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मद्रास हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूर्व मंत्री बालाजी के खिलाफ कार्यवाही पर रोक से किया इनकार

मद्रास उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने प्रधान सत्र और पीएमएलए मामलों के लिए विशेष अदालत में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत तमिलनाडु के पूर्व मंत्री वी. सेंथिल बालाजी के खिलाफ ईडी द्वारा दायर मामले की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया

मद्रास हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूर्व मंत्री बालाजी के खिलाफ कार्यवाही पर रोक से किया इनकार
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चेन्नई। मद्रास उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने प्रधान सत्र और पीएमएलए मामलों के लिए विशेष अदालत में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत तमिलनाडु के पूर्व मंत्री वी. सेंथिल बालाजी के खिलाफ ईडी द्वारा दायर मामले की कार्यवाही पर रोक लगाने से बुधवार को इनकार कर दिया। बालाजी इस समय जेल में हैं।

न्यायमूर्ति एम.एस. रमेश और न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की खंडपीठ ने बुधवार को वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और एस. प्रभाकरन से कहा कि अंतरिम रोक के लिए दायर याचिका पर ईडी द्वारा जवाब दाखिल किए जाने के बाद ही विचार किया जा सकता है।

अदालत ने अधिवक्ताओं को बताया कि सत्र न्यायालय द्वारा मुकदमे को स्थगित किए जाने से इनकार करने के खिलाफ आरोपी ने एक पुनरीक्षण याचिका दायर की थी, जो लंबित है।

पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ए.आर.एल. सुंदरेशन को यह सुनिश्चित करने को कहा कि जवाबी हलफनामा 25 अप्रैल तक दाखिल किया जाए।

अदालत ने ईडी के विशेष लोक अभियोजक एन. रमेश को आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में जांच एजेंसी की ओर से जारी नोटिस का जिक्र का भी करने का निर्देश दिया।

बहस के दौरान वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने इस बात पर जोर दिया कि मनी लॉन्ड्रिंग मामले की सुनवाई कैश-फॉर-जॉब मामले की सुनवाई पूरी होने तक टाल दी जानी चाहिए।

उन्होंने तर्क दिया कि अगर आरोपी व्यक्ति को ईडी के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दोषी ठहराया जाता है और फिर चेन्नई सेंट्रल क्राइम ब्रांच पुलिस द्वारा दर्ज कैश-फॉर-जॉब मामले से बरी कर दिया जाता है तो गंभीर अन्याय होगा।

रोहतगी ने कहा, "यह घोड़े के आगे गाड़ी लगाने जैसा होगा... यदि याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया जाता है और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल भेज दिया जाता है, लेकिन अंतत: विधेय अपराध में बरी कर दिया जाता है, तो कोई भी घड़ी को पीछे नहीं रख सकता।"

उन्होंने यह भी बताया कि पीएमएलए तब तक लागू नहीं किया जा सकता, जब तक कि व्‍यक्ति ने पहले से कोई विधेय अपराध न किया हो।

हालांकि, डिवीजन बेंच ने तर्कों के आधार पर अंतरिम रोक की अनुमति नहीं दी।


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