इंडिया की सफलता से बौखलाया मीडिया
एक देश एक चुनाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में कमेटी बना रहे हैं

- शकील अख्तर
एक देश एक चुनाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में कमेटी बना रहे हैं। मगर मणिपुर के अपने केन्द्रीय मंत्री, वहां के दूसरे सांसद को अपने ही देश की लोकसभा में बोलने नहीं दे रहे। संसद का विशेष अधिवेशन बुलाया क्या उसमें मणिपुर की बात होगी? वह भी तो देश का हिस्सा है। क्या यह सब बातें विदेशी अतिथियों के कानों में नहीं जाएंगी? इन परिस्थितियों में इन्डिया आकार ले रहा है। जाहिर है एक बड़ा चैलेंज बन गया है।
आप बाराती जानते हैं!
तो यह मीडिया आज बाराती प्रवृति का हो गया है। छिद्रान्वेषी!
इंडिया की बेहद सफल मुंबई बैठक में उसने बहुत सारी कमियां खोज ली हैं। जैसे वह बाराती सर्वश्रेष्ठ माना जाता है जो लड़की वालों के यहां जाकर यह कमी निकाल सके कि उसने कोकाकोला में चाय बनाकर नहीं पिलाई या पनीर चिकन नहीं बनाया! पनीर बनाया तो क्या? चिकन बनाया तो क्या?
बनाना तो पनीर चिकन या चिकन पनीर चाहिए था। कहते हैं कि बाराती तो राजा की लड़की की शादी में भी कमी निकाल सकता है। तो यही हाल आज हमारे मीडिया का हो गया है।
झंडा क्यों नहीं बनाया? झंडा था क्या कभी इससे पहले किसी गठबंधन का? जिस एनडीए को अब यह बीजेपी की जगह चुनाव जिता रहे हैं। क्या उसका कोई झंडा है? या केवल विपक्षी गठबंधन का ही चाहिए था! सारी शर्ते लड़की और लड़की वालों पर लागू हैं! अपने लिए तो हम हर बार नए नियम बनाते रहेंगे। पहले तो केवल आएगा तो मोदी ही का माहौल बना रहे थे। मगर जब आरएसएस ने कह दिया कि केवल मोदी के भरोसे कुछ नहीं होगा तो भाजपा की बात करने लगे। और अब जब विपक्ष एक हो गया तो भाजपा से आगे बढ़कर वे भी गठबंधन की बातें करने लगे। 2019 के बाद कहना शुरू कर दिया था कि देश से गठबंधन की राजनीति खत्म हो गई। मगर जब नीतीश कुमार के प्रयासों से इसने इतना व्यापक रूप ले लिया तो कूद कर एनडीए पर आ गए।
मुंबई का संदेश क्या है? इन्डिया के लिए कि छोटी-छोटी बातें छोड़ने से बड़ा लक्ष्य हासिल किया जा सकता है और मीडिया के लिए कि बने रहो पुछल्ले! तुम्हारी नियति यही है!
हालांकि इन्डिया के नेताओं ने मुंबई में मीडिया को बहुत प्यार से पुचकार कर समझाया। मीठे अंदाज में नीतीश कुमार ने कहा कि हम आपको भी मुक्त करवाना चाहते हैं। राहुल ने यही कहा कि डरो नहीं। हम आपको भी भयमुक्त कर देंगे। सारे नेता उदार भाव से मीडिया को समझाते रहे।
मगर इधर मीटिंग खत्म हुई उधर उनके अंदर मतभेद ढूंढने लगे। ममता बनर्जी कहां हैं? जबकि एक सितम्बर को मीटिंग खत्म होते ही शिवसेना के संजय राउत ने सबसे पहले यही बताया कि आपके सामने प्रेस कान्फ्रें समें सब नेता मौजूद हैं। मगर ममता बनर्जी को जल्दी जाना था तो वे चली गईं। लेकिन कहानियां कहां रुकने वाली थीं। ममता नाराज की खबरें शुरू कर दीं।
सोचिए जो ममता एक सितंबर की सुबह मीटिंग शुरू होने से पहले सोनिया गांधी को शाल उढ़ाकर उनका सम्मान कर रही थीं। बेंगलुरू की प्रेस कान्फ्रेंस में माय फेवरेट राहुल कह रही थीं। वे किसी छोटी बात से नाराज होकर जा सकती थीं?
लेफ्ट से उनके मतभेद की खबरें लोकसभा के मतदान होने तक चलाई जाएंगी। लेकिन यह नहीं बताया जाएगा। तीन मीटिंगें हुईं पटना, बेंगलुरू और मुंबई। लेफ्ट के एक नहीं तीन तीन नेता, सीपीआईएम के सीताराम येचुरी, सीपीआई के डी राजा और सीपीआईएमएल के दीपंकर भट्टाचार्य उनमें ममता बनर्जी के साथ मौजूद रहे, खूब बातें करते हुए।
खींचतान कहां नहीं हैं? गोदी मीडिया में नहीं हैं? एक एंकर दूसरे चैनल को नीचा दिखाने के लिए तक-तक कब तक करता रहा! ज्यादा से ज्यादा जहरीला बनने के लिए कुछ एंकरों में कितना भयानक काम्पटिशन है। एक-दो को तो लगता है जैसे जहर के इंजेक्शन भी लगवाने पड़ते हैं! मगर यह भक्ति तो ऐसी चीज है कि कमी रह ही जाती है। अभी एक एंकर को सुनने को मिल गया कि जब जेल गए तो कैसा लगा? ऑन एयर बात हो रही थी जहर फैलाने में सबसे तेज निकल रहा एंकर बेचारा यह भी नहीं कह पाया कि हमारी तपस्या में कौन सी कमी रह गई!
बाकी एंकर और पत्रकार अभी यह नहीं सोच पा रहे कि कभी उनसे भी उनके चैनलों के मालिक ही पूछेंगे कि यह नफरत क्यों फैलाते थे? क्या हमने कहीं लिखकर कहा था? कोई जिम्मेदारी नहीं लेगा। एंकर, पत्रकार, मीडिया मालिक सब से सवाल होगा? अभी तो कुछ राज्य सरकारों की हिम्मत की वजह से दो-चार पत्रकार एंकर ही जेल में गए लेकिन अगर विपक्ष की खासतौर से कांग्रेस की राज्य सरकारें गोदी मीडिया से डरना छोड़ दें तो बड़ी तादाद में मीडिया को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। रिया चक्रवर्ती के मामले में क्या साबित हुआ? तो उन पर झूठे आरोप लगाने कैमरों से घेर कर उनसे पुलिसिया पूछताछ करने के आरोप में कितने लोग दोषी करार दिए जाएंगे? आर्यन के मामले में भी ऐसा ही हुआ। उसे गलत फंसाने के दोषी समीर वानखेड़े का साथ देने के मामले में मीडिया क्या कार्रवाई से बच जाएगा?
लेकिन अभी जैसा कि मुंबई में इन्डिया के नेताओं ने कहा कि हमारे कामों में एक मीडिया को गुलामी से निजात दिलाना भी है। नियंत्रण मुक्त तो सभी संवैधानिक संस्थाओं को करना है। लेकिन बाकी संस्थाएं और चाहे जो लोकतंत्र का नुकसान कर रही हों डायरेक्ट जनता को नफरती और क्रूर नहीं बना रही हैं। मीडिया तो जनता का चरित्र ही बदल रहा है।
प्रधानमंत्री लाल किले से कहते हैं हजार साल की गुलामी। चलो मान लिया। मगर हजार साल में भी भारतीय जनता ने अपनी सहज बुद्धि नहीं खोई। जितने विदेशी आए उसे बेवकूफ कोई नहीं कह सका। सबने उसकी बौद्धिक क्षमताओं की तारीफ की। मगर पिछले 9 साल में वह बौद्धिक अंधकार की तरफ बढ़ रही है। उसे रात-दिन नफरत और विभाजन सिखाया जा रहा है। पूरी दुनिया की निगाहें इस प्रयोग पर हैं कि क्या पूरे एक देश को 9-10 सालों में हजारों सालों की उदार सभ्यता को भुलाकर केवल और केवल नफरत पर जीना सिखाया जा सकता है? और अगर 140 करोड़ का पूरा एक देश नफरती बन गया तो दुनिया पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
अभी जी-20 हो रहा है। कुछ बड़े नेताओं चीन के, रुस के राष्ट्रपति, सऊदी अरब के प्रिंस ने तो आने से मना कर दिया। मगर कुछ देशों के शासनाध्यक्ष आ रहे हैं। वे अपने लिए सजाई सड़कों और गमलों को ही नहीं देखेंगे उसके पीछे भारत में क्या हो रहा है, यह भी देखेंगे।
एक देश एक चुनाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में कमेटी बना रहे हैं। मगर मणिपुर के अपने केन्द्रीय मंत्री, वहां के दूसरे सांसद को अपने ही देश की लोकसभा में बोलने नहीं दे रहे। संसद का विशेष अधिवेशन बुलाया क्या उसमें मणिपुर की बात होगी? वह भी तो देश का हिस्सा है। क्या यह सब बातें विदेशी अतिथियों के कानों में नहीं जाएंगी?
इन परिस्थितियों में इन्डिया आकार ले रहा है। जाहिर है एक बड़ा चैलेंज बन गया है। कह रहा है कि हम अपने नुकसान पर भी दूसरी सहयोगी विपक्षी पार्टी की मदद करेंगे। यह 'गिव एंड टेक नहीं होगा। सिर्फ गिव ही गिव होगा। मतलब देना ही देना।
और यह जरूरी है। अगर इस बार ऐसा नहीं किया तो कपिल सिब्बल जिनकी अप्रत्याशित मुंबई मीटिंग में एंट्री हुई की यह बात सच साबित हो जाएगी कि अगर इस बार भी मोदी जी जीत गए तो फिर विपक्ष चुनाव को भूल जाए। सही बात है। अगर मोदी जी तीसरी बार आ गए तो कई विपक्षी दल खतम हो जाएंगे। कई क्षेत्रीय नेता भी।
इसलिए सब 'गिव एंड टेक' की बात नहीं केवल 'गिव ही गिव' की बात कर रहे हैं। एक दूसरे को मजबूत करो। सब मजबूत हो जाओगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


