बैंकों का विलय जबरन नहीं किया जाना चाहिये : रंगराजन
रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन ने आज कहा कि बैंकों का विलय जबरन नहीं किया जाना चाहिये , बल्कि यह बैंकों की इच्छा पर उनकी जरूरत के हिसाब से होना चाहिये
नयी दिल्ली। रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन ने आज कहा कि बैंकों का विलय जबरन नहीं किया जाना चाहिये , बल्कि यह बैंकों की इच्छा पर उनकी जरूरत के हिसाब से होना चाहिये। साथ ही उन्होंने एनपीए की समस्या से निपटने के लिए बीच का रास्ता अपनाये जाने की वकालत की।
रंगराजन ने राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के 36वें स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर यहाँ आयोजित एक कार्यक्रम के बाद बैंकों के विलय के बारे में संवाददाताओं से कहा “इसकी पहल बैंकों की ओर से होनी चाहिये, जब उन्हें इसकी जरूरत महसूस हो। उन्हें इसके लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिये।
दुनिया भर में बड़े बैंकों में छोटे बैंकों का विलय होता है। समाज की जरूरत के हिसाब से अर्थव्यवस्था में कुछ बड़े बैंक होते हैं, कुछ छोटे बैंक होते हैं, कुछ स्थानीय बैंक भी होते हैं। यही वित्तीय तंत्र की विविधता है।”
आरबीआई द्वारा गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) वाले 12 बड़े ऋण खातों पर कार्रवाई तेज करने के बारे में श्री रंगराजन ने कहा कि बैंकों के बैलेंसशीट की सफाई जरूरी है। उन्होंने कहा कि सबसे अच्छा रास्ता यही है कि बैंकों को भी ऋणों का कुछ सामंजस्य करना चाहिये ताकि बुरा ऋण अच्छे ऋण में बदल सके। पहले भी बैंक सामंजस्य करते रहे हैं, लेकिन अभी समस्या यह है कि ये ऋण काफी ज्यादा हैं। उन्होंने कहा “इस कदम की जरूरत है क्योंकि एनपीए का समाधान ढूंढ़े बिना हम आगे नहीं बढ़ पायेंगे।”
पूर्व आरबीआई गवर्नर ने कहा कि एनपीए की समस्या के समाधान में कम से कम एक साल का समय और लगेगा। कृषि ऋण माफी के बारे में उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक हमेशा से कहता रहा है कि इससे किसानों में ऋण नहीं चुकाने की आदत को बढ़ावा मिलता है। इसलिए इसे प्रोत्साहन नहीं दिया जाना चाहिये। वहीं, दूसरी ओर किसानों की भी अपनी मजबूरी होती है।


