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दुनिया के सबसे बड़े ज्वालामुखी मौना लोआ में 40 साल बाद विस्फोट

दुनिया का सबसे बड़ा सक्रिय ज्वालामुखी मौना लोआ 40 साल में पहली बार फट पड़ा है. ज्वालामुखी से निकल रहे लावे से तुरंत खतरा नहीं है. यह पहाड़ियों से नीचे की ओर बह रहा है और आबादी तक पहुंचने में एक हफ्ता लग सकता है.

दुनिया के सबसे बड़े ज्वालामुखी मौना लोआ में 40 साल बाद विस्फोट
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हवाई का मौना लोआ भारी मात्रा में सल्फर डाई ऑक्साइड और दूसरी ज्वालामुखीय गैसें उगल रहा है. ये गैसें भाप, ऑक्सीजन और धूल से मिल कर स्मॉग या वॉग बनाती हैं. स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा है कि लोग घर के बाहर कसरत, व्यायाम और इस तरह की गतिविधियों को कम करें नहीं तो इनकी चपेट में आने से सांस लेने में दिक्कत हो सकती है.

इससे पहले मौना लोआ में 1984 में विस्फोट हुआ था. इसका पड़ोसी किलोवेया ज्यादा सक्रिय है सितंबर 2021 से ही लगातार उबल रहा है.

कहां है मौना लोआ?

मौना लोआ उन पांच बड़ी ज्वालामुखियों में एक है जो साथ मिल कर हवाई का बिग आईलैंड बनाती हैं. यह हवाई द्वीपसमूह के सुदूर दक्षिण में है. यह सबसे ऊंचा नहीं है लेकिन सबसे बड़ा है और द्वीप की जमीन के करीब आधे हिस्से पर है.

मौना लोआ किलोवेया ज्वालामुखी के उत्तर में है. किलोवेया ज्वालामुखी काफी जाना पहचाना नाम है. 2018 में हुए इसके विस्फोट में 700 से ज्यादा घर तबाह हो गये थे और लावा की नदियां खेतों और समंदर तक जा पहुंची थीं.

मौना लोआ में 38 साल पहले विस्फोट हुआ था. इसका इतिहास 1843 से लिखा जा रहा है और यह इसका 34वां विस्फोट है. यह विशाल द्वीप मोटे तौर पर ग्रामीण लोगों का बसेरा है और यहां मवेशियों और कॉफी के फार्म ही ज्यादा हैं. हालांकि इसके साथ ही कुछ छोटे शहर भी हैं जिनमें एक है हिलो जहां करीब 45 हजार लोग रहते हैं.

हवाई के सबसे ज्यादा आबादी वाले ओआहु द्वीप से यह करीब 320 किलोमीटर दूर दक्षिण में है. ओआहू में ही राजधानी होनोलूलू और बीच रिसॉर्ट वाइकिकी मौजूद हैं. समुद्र तल से लेकर सबसे ऊंची चोटी तक 75,000 वर्ग किलोमीटर में फैला मौना लोआ दुनिया का सबसे बड़ा ज्वालामुखी है.

कहां विस्फोट हुआ?

रविवार की रात को कई बड़े भूकंपों के बाद इसकी चोटियों में विस्फोट शुरू हुआ. जल्दी ही यह मुहाने तक जा पहुंचा और एक दरार बन गई जहां से पर्वत दो हिस्से में बंट गया और मैग्मा के लिए बाहर निकलना आसान हो गया. ये मुहाने ज्वालामुखी के उत्तरपूर्वी दिशा में हैं और निकल रहा लावा हिलो की तरफ जा रहा है जो द्वीप के पूर्वी दिशा में है.

हवाइयन वोल्केनो ऑब्जर्वेटरी के साइंटिस्ट इंचार्ज केन होन का कहना है कि उन्हें अतिरिक्त मुहानों के बनने की आशंका नहीं है. इसका मतलब है कि पश्चिम की तरफ रहने वाले लोगों तक इस विस्फोट से निकलने वाला लावा नहीं पहुंचेगा.

1984 में भी मौना लोआ के उत्तरपूर्वी हिस्से में ही विस्फोट हुआ था. पिछली बार लावा हिलो की तरफ गया लेकिन शहर से कुछ मील पहले रुक गया. ऐतिहासिक रूप से मौना लोआ का विस्फोट कुछ हफ्ते तक जारी रहता है. होन को उम्मीद है कि इस बार भी यही होगा.

क्या मौना लोआ माउंट सेंट हेलेंस की तरह फटता है?

मौना लोआ वॉशिंगटन के माउंट सेंट हेलेंस की तरह नहीं फटा है. 1980 में माउंट सेंट हेलेन्स के विस्फोट में 57 लोगों की मौत हुई थी. विस्फोट में निकली राख 80,000 फीट की ऊंचाई तक ऊपर उठी और फिर करीब 400 किलोमीटर दूर तक उसकी बारिश हुई थी.

माउंट सेंट हेलेंस के विस्फोट में निकला लावा चिपचिपा था और इसमें ज्यादा गैस थी. इसकी वजह से इसके ऊपर ऊठने पर और ज्यादा विस्फोट हुए. माउंट लोआ ज्यादा गर्म, सूखा और तरल है इस वजह से मैग्मा से गैसें निकल जाती हैं और लावा आसानी से किनारों की तरफ बह जाता है. इस वक्त मौना लोआ में यही हो रहा है.

1989 में अलास्का के रिडाउट वोल्केनो से के कारण 8 मील की दूरी तक राख का बादल फैल गया था और केएलएम रॉयल डच एयरलाइंस के एक विमान के सभी चारों इंजिन इसकी चपेट में आ कर बंद हो गये. विमान 13,000 फीट नीचे आ गया, तब इंजन दोबारा स्टार्ट हुए और विमान में सवार 245 लोग बिना किसी क्षति के सुरक्षित जमीन पर उतरे. मौना लोआ से इस बार राख निकल रही है लेकिन काफी कम.

मौना लोआ के विस्फोट से क्या खतरा है?

पिघली चट्टान घरों, खेतों और आसपास के इलाकों को ढक सकती है, यह इस पर निर्भर करेगा कि उनका बहाव किस तरफ है. हालांकि ऊत्तरपूर्वी दरार से निकले लावा के आबादी वाले इलाके तक पहुंचने में कम से कम एक हफ्ता लगेगा. ऐसे में लोगों को जरूरत पड़ने पर वहां से सुरक्षित निकाला जा सकता है.

मौना लोआ से ज्वालामुखीय गैसें भी निकल रही हैं जिसमें सबसे ज्यादा सल्फर डाइऑक्साइड है. ये गैसें ज्वालामुखी के बिल्कुल पास वाले इलाके में काफी ज्यादा संघनित हैं. इसके साथ ही यह दूसरे कणों के साथ मिल कर वॉग बना रही हैं जो ना सिर्फ पूरे बिग आइलैंड पर फैल सकता है बल्कि दूसरे द्वीपों पर भी.

वॉग की वजह से लोगों को आंखों में जलन, सिरदर्द और गले में तकलीफ हो सकती है. अस्थमा की समस्या वाले लोगों को अस्पताल में भर्ती करने की नौबत भी आ सकती है. जब गर्म लावा किसी पतली दरार से निकलता है तो कांच के कण बनाता है जिन्हें पेलेज हेयर या पेलेज टियर्स कहा जाता है. इसका नाम हवाई की ज्वालामुखी देवी पर है.

ये कण एक मील से ज्यादा दूर नहीं जाते इसलिए लोगों को ज्यादा खतरा नहीं है. एन95 या फिर केएफ94 मास्क के सहारे इनसे सुरक्षित रहा जा सकता है.

मौना लोआ से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन

1984 में मौना लोआ से हर दिन 15,000 टन कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस निकली थी. यह 2,400 स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल से होने वाले सालाना उत्सर्जन के बराबर है. वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी की सभी ज्वालामुखियों से निकलने वाला कार्बन डाइ ऑक्साइड, इंसान के हर साल पैदा करने वाले उत्सर्जन के एक फीसदी से भी कम है.

एनआर/वीके (एपी)


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