रो फाईनेंस कंपनी का जाल तेजी से फैलने लगा

जांजगीर। जिले में एक बार फिर माइक्रो फाईनेंस कंपनी का जाल तेजी से फैलने लगा है। खासकर इनकी नजर स्व सहायता समूहों पर गहरी है। जो इस वर्ग की महिलाओं पर डोरे डाल अपनी लच्छेदार योजनाओं से प्रभावित करने के बाद कर्ज देकर मनमाना ब्याज वसूल रहे है। इन पर प्रशासन की नजर भी अब तक नहीं पड़ पाने से कारोबार फलफूल रहा है। खास बात यह भी कि ये कंपनियां स्थानीय बेरोजगार युवकों को एजेंट के रूप में नियुक्त कर उन्ही के माध्यम से कारोबार फैलाने में लगे है।
स्व सहायता समूह की कल्पना इस तर्ज पर हुई है कि उन्हें छोटे-छोटे लोन के जरिए कोई भी छोटा सा बिजनेस, जिसमें उन्हें पैसा मिल सके और वो घर चला सके। माइक्रो फाइनेंस की मदद से लोगों को उनके पैरों पर खड़ा करने के उद्देश्य से इस बात की नींव रखी गई है। देश में टेलेंट की कोई कमी नहीं है, बस कमी है तो उन्हें सही राह दिखाने की। किसी भी राष्ट्र के लिए इससे ज्यादा सम्मान की बात कुछ नहीं हो सकती कि उनकी जनता उत्पादक है। स्व सहायता समूह तथा माइक्रो फाइनेंस की अवधारणा यहां तक तो ठीक है, लेकिन जब आर्थिक सहयोग के नाम पर यही माइक्रो फाइनेंस कंपनियां भोलेभाले ग्रामीणों को लूटने लगे तब यह पूरी अवधारणा धरी की धरी रह जाती है। वर्तमान के हालात देखे जाएं तो माइक्रो फाइनेंस कंपनियां लूट पर उतारु नजर आ रही है। यह कंपनियां समूहों को छोटी-छोटी रकम कम अवधि के लिए ऋण के रूप में मुहैया कराती है। इन ऋण के एवज में ब्याज वसूलने में कंपनियां ग्रामीणों के कम पढ़े-लिखे होने के साथ नियमों की अज्ञानता का बखूबी फायदा उठाते हुए दोगुने से भी ज्यादा रकम ब्याज के बतौर वसूल रही है। जानकारी के अभाव में ग्रामीण माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के हाथों लूट का शिकार हो रहे हैं।
प्रशासन बना हुआ है अंजान
गली चौराहों में फैले माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के बारे में प्रशासन को कुछ भी पता नहीं है। किसी भी प्रशासनिक अधिकारी के पास इन कंपनियों से संबंधित प्रश्न का जवाब नहीं है। इतना ही नहीं जिले में कितनी कंपनियां काम कर रही है, इसकी भी जानकारी नहीं है। जानकारों के अनुसार फाइनेंस से संबंधित कंपनियों को काम प्रारंभ करने से पहले प्रशासन को कार्य की प्रकृति तथा कार्यक्षेत्र से संबंधित जानकारी उपलब्ध करानी होती है, लेकिन जिले में ऐसा नहीं किया गया है।
मोटी कमीशन के लालच में एजेंट
जिले में संचालित माइक्रो फाइनेंस कंपनियों द्वारा भोलेभाले ग्रामीणों को फांसने के लिए कुछ लोगों को अपना एजेंट नियुक्त किया गया है। इन एजेंटो के चंगुल में फंसे समूह के सदस्य बताते हैं कि छह माह के लिए 25 हजार रुपए का लोन दिलाने के एवज में एजेंट ढाई हजार रुपए लेते हैं और कंपनियों द्वारा ब्याज के रूप में साढ़े बारह हजार रुपए लेते हैं। कंपनी से जुड़े लोग बताते हैं कि इन एजेंटों को प्रति ऋण प्रकरण में पांच सौ रुपए से दो हजार रुपए तक का कमीशन दिया जाता है।


