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81 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने के मायने

भारत के 81.35 करोड़ लोगों को अनाज मुफ्त देने की योजना को पांच और सालों तक बढ़ा दिया गया है. लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि क्या इसका मतलब यह है कि अभी भी देश की करीब 60 प्रतिशत आबादी अपने लिए अनाज भी नहीं जुटा पा रही है.

81 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने के मायने
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बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को पांच और सालों तक जारी रखने की मंजूरी दे दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी घोषणा चार नवंबर को ही कर दी थी. इस योजना के तहत 81.35 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दिया जाता है. यूपीए सरकार द्वारा लाए गए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) के तहत केंद्र सरकार इन लाभार्थियों को बेहद कम दामों में चावल और गेहूं देती थी.

योजना की रूपरेखा

चावल तीन रुपये, गेहूं दो रुपये और मोटा अनाज एक रुपये प्रति किलो दिया जाता था. गरीब कल्याण योजना को कोविड-19 महामारी के दौरान अप्रैल 2020 में शुरू किया गया था, जिसके तहत एनएफएसए के लाभार्थियों को पांच किलो अतिरिक्त अनाज मुफ्त देने का फैसला किया गया था.

दिसंबर, 2022 में सरकार ने एनएफएसए और गरीब कल्याण योजना को मिला दिया था और जनवरी, 2023 से एक साल के लिए एनएफएसए के लाभार्थियों को मुफ्त अनाज देने का फैसला किया था. लेकिन गरीब कल्याण योजना के तहत मिलने वाले अतिरिक्त पांच किलो अनाज के प्रावधान को हटा दिया था.

अब इस योजना को पांच और सालों तक जारी रखने की घोषणा की गई है. सरकार की तरफ से जारी किए गए एक बयान में कहा गया, "मुफ्त अनाज खाद्य सुरक्षा को मजबूत करेंगे और आबादी के गरीब और कमजोर वर्गों की वित्तीय कठिनाइयों को कम करेंगे."

सरकार के मुताबिक इन पांच सालों में इस योजना पर अनुमानित रूप 11.80 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे. इस ऐलान को पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से जोड़ कर देखा जा रहा है. हालांकि पांच में से चार राज्यों में मतदान हो चुका है और तेलंगाना में मतदान चल रहा है.

राहत या नुकसान?

इस योजना को देखते हुए एक सवाल जो अक्सर उठता है वो यह है कि अगर देश की करीब 60 प्रतिशत आबादी को अनाज मुफ्त दिया जा रहा है, तो क्या इसका मतलब है कि देश में 60 प्रतिशत लोग इतने गरीब हैं कि वो अपने खाने का भी इंतजाम नहीं कर पाते हैं?

2011 में भारत में 21.9 प्रतिशत लोग आधिकारिक गरीबी रेखा के नीचे थे. उसके बाद अभी तक नए आंकड़े नहीं आए हैं, क्योंकि 2021 में होने वाली जनगणना अभी तक नहीं हुई है. हालांकि कुछ जानकारों का कहना है कि विश्व बैंक की गरीबी की परिभाषा के हिसाब से यह आंकड़ा उतना भी गलत नहीं लगता.

जानकार यह भी मानते हैं कि नई योजना कारगर नहीं है और यह गरीबी को बढ़ा भी सकती है. अर्थशास्त्री अरुण कुमार का मानना है कि दोनों योजनाओं को मिला देने के बाद 2023 में सरकार ने सब्सिडी पर 1.09 लाख करोड़ का खर्च बचाया होगा.

"द वायर" पर छपे एक लेख में कुमार ने लिखा है कि इसकी वजह से गरीबों पर बोझ बढ़ जाएगा, जिसका भार सरकार द्वारा बचाई गई सब्सिडी से ज्यादा होगा. उन्होंने यह भी चेताया कि ऐसे में अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए गरीबों को बाजार से अनाज खरीदने पड़ेंगे, जिनका दाम लगातार बनी हुई मुद्रास्फीति की वजह से काफी ज्यादा है. इसका असर यह होगा कि गरीबी और बढ़ जाएगी.


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