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मुंबई का मॉनसून अब जानलेवा: गरीबों पर सबसे बड़ा खतरा

एक ताजा शोध में कहा गया है कि मुंबई में जलवायु परिवर्तन से मॉनसूनी बारिश और घातक हो रही है. हर साल हजारों जानें जाती हैं, जिनमें ज्यादातर गरीब बस्तियों के लोग शामिल हैं. बढ़ते समुद्री स्तर से यह खतरा और बढ़ेगा

मुंबई का मॉनसून अब जानलेवा: गरीबों पर सबसे बड़ा खतरा
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एक ताजा शोध में कहा गया है कि मुंबई में जलवायु परिवर्तन से मॉनसूनी बारिश और घातक हो रही है. हर साल हजारों जानें जाती हैं, जिनमें ज्यादातर गरीब बस्तियों के लोग शामिल हैं. बढ़ते समुद्री स्तर से यह खतरा और बढ़ेगा.

एक ताजा शोध में कहा गया है कि मुंबई में जलवायु परिवर्तन से मॉनसूनी बारिश और घातक हो रही है. हर साल हजारों जानें जाती हैं, जिनमें ज्यादातर गरीब बस्तियों के लोग शामिल हैं. बढ़ते समुद्री स्तर से यह खतरा और बढ़ेगा.

शिकागो यूनिवर्सिटी के ताजा शोध में कहा गया कि मुंबई में जलवायु परिवर्तन से मॉनसूनी बारिश और घातक हो रही है. इस कारण हर साल हजारों गरीबों की जान जा रही है.

भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में जलवायु परिवर्तन के कारण मॉनसूनी बारिश और बाढ़ अब पहले से कहीं अधिक घातक साबित हो रही है, खासकर गरीब आबादी के लिए. यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, समुद्र-स्तर में वृद्धि और भारी बारिश के चलते मुंबई में बाढ़ का खतरा लगातार बढ़ रहा है.

रिपोर्ट में 2.2 करोड़ की आबादी वाले इस महानगर के विस्तृत आंकड़ों का विश्लेषण कर यह अनुमान लगाया गया कि बारिश और बाढ़ का मृत्यु दर पर कितना असर पड़ता है. शोध में पाया गया कि बस्तियों में रहने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, क्योंकि उनके पास सुरक्षित आवास और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है.

विशेषज्ञों का कहना है कि मुंबई का यह संकट दुनिया के अन्य तटीय महानगरों के लिए भी चेतावनी है. जैसे-जैसे धरती गर्म हो रही है, भारी बारिश और समुद्र-स्तर में बढ़ोतरी से जकार्ता, मनीला और लागोस जैसे शहरों में भी सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गंभीर खतरे मंडरा रहे हैं.

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क्यों बढ़ रहा खतरा?

दक्षिण एशिया की वार्षिक मॉनसूनी बारिश एक अरब से अधिक लोगों की जीवनरेखा है, लेकिन जलवायु परिवर्तन इसे लगातार अनियमित और घातक बना रहा है. खराब बुनियादी ढांचे के कारण इसका असर और भी गंभीर हो जाता है, जिससे बाढ़ और जलभराव जैसी आपदाएं आम हो गई हैं.

विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई में बारिश से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है. समुद्र-स्तर में वृद्धि और भारी वर्षा के चलते भारत की वित्तीय राजधानी में बाढ़ का खतरा लगातार बढ़ रहा है, जो गरीब और असुरक्षित आबादी के लिए बड़ा संकट बन गया है.

स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे की चुनौतियां

रिपोर्ट में बताया गया कि मुंबई में बारिश से होने वाली बाढ़ गरीबों, छोटे बच्चों और महिलाओं जैसे कमजोर वर्गों पर सबसे ज्यादा असर डाल रही है. शोधकर्ताओं ने पाया कि मॉनसून के दौरान होने वाली कुल मौतों में लगभग आठ प्रतिशत मौतें बाढ़ के कारण होती हैं. 2006 से 2015 के बीच हर साल 2,300 से 2,700 लोगों की जान गई, जो कैंसर से होने वाली मौतों के बराबर है.

मुंबई तीन तरफ से समुद्र से घिरी है और हर साल भारी बारिश और ज्वार भाटे के मेल से गंभीर बाढ़ का सामना करती है. जब तेज बारिश के साथ ज्वार भाटा आता है, तब हालात सबसे घातक हो जाते हैं. शहर का खराब ड्रेनेज सिस्टम इस संकट को और बढ़ा देता है.

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भविष्य के लिए चेतावनी

रिपोर्ट कहती है, "भारी बारिश और खासकर जब ये ज्वार भाटा के साथ हो, तब ये सबसे घातक साबित होती है." शोध के अनुसार, इन प्रभावों में संपत्ति की असमानता झलकती है, यह बताते हुए कि बारिश से मरने वालों में 85 प्रतिशत लोग झुग्गी क्षेत्रों में रहते हैं.

शोध के सह-लेखक अश्विन रोडे ने कहा, "हमने बार-बार देखा है कि बारिश और बाढ़ से ट्रैफिक से जुड़े हादसे, करंट लगना और डूबने जैसी घटनाएं होती हैं. लेकिन खराब ड्रेनेज और कमजोर सफाई व्यवस्था के कारण जमा हुए पानी से डेंगू, मलेरिया और डायरिया जैसी बीमारियां भी फैलती हैं."

रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि अगर समय पर कदम नहीं उठाए गए, तो समुद्र का बढ़ता स्तर आने वाले दशकों में बारिश से होने वाली मौतों को 20 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि मुंबई को मजबूत ड्रेनेज सिस्टम, बेहतर शहरी योजना और जलवायु अनुकूलन रणनीतियों की सख्त जरूरत है.


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