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मणिपुर और फ्रांस

सरकारों की संवेदनहीनता, भेदभाव पर उदासीनता और अन्याय के प्रति सहिष्णुता का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है

मणिपुर और फ्रांस
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सरकारों की संवेदनहीनता, भेदभाव पर उदासीनता और अन्याय के प्रति सहिष्णुता का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है, यह बात फ्रांस से लेकर भारत में मणिपुर तक देखी जा सकती है। मणिपुर पिछले दो महीने से धधक रहा है, लेकिन कमाल है कि दुनिया को लोकतंत्र का सबक सिखाने का दंभ करने वाले प्रधानमंत्री मोदी को इन दो महीनों में दो मिनट की फुर्सत भी मणिपुरियों की ओर देखने की नहीं मिली। ये शायद उनके लोकतंत्र की परिभाषा है, जहां चुनाव प्रचार करना प्रधानमंत्री का प्रधान काम बन गया है और अगर उससे वक्त मिले तो देश के मसले सुलझाने पर वे ध्यान दें।

फिलहाल उनकी प्राथमिकता में मणिपुर नहीं है और ये कहना कठिन है कि कब जाकर इस सुंदर, प्राकृतिक संपदा से भरपूर, सीमांत राज्य में शांति बहाली होगी। मोदीजी के कार्यक्रमों की सबसे तेज और पल-पल की खबर देने वाले पत्रकार भी मणिपुर की बात नहीं कर रहे हैं। क्योंकि उनके मुखिया इस बारे में कुछ नहीं कह रहे, तो वे किस बात की रिपोर्टिंग करेंगे। वैसे अभी ये भी नहीं पता कि प्रधानमंत्री मोदी ने फ्रांस में चल रही हिंसा पर कुछ कहा या नहीं। उन्हें विश्वनेता बनने का जुनून है, तो हो सकता है वे फ्रांस के लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करें और फ्रांस की सरकार को हर संभव मदद का आासन दे दें। देश के कई मीडिया चैनलों और पत्रकारों ने फ्रांस पर चर्चा-परिचर्चा शुरु भी कर दी है। मणिपुर न सही, फ्रांस में हो रही हिंसा पर तो बात हो ही सकती है, उससे भाजपा पर कोई सवाल नहीं उठेंगे।

गौरतलब है कि पिछले मंगलवार को 17 बरस के नाहेल नाम के किशोर को पेरिस के नॉन्ते में ट्रैफिक सिग्नल पर नहीं रुकने के कारण पुलिस ने गोली मार दी। आरोपी पुलिसकर्मी का कहना है कि उसे डर था कि वह लड़का अपनी कार से किसी को कुचल न दे। फ्रांस समेत कई यूरोपीय देशों में नस्लभेद का जो दौर चला है, उसमें पुलिसकर्मी को ऐसे ही किसी डर से ग्रसित होना था।

नाहेल मुस्लिम था, अरबी लोगों की तरह उसकी पहचान की जा सकती थी, तो जाहिर है पुलिसकर्मी ने पूर्वाग्रह के कारण उसे केवल अपने डर की वजह से गोली मार दी। नाहेल किसी और शक्ल-सूरत का होता तो शायद ऐसा नहीं होता। भारत के प्रधानमंत्री कपड़ों से पहचान का आह्वान करते हैं, फ्रांस में शक्ल से पहचान की जा रही है, उधर अमेरिका में तो यह काम बरसों से हो ही रहा है।

ब्लैक लाइव मैटर्स अभियान बीच-बीच में ऐसी प्रवृत्ति के लिए चुनौती खड़ी करते हैं, लेकिन दुनिया के हालात तब तक नहीं सुधरेंगे, जब तक ब्लैक, व्हाइट, ग्रे, ब्राउन, यलो हर तरह की लाइफ के मैटर करने का भाव लोगों में नहीं भरेगा। भारतीय परंपरा के शब्दों में कहें तो प्राणि मात्र पर दया का भाव जब तक मानव नहीं अपनाएगा, तब तक ऐसे अन्याय होते ही रहेंगे।

नाहेल की मौत अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना की एक और घटना की तरह रफा-दफा नहीं हुई, बल्कि इस बार फ्रांस इस एक मुद्दे के कारण सुलग उठा। पेरिस को प्रेम के लिए दुनिया उपयुक्त स्थान मानती है, लेकिन आज उसी पेरिस में लोगों को घरों में रहने का फरमान जारी हुआ है और सड़कों पर पुलिस की गश्त चल रही है। मर्साय, ल्योन और ग्रेनोब्ले जैसे कई शहरों में दंगे, लूटपाट, आगजनी की घटनाएं हो रही हैं। कई वाहनों को दंगाइयों ने क्षतिग्रस्त कर दिया है। फ्रांस की पुलिस ने अब तक 2 हजार से अधिक लोगों को हिरासत में ले लिया है।

पुलिस के रवैये से नाराज लोग नाहेल को इंसाफ दिलाने की मांग पर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर प्रदर्शनकारियों की ओर एकजुटता की अपील की वजह से भी लोग बड़ी तादाद में सड़कों पर निकल रहे हैं. इससे पुलिस का काम और मुश्किल होता जा रहा है। ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ की बैठक छोड़ राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों फ्रांस लौट आए, उन्होंने अपना जर्मनी दौरा भी रद्द कर दिया।

उन्होंने नाहेल की मौत को माफी लायक न बताते हुए उसकी निंदा की थी। लेकिन अब राष्ट्रपति मैक्रों ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि 'एक नाबालिग की मौत का दुरुपयोग अस्वीकार्य है।' उन्होंने हिंसा पर लगाम लगाने के लिए सोशल नेटवर्कों के साथ मिल कर काम करने की बात कही है। साथ ही हिंसा कर रहे नाबालिगों के मां-बाप से भी उनकी जिम्मेदारी लेने को कहा है।

सरकार के मुताबिक, हिंसा करने वालों में एक तिहाई संख्या नाबालिगों की है।राष्ट्रपति मैक्रों ने खुद को नीरो होने का ठप्पा लगाने से बचा लिया है, क्योंकि वे हालात पर नजर रख रहे हैं। देश के एक हिस्से को जलता छोड़ विदेश यात्रा पर नहीं निकल गए।

लेकिन फ्रांस की सरकार पर यह आरोप तो बनता ही है कि देश में नस्लीय और जातीय हिंसा की सुलग रही चिंगारी को न संभालने के कारण आज यह आग लगी है। अब इस आग की चपेट में फिर से अल्पसंख्यक समुदाय आता दिख रहा है। क्योंकि अब कई यूरोपीय देशों के नेता इसे अफ्रीकी और मुस्लिम शरणार्थियों की समस्या से जोड़ रहे हैं।

नीदरलैंड के दक्षिणपंथी सांसद गिर्ट विल्डर्स ने ट्वीट किया 'अगर आप जिहाद का आयात करेंगे तो हैरान मत होइए कि आप खिलाफत बन जाएं।' पोलिश नेता डोमिनिक टार्जिंस्की का एक पुराना साक्षात्कार वायरल हो रहा है, जिसमें वो कहते हैं कि हमने 20 लाख यूक्रेनियों को शरण दी है जो शांति से यहां रह रहे हैं और काम कर रहे हैं। अवैध मुस्लिमों के न होने से हमारा देश सुरक्षित है। इस तरह के बयान बता रहे हैं कि एक बार फिर अल्पसंख्यकों को निशाना साधने के मौके तलाशे जा रहे हैं। वैसे फ्रांसीसी सरकार और प्रशासन के अलावा समाज में प्रतिष्ठा रखने वाले लोग भी शांति के लिए प्रयास कर रहे हैं। फ्रांस के फुटबॉल स्टार किलियान एमबापे ने शांति की अपील करते हुए कहा है कि हिंसा से कोई समाधान नहीं निकल सकता। उन्होंने लोगों से मृतक का शोक मनाने, आपस में बातचीत कर मसला सुलझाने और हिंसा में नष्ट हुई चीजों को दोबारा खड़ा करने की अपील की है। काश यही जज्बा भारत में स्टार कहलाने वाले लोग दिखा पाते।


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