मौजूदा पार्षदों को टिकट नहीं देने के फैसले से भाजपा में भीतरघात का खतरा
दिल्ली नगर निगम चुनाव में मौजूदा पार्षदों को टिकट नहीं देने के फैसले से भारतीय जनता पार्टी को भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है।

जीत को लेकर आश्वस्त नेताओं की नज़र भाजपा प्रत्याशियों की सूची पर
टिकट कटने से नाराज नेता अपने क्षेत्र में करा रहे हैं सर्वे
अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नेता सूची जारी होने का कर रहे हैं इंतजार
नई दिल्ली, 28 मार्च (देशबन्धु)।
दिल्ली नगर निगम चुनाव में मौजूदा पार्षदों को टिकट नहीं देने के फैसले से भारतीय जनता पार्टी को भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है।
दरअसल, भाजपा में किसी वार्ड पर 30 तो किसी वार्ड में 150 तक लोग अपना दावा ठोंक रहे हैं। जिसे टिकट नहीं मिलेगा, वही पार्टी को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेगा। उधर, अपनी जीत को लेकर आश्वस्त भाजपा के मौजूदा पार्षदों ने भी अपने वार्ड में सर्वे कराना शुरू कर दिया है। साथ ही कुछ पार्षद निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गए हैं।
हालांकि पार्टी के फैसले से भाजपा के सभी पार्षद परेशान हैं, लेकिन कुछ लोगों ने अभी भी हार नहीं मानी है। उनके सामने निर्दलीय चुनाव लडऩे का विकल्प खुला हुआ है।
नाम न छापने की शर्त पर एक पार्षद ने बताया कि जिस पार्टी के साथ उन्होंने राजनीतिक सफर की शुरुआत की, उसी पार्टी ने उनके राजनीतिक जीवन का अंत कर दिया है। पार्टी ने उन्हें भावनात्मक रूप से भी आहत किया है। हमने अपनी बात पार्टी के बड़े नेताओं तक पहुंचा दी है। अब पार्टी क्या फैंसला करेगी उसका इंतज़ार है। हमारी नज़र भाजपा द्वारा जारी की जाने वाली प्रत्याशियों की सूची पर है। निगम प्रत्याशियों की सूची जारी होने के बाद उचित कदम उठाया जाएगा।
इसी तरह उत्तरी दिल्ली नगर निगम के भी कुछ युवा पार्षदों को इस फैसले से झटका लगा है। वे अपने राजनीतिक कैरियर को खत्म नहीं करना चाहते।
एक पार्षद ने बताया कि एक बार राजनीति से बाहर होने के बाद पांच साल के बाद वापसी करना उनके लिए बेहद मुश्किल है। पिछले दस सालों में पार्षदों ने पार्टी के लिए ही काम किया। लेकिन अपनी ही पार्टी के आला नेता पार्षदों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं। यह आपत्तिजनक है। पार्टी को सभी पार्षदों और उनके नजदीकी रिश्तेदारों का सर्वे कराना चाहिए था कि बीते दस सालों में किस पार्षद या उसके परिजन की कितनी संपत्ति और बढ़ी हैं। अगर पार्टी को सभी मौजूदा पार्षदों के टिकट काटने ही थे तो पार्षदों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के स्थान पर नए चेहरों को सामने लाने के बात कहनी चाहिए थी। इससे तो हमारी छवि ख़राब हो रही है।


