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स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाएं

72वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का देसवासियों से आह्वान

स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाएं
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नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाने के लिए लोगों को गरीबी एवं असमानता से मुक्ति दिलाने, विकास के नए अवसर उपलब्ध कराने, महिलाओं की आजादी को व्यापक बनाने एवं उनके वास्ते सुरक्षित वातावरण तैयार करने तथा युवाओं की प्रतिभाओं को उभारने का आह्वान किया है। श्री कोविंद ने 72वें स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर आज राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा कि यह आजादी पूर्वजों एवं सम्मानित स्वाधीनता सेनानियों के वर्षों के त्याग और वीरता का परिणाम है। उन्होंने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें ऐसे देशभक्तों की विरासत मिली है। उन्होंने हमें एक आजाद भारत सौंपा है। साथ ही, उन्होंने कुछ ऐसे काम भी सौंपे हैं, जिन्हें हम सब मिलकर पूरा करेंगे। देश का विकास करने तथा गरीबी और असमानता से मुक्ति प्राप्त करने के महत्वपूर्ण काम हम सबको करने हैं।

मजबूत राष्ट्र निर्माण के लिए सभी का विकास जरूरी

उन्होंने देश के विकास के लिए प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता सेनानी की तरह अपना योगदान करने की अपील करते हुए कहा कि ऐसे प्रयास होते रहने चाहिए जिससे देश के विकास के नए-नए अवसर प्राप्त हो सकेें। मजबूत भारत बनाने में किसानों, सैनिकों, पुलिसकर्मियों और महिलाओं की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि राष्ट्र निर्माण के लिए इन सभी का विकास जरूरी है।

समाज में महिलाओं की विशेष भूमिका

राष्ट्रपति ने समाज में महिलाओं की विशेष भूमिका की चर्चा करते हुए कहा कि कई मायनों में, महिलाओं की आजादी को व्यापक बनाने में ही देश की आजादी की सार्थकता है। यह सार्थकता, घरों में माताओं, बहनों और बेटियों के रूप में, तथा घर से बाहर अपने निर्णयों के अनुसार जीवन जीने की उनकी स्वतंत्रता में देखी जा सकती है। उन्हें जीने तथा अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करने का सुरक्षित वातावरण तथा अवसर मिलना ही चाहिए।

'स्वदेशी' पर बहुत जोर दिया करते थे महात्मा गांधी

श्री कोविंद ने कहा कि महात्मा गांधी के लिए स्वाधीनता आंदोलन केवल राजनैतिक सत्ता प्राप्त करने का संग्राम नहीं था, बल्कि निर्धन से निर्धन व्यक्ति को सशक्त बनाने, अनपढ़ लोगों को शिक्षित करने तथा हर व्यक्ति, परिवार, समूह और गांव के लिए सम्मान के साथ जीवन जीने के अधिकार का संघर्ष था। उन्होंने कहा कि गांधी जी 'स्वदेशी' पर बहुत जोर दिया करते थे।


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