मानस के मंगल से सबका मंगल : ऋतंभरा
हमारा मानस मंगल होगा तो भारत का मंगल होगा और जब भारत का मंगल होगा तो सारे विश्व का मंगल होगा
रायपुर। हमारा मानस मंगल होगा तो भारत का मंगल होगा और जब भारत का मंगल होगा तो सारे विश्व का मंगल होगा। इसके ओज से परिवार, समाज और राष्ट्र खिलेगा। आशक्ति से बंधी हुई चित्त और चेतना कभी सुखी नहीं रह सकती है। भारत एक विचार ही नहीं जीवन पद्धति है जो किसी देश की सेवा में बांधा नहीं जा सकता। हम दुनिया को बदल रहे हैं कि दुनिया हमें बदल रही है, क्या हो गया है हम भारतीयों को? भारत के वातावरण में सात्विकता देश की नारियां ही पैदा कर सकती हैं। राम को पाना है तो पहले खुद को बदलना होगा।
श्री मंगल मानस अनुष्ठान के समापन दिवस पर रविवार को दीदी माँ ऋतंभरा ने अपनी वातसल्य वाणी से धर्म, राष्ट्र, समाज व परिवार के लिए कई महत्वपूर्ण सूत्र सत्संग के बीच देते हुए देश की सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए संकल्प भी दिलवाया। उन्होने कहा कि हम भारतीय है इसलिए जन्म और मृत्यु के शास्वत सत्य को जानते हैं।
आज जब हमारा परिचय पूछा जाता है तो नाम, जाति, शहर, परिवार से लेकर स्वभाव तक बता देते हैं, लेकिन हम यह क्यों नही बता पाते कि हम भारतीय है। जातिवाद-पार्टीवाद के फेर में कही आपकी ताकत चली तो नहीं गई। देश के अंदर देशद्रोही क्यों पूजे जा रहे हैं और देश भक्तों की उपेक्षा हो रही है। हमारी सामूहिक चेतना क्यों नहीं बन पाती, अगर चेतना को जागृत करना है तो परमात्मा का बोध चाहिए। भारत के वातावरण में सात्विकता नारियां ही पैदा कर सकती है और इसीलिए मंगल मानस जैसे अनुष्ठान का आयोजन किया गया है।
अंग्रेजियत के पीछे क्यों दौड़ रहे हैं
भारत एक विचार है-एक जीवन पद्धति है जो किसी देश की सेवा में बांधा नहीं जा सकता। लेकिन क्या हो गया है हम भारतीयों को कि अंग्रेजियत के पीछे दौड़ रहे हैं,मां-बाप चार साल के बच्चे से फर्राटेदार अंग्रेजी की अपेक्षा करते हैं। यह अंग्रेजी मानसिकता की गुलामी नहीं है तो और क्या है? हम दुनिया को बदल रहे हैं कि दुनिया हमें बदल रही है। कहां खो गई है हमारी सुख व शांति? हम अपने संतान को वह गहरे संस्कार क्यों नहीं दे पा रहे हैं जहां आत्मीयता-मानवता है।
आशक्ति से बंधी चित्त-चेतना में सुख नहीं
दीदी मां ऋतंभरा ने कहा कि आशक्ति से बंधी चित्त व चेतना कभी सुखी नहीं रह सकती है। दूसरों के रस वृत्ति लेने वाले चित्त से भी खुशी नहीं मिलती। हम स्वंय माया के बीच में घूम रहे हैं, इसलिए नियंत्रण की शक्ति को हमें जानना होगा।
राम से जुड़ने की मांगी दक्षिणा
दीदी मां ऋतंभरा ने श्रद्धालुओं से भगवान राम से जुड़ने की दक्षिणा मांगी। उन्होंने कहा कि राम को पाना है तो पहले खुद को बदलना होगा। राम ईंट पत्थरों में नहीं मिलते हैं। जहां प्रेम, सत्य, साधना, पवित्रता वहीं शबरी, अंगद, माता कौशल्या, जानकीजी, अहिल्या, अनुसईया के राम मिलेंगे। राम के बिना जीवन में चरमोत्कर्ष कहां? विवशताओं को समाप्त करने के लिए अपने हृदय में वातसल्य को जगाना होगा। हम भाग्यशाली है इसलिए कि ईश्वर के कृत से जुड़े हैं।
फूलों की होली से हुए भाव विभोर
फूलों की होली व बांसुरी की धुन पर नृत्य से इंडोर स्टेडियम में आज बृज का नजारा दिख रहा था। स्वंय दीदी मां ऋतंभरा, बृज के कलाकार व उपस्थित जनसमुदाय साझा रूप से नाचने-गाने लगे तो सारी दूरियां समाप्त हो गई। सभी राधे-राधे, जय श्री कृष्णा-जय श्रीराम के उद्घोष करते हुए ऐसे रम गए कि पूरा वातावरण भक्ति के माहौल में तब्दील हो गया। आयोजन समिति के रमेश मोदी, मनोज कोठारी, साध्वी शिरोमणि, साध्वी सम्पूर्णा समेत सारे सदस्य भी काफी देर तक श्रद्धालुओं के साथ नाचते रहे।
हवन व पूर्णाहूति
तीन दिवसीय मानस अनुष्ठान के समापन दिवस पर सुवह हवन व पूर्णाहूति हुई जिसमें यजमान परिवार के साथ सामान्यजन भी सैकड़ों की संख्या में शामिल हुए। श्रीमती वीणा सिंह, अंगुरी देवी अग्रवाल, सरिता अग्रवाल, साधना मूणत, लता उसेंडी, पुष्पा कोठारी, प्रीति मोदी, दीप्ति दुबे भी शामिल रहे।
विशिष्टजन रहे उपस्थित
रविवार को सत्संग में लोक निर्माण मंत्री राजेश मूणत, रामविचार नेताम, रामप्रताप सिंह, सुभाष राव, भोजराज नाग, प्रमोद दुबे, सुभाष राव शामिल रहे। समिति की ओर से जानकारी देते हुए मनोज कोठारी ने बताया कि समापन दिवस पर पूरे आयोजन में सहभागिता निभाने वाले सदस्यों का माँ सर्वमंगला का आर्शिवाद प्रदान करते हुए दीदी माँ ऋतंभरा ने सम्मानित किया। आज गायत्री परिवार व पतंजलि योग पीठ के सदस्य भी काफी संख्या में उपस्थित थे।


