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कथनी-करनी के बीच फासले का भाषण

देश की आजादी के 77 वर्ष पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लगातार 11वीं बार लाल किले की प्राचीर से भाषण करते हुए विकास सम्बन्धी अनेक बातों का स्पर्श किया

कथनी-करनी के बीच फासले का भाषण
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देश की आजादी के 77 वर्ष पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लगातार 11वीं बार लाल किले की प्राचीर से भाषण करते हुए विकास सम्बन्धी अनेक बातों का स्पर्श किया। किसानों की खुशहाली से लेकर महिलाओं की सुरक्षा और भारत को विकसित बनाने से लेकर पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में होने वाले घटनाक्रमों पर उन्होंने विचार रखे। वर्तमान दौर को 'भारत का स्वर्णिम कालखंड' बतलाते हुए मोदी ने कहा कि 'इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना है।' 2047 तक भारत के विकसित राष्ट्र बन जाने का फिर से भरोसा जताते हुए उन्होंने कहा कि जब 40 करोड़ लोगों ने देश को आजाद करा दिया तो 140 करोड़ लोग बहुत कुछ कर सकते हैं। ऐसी अनेक अच्छी-अच्छी बातें उन्होंने अपने रिकॉर्ड-तोड़ 98 मिनट के उद्बोधन में की। बहुत से विषय वे ही थे जो वे टुकड़ों में अलग-अलग मंचों से कहते आये हैं। पीएम ने भारत की अपार क्षमता, विकास, नये संकल्प, सरकार की प्रतिबद्धता तथा रिफॉर्म-परफॉर्म-ट्रांसफॉर्म का फार्मूला किंचित अलग शब्दों में प्रस्तुतीकरण किया।

लोकसभा-2024 के चुनाव में पूरा बहुमत न पाने के कारण दो दलों के समर्थन पर चल रही सरकार के मुखिया होने के नाते उन्हें जिस कमजोरी का एहसास है, उसका प्रतिबिम्ब उनके भाषण में साफ झलक रहा था। 2014 से लेकर 2023 तक के दो कालावधियों में इसी मंच का उपयोग वे जिस कड़ी शब्दावली का इस्तेमाल करते हुए विपक्ष तथा सरकार के विचारों से इत्तेफ़ाक न रखने वालों के लिये करते रहे हैं, वह तेवर भी ज्यादा नज़र नहीं आया। हालांकि बहुत सख्त लहज़ा न अपनाते हुए भी उन्होंने विपक्ष को ऐसे 'कुछ लोगों' के रूप में इंगित किया 'जो विकास नहीं होना देना चाहते।' उन्होंने विपक्ष को यह कहकर कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की कि 'जब तक उनका खुद का भला न हो वे दूसरों का भला नहीं देख सकते।' इस बात को आगे बढ़ाते हुए मोदी ने देश को चेताया कि ऐसे लोगों से उन्हें बचना होगा। विकास को अपनी 'प्रतिबद्धता' बताया, न कि कोई 'राजनीतिक मजबूरी'। उनका कहना था कि वे जो भी कर रहे हैं वह राजनीतिक गुणा-भाग करते हुए नहीं वरन 'नेशन फर्स्ट' की थ्योरी काम करते हुए कर रहे हैं। रिफॉर्म्स (सुधारों) पर तो उनका दावा था कि इस पर घंटों चर्चा हो सकती है लेकिन अगर देशवासी इसका अंदाज़ा लगाना चाहें तो केवल बैंकिंग सेक्टर देख सकते हैं जिसमें बड़े सुधार हुए हैं।

भ्रष्टाचार का ज़िक्र तो हुआ पर उस पर उतना वक्त और ऊर्जा मोदी जी ने नहीं लगाई, जितनी वे करते आये हैं। यह सम्भवत: वही 'राजनीतिक मजबूरी' है जिसे वे नकार तो रहे हैं लेकिन यह सर्वविदित है कि इस बार के लोकसभा के चुनाव में उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली जिसके कारण वे तेलुगु देसम पार्टी और जनता दल यूनाइटेड पर आश्रित हैं।

ध्रुवीकरण के लिये भी मोदी इस मंच का बेधड़क इस्तेमाल करते आये हैं। इस बार उन्होंने वैसा खुल्लमखुल्ला तो नहीं किया परन्तु बांग्लादेश में जारी घटनाओं का उल्लेख कर कहा कि वहां के अल्पसंख्यकों के साथ जो हो रहा है, वह रूकना चाहिये क्योंकि इसे लेकर भारत के 140 करोड़ लोग चिंतित हैं। वे हिन्दू सेंटिमेंट को जगाने की कोशिश तो कर रहे थे पर देखना यह होगा कि उनके इस बयान की बांग्लादेश में क्या प्रतिक्रिया होती है। वहां सरकार के नुमाइंदे इस पर खेद जता चुके हैं और मंदिरों में जाकर वहां के अल्पसंख्यकों की विश्वास बहाली कर रहे हैं। मोदी ने कहा कि महिलाओं के साथ होते अत्याचारों से जनसामान्य आक्रोशित है। इस पर देश, समाज और राज्य सरकारों को गम्भीरता से विचार करना होगा। उत्पीड़कों के खिलाफ शीघ्रातिशीघ्र और कड़ी कार्रवाई की उन्होंने अपेक्षा जतलाई। न्याय में विलम्ब होने पर भी चिंतित होते हुए पीएम ने कहा कि न्याय व्यवस्था में सुधार किये जाने की आवश्य़कता है।

पिछले ज्यादातर भाषणों की ही तरह 15 अगस्त, 2024 का भी उनका उद्बोधन विरोधाभासों और विसंगतियों से भरा था। 2047 तक विकसित भारत के पीछे उन्होंने समर्पण और कड़ी मेहनत बताई, लेकिन यह नहीं बतलाया कि यह मेहनत किसकी ओर से किये जाने की आवश्कता है। आम जनता तो जीवन-यापन के लिये पहले से कड़ी मेहनत कर रही है। विकास के जिस ब्लू प्रिंट की बात उन्होंने कही; और पहले भी करते आये हैं, वह कौन सा ब्लू प्रिंट है, संसद में उस पर चर्चा हुई या नहीं, विशेषज्ञों को उसे तैयार करने में साथ लिया गया या नहीं- यह सब कुछ अनुत्तरित है। यह विकास कब होगा, कैसे होगा यह भी अबूझ है- जो दिखलाई दे रहा है वह यही कि 80 करोड़ लोग मुफ्त 5 किलो शासकीय राशन पर जिंदा है। ऐसे में मजबूत और विकसित भारत मोदी जी किस प्रकार से बनायेंगे- यह पहेली है।

फिर, महिला सुरक्षा को लेकर उन्होंने जो बात कही, उसे लेकर आम चर्चा है कि मणिपुर में जो कुछ हुआ उस पर प्रधानमंत्री ने कभी एक शब्द तक नहीं कहा। संसद में इस पर चर्चा तक नहीं करने दी गयी। साफ है कि उनका इशारा पश्चिम बंगाल समेत केवल उन्हीं राज्यों की ओर है जहां विरोधी दलों की सरकार है। वैसे भारतीय जनता पार्टी प्रशासित प्रदेशों में ही महिलाओं के खिलाफ सर्वाधिक अत्याचार होते हैं। यह सरकारी आंकड़े कहते हैं। जहां तक न्याय प्रक्रिया की सुस्ती दूर करने की बात है, तो सम्भवत: वे भूल गये कि यह उत्तरदायित्व उनका ही है जिस पर उन्होंने पिछले दस वर्षों तक कोई ध्यान नहीं दिया। उल्टे, वे निर्दोषों को फंसाते रहे हैं।


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