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महाराष्ट्र : विद्यालयों की पुस्तकों में पढ़ाया जाएगा आरपीएफ महिलाकर्मी के कारनामे

मुंबई में रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) की एक महिलाकर्मी को उनके काम के लिए अनूठी उपलब्धि हासिल हुई है

महाराष्ट्र : विद्यालयों की पुस्तकों में पढ़ाया जाएगा आरपीएफ महिलाकर्मी के कारनामे
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मुंबई। मुंबई में रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) की एक महिलाकर्मी को उनके काम के लिए अनूठी उपलब्धि हासिल हुई है। बाल-सुरक्षा के उनके कामों को महाराष्ट्र के उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की पुस्तकों में पढ़ाया जाएगा। आरपीएफ की उपनिरीक्षक रेखा मिश्रा (32) मध्य रेलवे में कार्यरत हैं। उन्होंने पिछले कुछ सालों में सैंकड़ों निराश्रित, लापता, अपहृत या घर से भागे हुए बच्चों को विभिन्न रेलवे स्टेशनों से बचाया है।

बच्चों को बचाने के उनके साहसिक कार्यो और इस दौरान उनके सामने आने वाली बाधाओं को इस शैक्षणिक सत्र में महाराष्ट्र राज्य बोर्ड के कक्षा 10 में मराठी में पढ़ाया जाएगा।

उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के एक सैन्य अफसर के खानदान से ताल्लुक रखने वाली मिश्रा 2014 में आरपीएफ में नियुक्त हुई थीं और वर्तमान में प्रसिद्ध क्षत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) पर कार्यरत हैं।

मध्य रेलवे के महाप्रबंधक डी.के. शर्मा द्वारा सोमवार को एक विशेष समारोह आयोजित कर उनके कामों के लिए उन्हें सम्मानित किया गया। उनके कार्यो की ख्याति फैल चुकी है।

शर्मा ने कहा, "वह बहुत अच्छा काम कर रही हैं और इसके साथ ही अपने नेक कार्यो से समाज सेवा भी। पाठ्यक्रम में उन्हें शामिल करने से नई पीढ़ी जरूर प्रेरित होगी।"

मिश्रा ने कहा, "यह मेरे लिए बड़े गर्व की बात है। ज्यादातर बच्चे घर पर परिजनों से लड़ाई होने के बाद भाग जाते हैं. कुछ फेसबुक पर बने दोस्तों से मिलने के लिए भागते हैं या कभी-कभी तो अपने पसंदीदा फिल्मी कलाकारों से मिलने के लिए भी भागते हैं और कुछ मुंबई की चकाचौंध से प्रभावित होते हैं। कुछ बेचारे बच्चों का तो अपहरण भी हुआ है।"

उन्होंने कहा कि उनकी टीम सुनिश्चित करती है कि ऐसे बच्चे खासकर आसानी से फुसलाए जाने वाले बच्चे (13-16 साल) गलत हाथों में पहुंचकर परेशानी में न पड़ जाएं। टीम का लक्ष्य होता है कि बच्चों को उनके परिवार से मिलाना।

पिछले चार सालों में उन्होंने तथा उनकी चौकन्नी टीम ने ऐसे 430 से ज्यादा बच्चों को बचाया जिनमें 45 नाबालिग बच्चियां, एक मूक-बधिर बच्चा तथा कई ऐसे बच्चे भी थे जो हिंदी नहीं जानते थे। ऐसे बच्चों के लिए दुभाषिए को बुलाया गया।

उन्होंने बताया कि उनमें ज्यादातर बच्चे उत्तर प्रदेश और बिहार के थे तथा बाकी अन्य राज्यों से थे। ऐसे बच्चों की संख्या गर्मी की छुट्टियों के समय अक्सर बढ़ जाती थी।

आरपीएफ जहां दो दर्जन से ज्यादा बच्चों को उनके परिजनों से मिलाने में सफल रही, बचे हुए बच्चों को उनके परिजनों का पता लगने तक शहर में स्थित बाल सुधार गृहों में रखा जाता है।


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