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जतमई के पास विकसित होगा औषधीय पौधा संरक्षण क्षेत्र

राजधानी रायपुर के नजदीक गरियाबंद जिले में स्थित प्रसिद्ध प्राकृतिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल जतमई के आसपास का लगभग 200 हेक्टेयर (500 एकड़) रकबा औषधीय पौध संरक्षण क्षेत्र के रूप में विकसित होगा

जतमई के पास विकसित होगा औषधीय पौधा संरक्षण क्षेत्र
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रायपुर। राजधानी रायपुर के नजदीक गरियाबंद जिले में स्थित प्रसिद्ध प्राकृतिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल जतमई के आसपास का लगभग 200 हेक्टेयर (500 एकड़) रकबा औषधीय पौध संरक्षण क्षेत्र के रूप में विकसित होगा।

छत्तीसगढ़ राज्य औषधीय पादप बोर्ड के अध्यक्ष राम सिंह ने कल गुरू पूर्णिमा के पावन अवसर पर जतमई में आयोजित कार्यक्रम में औषधीय प्रजाति का पौधा लगाकर इस परियोजना का शुभारंभ किया।

बोर्ड के उपाध्यक्ष डॉ. जे.पी. शर्मा ने शुभारंभ समारोह की अध्यक्षता की। महासमुन्द लोकसभा क्षेत्र के सांसद चंदूलाल साहू और छत्तीसगढ़ वन विकास निगम के अध्यक्ष निवास मद्दी समारोह में विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस अवसर पर जतमई में पारम्परिक हर्बल उत्पाद केन्द्र का शुभारंभ भी किया गया।

छत्तीसगढ़ राज्य औषधीय पादप बोर्ड के अध्यक्ष रामप्रताप सिंह ने अपने उघाटन में कहा कि छत्तीसगढ़ के हर जिले में औषधीय पौध संरक्षण क्षेत्र (एमपीसीए) विकसित किया जाना चाहिए। इन क्षेत्रों में औषधीय पौधे लगने से पर्यावरण संरक्षण तथा पारम्परिक औषधीय ज्ञान को बढ़ावा मिलेगा।

डॉ. जी.पी.शर्मा ने औषधीय पौधों के संरक्षण में विनाश विहीन विदोहन पद्धति का उपयोग करने पर जोर दिया, ताकि भावी पीढ़ियों के लिए औषधीय पौधों के भण्डार सुरक्षित रहे। लोकसभा सांसद चंदूलाल साहू ने जतमई का औषधीय पौध संरक्षण क्षेत्र विकसित करने के लिए चयन होने पर स्थानीय लोगों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी और कहा कि आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से इलाज करने वाले क्षेत्र के पारम्परिक वैद्यों को इसका लाभ मिलेगा।

औषधीय पादप बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी शिरीषचंद्र अग्रवाल ने कहा कि औषधीय पौधे के संरक्षण में रूचि रखने वाले ग्रामीणों, वनवासियों और पारम्परिक वैद्यों को वन समितियों के माध्यम से इस कार्य से जोड़ा जाएगा।

राज्य औषधीय पादप बोर्ड के अधिकारियों ने इस अवसर पर बताया कि औषधीय पौधा संरक्षण क्षेत्र के लिए ऐसे क्षेत्रों का चयन किया जाता है, जहां विलुप्त प्रजाति के औषधीय पौधे हैं। इन क्षेत्रों में परम्परागत चिकित्सा की पद्धति का चलन पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित हो रही है।

उन्होंने बताया कि जतमई क्षेत्र में जलप्रपात होने के कारण जलीय व पथरीली औषधीय प्रजातियों को पौधे पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में मिश्रित वन के साथ-साथ वृक्ष प्रजातियों की संख्या भी अधिक है।

यहां औषधीय पौधा, लाल शीशम, कुल्लू, भेलवा, डिकामाली, बेल, कोरिया, आंवला, मरोड़फल्ली आदि के लिए प्रसिद्ध है। जतमई क्षेत्रों के गांवों में अनेक पारंपरिक वैद्य निवास करते हैं, जो पीलिया, पेट दर्द, बुखार, दस्त, सिर दर्द, हड्डी जोड़, सूजन, कमजोरी, गठियावात, कटने, जलने, मिर्गी आदि बीमारियों का उपचार करते हैं।

उन्होंने बताया कि औषधीय पौध संरक्षण क्षेत्र विकसित होने से यहां पर कुछ वर्षों बाद औषधीय पौधों की संख्या बढ़ेगी, जिससे स्थानीय लोगों की आमदनी भी बढ़ेगी।


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