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रोजमर्रा के जीवन में काम आने वाली संस्कृत के पाठ किताबों में शामिल किए जाएं: मनीष सिसोदिया

शिक्षाविद संस्कृत सीखने के प्रति बच्चों में रुचि जगाने, संस्कृत का बच्चों के जीवन के साथ समन्वय बिठाने की दिशा में काम करें

रोजमर्रा के जीवन में काम आने वाली संस्कृत के पाठ किताबों में शामिल किए जाएं: मनीष सिसोदिया
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नई दिल्ली। संस्कृत को रोजमर्रा के जीवन से जोड़ने की पहल करते हुए दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि आचार्यों और संस्कृत के विद्वानों से मेरा अनुरोध है कि बच्चों को पढ़ाई जाने वाली संस्कृत की किताबों की समीक्षा की जाए और उनमें ऐसे पाठ डाले जाएं जो हमारे रोजमर्रा के जीवन में काम आएं। शिक्षाविद संस्कृत सीखने के प्रति बच्चों में रुचि जगाने, संस्कृत का बच्चों के जीवन के साथ समन्वय बिठाने की दिशा में काम करें। जब रुचि पैदा होगी तो लोग आगे बढ़-चढ़कर संस्कृत सीखेंगे।

कला, भाषा व संस्कृति मंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली संस्कृत अकादमी की तरफसे आयोजित संस्कृत सप्ताह के उद्घाटन अवसर पर गुरुवार को कमानी ऑडिटोरियम में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि सच ये है कि संस्कृत को लेकर बच्चों से कहा जाता है कि इस विषय में अच्छा नंबर ले आओ जिससे ओवरआल परसेंटेज ठीक हो जाए। बच्चा संस्कृत सीख ले क्योंकि ये उसके जीवन में कुछ काम आएगा, क्लासरूम में फिलहाल ऐसा वातावरण नहीं है। हमें संस्कृत के लिए क्लासरूम्स में ऐसा वातावरण बनाने की जरूरत है।

उपमुख्यमंत्री ने कहा जब विज्ञान का टीचर अपने बच्चों को पढ़ाता है तो उसके दिमाग में ये एजेंडा रहता है कि अगर बच्चों ने ठीक से पढ़ लिया, समझ लिया तो डॉक्टर, इंजीनियर बन जाएंगे लेकिन हमारा समाज, संस्कृत के शिक्षक के सामने ऐसा कोई एजेंडा नहीं दे सका है।

उन्होंने कहा कि बस, सहज स्वीकृति से संस्कृत को लेकर एक ही एजेंडा है कि इस विषय में नंबर ठीक रहे तो परसेंटेज अच्छी रहेगी। यहीं से संस्कृत से अन्याय होना शुरू हुआ।

संस्कृत लोगों के जीवन से जुड़ा हुआ है, इस बात पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति पढऩे-लिखने के बाद दुकान चलाने लगे, पत्रकार, राजनेता बन जाए या कोई अन्य तरह के काम करने लगे तो उसकी सामान्य जिंदगी में एटम के स्ट्रक्चर, पाइथागोरस, इत्यादि कभी काम नहीं आते जबकि उसने पढ़ाई के दौरान उसने ये सब खूब रटे लेकिन संस्कृत के साथ ऐसा नहीं है। हमारे जीवन में जन्म, संस्कार, शादी-विवाह, गृह प्रवेश, पूजा-पाठ से लेकर मृत्यु तक में संस्कृत का प्रभाव है और हर जगह संस्कृत काम आती है। इसीलिए संस्कृत को रुचिकर बनाने और लोगों को इसे सीखने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है। दिल्ली संस्कृत अकादमी की तरफसे आयोजित संस्कृत सप्ताह का आयोजन 10 अगस्त तक चलेगा।


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