महाराष्ट्र का गांव हुआ कोरोना मुक्त, केंद्र से मिली सराहना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को जहां भारत के हर एक गांव को कोरोना मुक्त कराए जाने की बात कही, वहीं इस कड़ी में महाराष्ट्र का एक छोटा सा गांव कोरोना महामारी के खिलाफ पहले ही अपनी लड़ाई जीत चुका

नांदेड़। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को जहां भारत के हर एक गांव को कोरोना मुक्त कराए जाने की बात कही, वहीं इस कड़ी में महाराष्ट्र का एक छोटा सा गांव कोरोना महामारी के खिलाफ पहले ही अपनी लड़ाई जीत चुका है।
लगभग 6,000 लोगों की जनसंख्या वाले नांदेड जिले का भोसी गांव सफलतापूर्वक अपना परचम लहरा चुका है। इसके लिए केंद्र ने इसकी सराहना भी की है। यह राज्य के लिए एक दूसरी उपलब्धि है, क्योंकि इससे पहले अहमदनगर में लगभग 1,600 लोगों की आबादी वाला गांव हिवरे बाजार भी अब कोरोना मुक्त हो चुका है।
यहां तक कि बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) को भी केंद्र, कोर्ट और विदेशों से कोविड के दौरान अपने किए गए कामकाज के चलते तारीफें मिल चुकी हैं। खासकर धारावी जैसे सघन इलाके वाले क्षेत्र में इसने जिस तरह से महामारी को काबू में लाया है, वह खूब सुर्खियां बटोर रही हैं।
मार्च में भोसी में आयोजित एक विवाह समारोह में एक लड़की कोविड पॉजिटिव पाई गई थी। इसके बाद पांच और लोग कोरोना संक्रमित हुए थे। इससे पूरे गांव में डर का माहौल पैदा हो गया था।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, "टेस्टिंग सुविधाओं का पर्याप्त न होना और स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में कमी होने के चलते शहरी क्षेत्रों की तुलना में गांव में संक्रमण के प्रसार को रोकना अधिक जटिल है।"
इस कदर मामलों के सामने आने के बाद भोसी जिला परिषद के सदस्य प्रकाश डी. भोसीकर ने ग्राम पंचायत और स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से गांव में एक कोविड स्वास्थ्य शिविर आयोजित करने की पहल की।
गांव के सरपंच तारबाई कल्याणकर ने कहा, "लोगों में कराए गए रैपिड एंटीजन टेस्ट और आरटी-पीसीआर से 119 और नए कोरोना के मामले सामने आए। इससे स्थानीय लोग सकते में आ गए। हैरान करने वाली बात यह थी कि इस मार्च के महीने की शुरुआत में गांववासियों द्वारा स्वेच्छा से किए गए जनता कर्फ्यू के बाद ही मामलों में इस कदर वृद्धि हुई थी।"
गांव के नेताओं ने आपस में विचार-विमर्श किया और निष्कर्ष निकाला कि आइसोलेशन ही कोविड के चेन को तोड़ने और दूसरों को संक्रमित होने से बचाने की कुंजी है।
अधिकारी ने कहा, "तदनुसार स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार सभी स्पशरेन्मुख या हल्के से संक्रमित व्यक्तियों को 15-17 दिनों की अवधि के लिए अपने खेतों में जाने से मना किया गया और खुद को अलग-थलग रखने का निर्देश दिया गया।"
खेतिहर मजदूरों और अन्य भूमिहीन व्यक्तियों को 2,500 वर्ग फुट पर फैले भोसीकर के अपने खेत पर बने एक अस्थायी शिविर में स्थानांतरित कर दिया गया। एक ग्राम स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी स्वयंसेवी आशाताई द्वारा प्रतिदिन खेतों का दौरा किया जाता था। ये वहां रह रहे लोगों से बातचीत करते थे। वहां उन्हें भोजन और दवाएं भी उपलब्ध कराई जाती थीं।
15 से 20 दिनों तक अलग-थलग रहने के बाद जब इनका टेस्ट कराया गया, तो रिपोर्ट नेगेटिव आई।
अधिकारी ने बताया कि भोसी की इस सफल कहानी को केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय द्वारा सर्वश्रेष्ठ अभ्यास के रूप में मान्यता दी गई है।


