कर्नाटक का संदेश : लोकतंत्र में कोई अजेय नहीं होता
कांग्रेस नेतृत्व के ये संदेश बताते हैं कि यह पार्टी भविष्य में भी जनहित की सकारात्मक राजनीति ही करेगी

- संदीप सिंह
कांग्रेस नेतृत्व के ये संदेश बताते हैं कि यह पार्टी भविष्य में भी जनहित की सकारात्मक राजनीति ही करेगी। कांग्रेस यह कभी नहीं भूल सकती कि देश की जनता ने लड़कर आजादी हासिल की और लाखों कुर्बानियों के बाद एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समावेशी भारत का निर्माण हुआ है। देश का यह गौरवशाली इतिहास ही कांग्रेस की विरासत है।
कर्नाटक की जनता ने पिछले 34 साल का सबसे बड़ा जनादेश देकर 135 सीटों के ऐतिहासिक बहुमत के साथ कांग्रेस को राज्य की सत्ता सौंपी है। इसके पहले 1989 में कांग्रेस को 178 सीटें मिली थीं। इस ऐतिहासिक बहुमत ने भारतीय राजनीति के कई मिथक तोड़े हैं तो नई अवधारणाएं स्थापित हुई हैं।
पहला
कर्नाटक चुनाव ने मजबूती से यह स्थापित किया है कि जनता के असली मुद्दों पर चुनाव जीता जा सकता है। ग्रामीण और शहरी गरीब, मजदूर-किसान, दलित, पिछड़े, अति पिछड़े, आदिवासी, महिला और युवाओं की बढ़ती मुसीबतें, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी ही जनता के असल मुद्दे हैं और इन पर टिके रहकर जनता का विश्वास जीता जा सकता है।
दूसरा
कर्नाटक का चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच दोतरफा चुनाव बन गया था। भाजपा ने तमाम भटकाने वाले भावनात्मक और भड़काऊ मुद्दों को हवा दी, तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने जनता के असली मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित किया। हर वर्ग के लोगों से उनकी समस्याएं जानी गईं, उसके सटीक समाधान की गारंटी जनता के सामने रखी गई और जनता ने भरोसा किया।
इस चुनाव में कांग्रेस ने सामाजिक-आर्थिक एवं लोकतांत्रिक एजेंडे पर चुनाव लड़ना तय किया। महंगाई से बढ़ती आर्थिक मुसीबतें, किसानों की घटती आय का संकट, बढ़ती बेरोजगारी, दलितों एवं पिछड़ों के लिए सामाजिक न्याय के नये आयाम, महिलाओं का सशक्तिकरण, विभिन्न आर्थिक समूहों की मजबूती को केंद्र में रखकर कांग्रेस चुनाव में उतरी थी। पार्टी ने पूरे चुनावी अभियान को अपने मकसद से भटकने नहीं दिया, बल्कि भाजपा की भटकाने वाली राजनीति को सीधी चुनौती दी। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए कहा, 'मैंने पहला ऐसा प्रधानमंत्री देखा है जो जनता के बीच आकर जनता की समस्याएं सुनने की बजाय खुद रोता है कि मुझे गाली दी, मुझे ये कह दिया, मुझे वो कह दिया।' उन्होंने प्रधानमंत्री को चुनौती दी, 'एक चुनाव किसी भी प्रदेश में जनता के मुद्दों पर लड़कर दिखाओ। इधर-उधर की बातें बहुत हुईं। मुद्दे पे आओ।' भाजपा मुद्दे पर आने की हिम्मत तो नहीं कर पाई, लेकिन कर्नाटक की जनता मुद्दे पर आ गई। उसने कांग्रेस के एजेंडे पर विश्वास किया और अपने उज्ज्वल भविष्य की सकारात्मक राजनीति पर मुहर लगाई।
तीसरा
कर्नाटक चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के अजेय होने का मिथक ध्वस्त हो गया। भाजपा की प्रोपेगैंडा मशीनरी, आईटी सेल और मीडिया ने मिलकर एक मायाजाल रचा है कि नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा अजेय है। कहा जाता है कि भाजपा पूरे देश में हर बूथ पर इतनी मजबूत है कि उसे हराया नहीं जा सकता। यह सही है कि भाजपा का संगठन मजबूत है, लेकिन जनता की जागरूकता और एकता के सामने वे महज कागजी शेर हैं। उनके संगठन के बारे में बहुत कुछ अतिशयोक्ति फैलाई गई है। इस चुनाव में भी वही करने की कोशिश की गई। जब एग्जिट पोल के अनुमान आए तो भाजपा संगठन महासचिव बीएल संतोष ने दावा किया कि भाजपा 31 हजार बूथों पर लीड करेंगे। मगर नतीजे कुछ और निकले। अगर भाजपा हर बूथ पर अजेय है तो वह 65 प्रतिशत बूथों पर हारी कैसे? इससे पहले हिमाचल प्रदेश जीत चुकी कांग्रेस ने अब कर्नाटक में भी साबित किया है कि भाजपा की तथाकथित अजेय चुनाव मशीन को आसानी से हराया जा सकता है।
चौथा
कर्नाटक चुनाव में सबसे अहम जो धारणा टूटी है वो ये थी कि भाजपा धर्म और आस्था का बेजा इस्तेमाल करके किसी भी सूरत में चुनाव जीत सकती है। कर्नाटक में पहली बार देखा गया जब किसी प्रधानमंत्री ने खुलेआम बजरंग बली के नाम पर वोट मांगा। यह भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति का चरम था। प्रधानमंत्री ने सारी मर्यादाएं ताक पर रख दीं। वे जनता को धर्म के नाम पर खुलेआम उकसा रहे थे। लेकिन जनता समझ रही थी कि यह एक नाकाम नेता और विभाजनकारी राजनीति की धूर्ततापूर्ण चाल है। मठों, मंदिरों और सशक्त धार्मिक परंपराओं वाले कर्नाटक की आस्थावान जनता ने धर्म के चालाक और अनैतिक इस्तेमाल को नकार दिया और अपने बेहतर भविष्य का सकारात्मक रास्ता चुना।
पांचवा
भाजपा के साथ सीधे मुकाबले में कांग्रेस को ऐतिहासिक बहुमत देकर कर्नाटक की जनता ने वह बहस भी खत्म कर दी है कि देश के विपक्ष की अगुआई किसके पास होनी चाहिए। कांग्रेस देश का सबसे बड़ा और मुख्य विपक्षी दल है और इसलिए विपक्ष का स्वाभाविक अगुआ भी। इस जीत के बाद कांग्रेस की इस दावेदारी को और मजबूती मिली है।
मोदी सरकार की अमीरपरस्त नीतिया और हिंदुस्तान के गरीबों की प्रतिक्रिया
कर्नाटक के नतीजों का विश्लेषण करें तो कर्नाटक के किसान, शहरी और ग्रामीण गरीब, दलित, ओबीसी, मुस्लिम, महिलाएं, बेरोजगार और कमोबेश हर वर्ग के लोग कांग्रेस के साथ आए हैं। कर्नाटक का नतीजा महंगाई, बेरोजगारी व सत्ता-कॉरपोरेट की सांठगांठ के खिलाफ गरीबी का बहुमत है। यही वो असली ताकत है जो पूंजीपतियों की भ्रष्ट ताकत को रोक सकती है।
चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, 'कर्नाटक के चुनाव में एक तरफ क्रोनी कैपिटलिस्ट की ताकत थी, दूसरी तरफ जनता की ताकत थी। ग़रीबों की शक्ति ने भाजपा के पूंजीपति मित्रों की ताकत को हरा दिया है।'
प्रियंका गांधी ने कहा, 'कर्नाटक की जनता ने दिखा दिया है कि उन्हें एक ऐसी राजनीति चाहिए, जहां उनके मुद्दों पर बात हो। पहले हिमाचल प्रदेश और अब कर्नाटक ने साबित कर दिया है कि भटकाने की राजनीति अब नहीं चलेगी।'
कांग्रेस नेतृत्व के ये संदेश बताते हैं कि यह पार्टी भविष्य में भी जनहित की सकारात्मक राजनीति ही करेगी। कांग्रेस यह कभी नहीं भूल सकती कि देश की जनता ने लड़कर आजादी हासिल की और लाखों कुर्बानियों के बाद एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समावेशी भारत का निर्माण हुआ है। देश का यह गौरवशाली इतिहास ही कांग्रेस की विरासत है, जिसे बरकरार रखने के लिए कांग्रेस हर कीमत चुकाने को तैयार है।
(लेखक जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं और कांग्रेस से जुड़े हैं।)


