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खानदानी जिन्न के मार्फ़त जौन एलिया से मुलाक़ात
एक ही तो हवस रही है हमें' - मंच पर जौन एलिया के मदहोशी में डूबे किरदार में डूबे धर्मेन्द्र सांगवान ने कहा

- योगेश पांडेय)
'एक ही तो हवस रही है हमें' - मंच पर जौन एलिया के मदहोशी में डूबे किरदार में डूबे धर्मेन्द्र सांगवान ने कहा | और शेर पूरा किया दर्शकों ने - 'अपनी हालत तबाह की जाये' |
खचाखच भरे सभागार में आप होते तो देख सकते थे कि सचमुच इस नाटक का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे दिल्ली के दर्शक | भारत रंग महोत्सव 22 में इस नाटक के टिकट सबसे पहले बिक गए थे | रंजीत कपूर द्वारा परिकल्पित और निर्देशित इस नाटक का संगीत भी इनका ही था |
कहने को शायर जौन एलिया पाकिस्तान के थे | लेकिन यह बेजोड़ शायर तो अंदर से टूटा पड़ा था | विभाजन की पीड़ा, प्यार में बिछोह का दर्द और दुख तिसपर नाजुक मिजाज़ एलिया | वर्तमान कराची में रहा तथा अवचेतन में बसा अमरोहा, इनके बीच बंटा हुआ था जौन |
आप, वो.. जी.. मगर, ये सब क्या है
तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेतीं
शर्म दहशत झिझक परेशानी
नाज़ से काम क्यों नहीं लेतीं ||
कहावत है कि बड़े पेड़ नई जमीन पर जल्दी जड़ नहीं पकड़ पाते हैं | दिल्ली से थोड़ी ही दूर पर बसे अमरोहा में 1931 में जौन एलिया पैदा हुए | 25 साल के जौन को अपना वतन और अमरोहा छोड़ कर परिवार के साथ 1956 में कराची जाना पड़ता है | इसका मलाल भी इन्हें ताउम्र रहा | दूसरी तरफ़ पत्नी से अलगाव की टीस भी मिली |
इस नाटक के लेखक इरशाद खान सिकंदर ने एलिया के चर्चित और मकबूल शेरों और संवादों के साथ शानदार कथानक बुना है
| कल्पना और यथार्थ का खूबसूरत गुलदस्ता | अपनी कब्र से जौन एलिया बाहर आते हैं तो उनकी भेंट अपने खानदानी जिन्न से होती है | जिन्न इनको बीती बातें भी बताता है और सिगरेट-शराब की इनकी जरूरतें भी पूरी करता है | नाटक में एलिया की भतीजी के अलावा मरहूम अम्मी, भाभी के साथ ही सआदत हसन मंटो, मिर्जा ग़ालिब, मीर तक़ी मीर, ग़ुलाम हमदानी मुसहफ़ी जैसे उर्दू अदब और शायरी के मशहूर लोग भी हैं | इन किरदारों की आमद के चलते नाटक दिलचस्प बन पड़ा है |
परंतु, एक तथ्य यह भी दिखा कि इसे तीन वर्गों के दर्शकों ने देखा | एक वो जो जॉन एलिया की शायरी के मुरीद थे, और दूसरे वे लोग जिन्हें केवल रंजीत कपूर का नाटक देखने की हसरत थी | तीसरी तरफ ऐसे दर्शक थे जो केवल नाटक के रसास्वादन के लिए आये थे | इनमें वे दर्शक जो सिर्फ रंजीत कपूर की महारत देखने आये थे, तनिक निराश हुए |
अस्वस्थता के बावज़ूद मंच पर पहुंचे निर्देशक ने कहा कि कुछ लोग नाटक के बीच उठकर गए यह मेरे लिए विचार करने लायक है | वैसे भी यह नाटक किसी के जीवन पर आधारित है और मैं ने इसमें कोई एडिटिंग नहीं की है | यह लेखक की मेहनत और उनका कमाल है | नाटक के पेस को और अन्य मुद्दों पर विचार किया जाएगा |
धर्मेन्द्र सांगवान जौन एलिया के किरदार में शानदार दिखे|विक्रमादित्य पांडेय (जालिमिन जिन), कोमल मुंशी (शहाना एलिया) सुनील रावत (मंटो), रश्मि सिंह (मां) तथा अन्य सभी किरदारों में कलाकार बहुत उम्दा रहे |
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