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यूपी की महिला सीएमओ से मिलिए, जिन्होंने पीलीभीत को कर दिया कोरोना मुक्त

उत्तर प्रदेश में कोरोना मुक्त पहला जिला घोषित होने के बाद पीलीभीत सुर्खियों में आया है। पीलीभीत को यह तमगा यहां के समर्पित सरकारी डॉक्टरों की बदौलत मिला है

यूपी की महिला सीएमओ से मिलिए, जिन्होंने पीलीभीत को कर दिया कोरोना मुक्त
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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में कोरोना मुक्त पहला जिला घोषित होने के बाद पीलीभीत सुर्खियों में आया है। पीलीभीत को यह तमगा यहां के समर्पित सरकारी डॉक्टरों की बदौलत मिला है। सीमित संसाधनों के बावजूद इन सरकारी डॉक्टरों ने कोरोना को हराकर दिखा दिया। कोरोना पॉजिटिव मिले मां-बेटे को स्वस्थ कर घर भेजे देने की खबर जब बीते सोमवार को लखनऊ पहुंची, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी जिले को बधाई देने से नहीं चूके। पीलीभीत के डॉक्टरों की यह उपलब्धि इसलिए भी खास है कि उन्होंने कोरोना पॉजिटिव 73 वर्षीय महिला को स्वस्थ करने में सफलता हासिल की। जबकि कोविड 19 का सबसे ज्यादा खतरा बुजुर्गों को होता है।

कोरोना को हराने के इस पीलीभीत मॉडल के पीछे एक महिला डॉक्टर सीमा अग्रवाल की खास भूमिका हैं, जो जिले की मुख्य चिकित्साधिकारी(सीएमओ) हैं। उन्होंने जिले को कोरोना मुक्त बनाने को लेकर विभागीय प्रयासों की आईएएनएस से फोन पर चर्चा की।

पीलीभीत की सीएमओ सीमा अग्रवाल पड़ोसी जिले बरेली की ही रहने वालीं हैं। पीलीभीत से पहले वह बरेली के मंडलीय जिला अस्पताल में प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ (गायनोलॉजिस्ट) रहीं। वर्ष 1991 से उत्तर प्रदेश की सरकारी स्वास्थ्य सेवा से जुड़ीं डॉ. सीमा पिछले तीन वर्षों से पीलीभीत की सीएमओ हैं। डॉ. सीमा की मॉनीटरिंग में पिछले 25 दिनों से चले अभियान के चलते जिले के दोनो कोरोना पॉजिटिव मरीजों को ठीक करने में सफलता हासिल हुईं।

आईएएनएस से बातचीत में डॉ. सीमा अग्रवाल ने इस सफलता का श्रेय खुद लेने से इनकार किया और कहा कि यह टीम वर्क से संभव हुआ। इलाज में जुटे सभी डॉक्टर, नर्स और डीएम, एसपी आदि प्रशासनिक अधिकारियों की वजह से सब चीजें दुरुस्त हुईं। उन्होंने पीलीभीत के कोरोना मुक्त होने से जुड़े प्रयासों की आईएएनएस से फोन पर चर्चा की।

डॉ. सीमा अग्रवाल ने बताया, "पीलीभीत के 37 लोग मक्का गए थे। वहां से 18 मार्च को मुंबई लौटे थे। फिर रिजर्वेशन नहीं मिला तो मुंबई से ट्रेन के जनरल डिब्बे में सवार होकर बरेली उतरे और यहां से टैक्सी कर पीलीभीत के अमरिया स्थित गांव चले गए। उन लोगों ने क्वारंटीन का स्टैंप भी मिटा दिया था। मगर, कुछ जागरूक मीडियाकर्मियों से खबर मिली कि मक्का से 37 लोग लौटे हैं। मक्का से घर लौटने के ही दिन 73 वर्षीय महिला शकीला को खांसी और बुखार की शिकायत हुई तो स्वास्थ्य विभाग के कान खड़े हो गए। 20 मार्च को महिला को जिला अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कराने के साथ बिना देरी किए अन्य लोगों को भी क्वारंटाइन करने की कोशिशें हुईं। भर्ती होने के दिन ही शकीला का सैंपल कोविड 19 की जांच के लिए लखनऊ भेज दिया गया था।"

सीएमओ डॉ. सीमा अग्रवाल ने बताया, "जैसे ही शकीला की रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो उसके बेटे सहित अन्य 35 लोगों को प्रशासन के सहयोग से जिला अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड भेजा गया। बाद में शकीला के बेटे की भी रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। पता चला कि महिला से मिलने उसकी बेटी और दामाद भी आए थे, उनके घर पहुंचकर उन्हें भी तुरंत क्वारंटीन किया गया। शकीला के घर रहने वाले किराएदारों के भी नमूने भेज गए। इस प्रकार से शकीला और बेटे के संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर क्वारंटीन कर दिया गया। जिस गांव के रहने वाले लोग थे, उसे सील कर दिया गया। जिससे वायरस का फैलाव रोकने में सफलता मिली।"

कोरोना पॉजिटिव मां-बेटे कैसे ठीक हुए? इस सवाल पर डॉ. सीमा अग्रवाल ने आईएएनएस को बताया, "चिकित्सकों की टीम ने लगातार सिम्पटोमैटिक ट्रीटमेंट(लक्षणात्मक इलाज) किया। 20 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद शकीला स्वस्थ हुईं। चौथी रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद उन्हें आठ अप्रैल को डिस्चार्ज किया गया। वहीं बेटे मेराज हुसैन को बीते सोमवार को अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया। कोरोना पॉजिटिव मां-बेटे को स्वस्थ करने वालों में संयुक्त अस्पताल के सीएमएस डॉ. रतनपाल सिंह सुमन, फिजीशियन डॉ. रमाकांत सागर, ईएनटी सर्जन डॉ. अनिल कुमार मिश्र आदि चिकित्सकों, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की प्रमुख भूमिका रही।"


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