उमंग सिंघार ने एसआईआर पर उठाए सवाल, कहा-ये लोकतंत्र की जड़ों पर खतरा
मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर सवाल उठाते हुए आज कहा कि ये लोकतंत्र की जड़ों पर खतरा है

सिंघार ने एसआईआर पर उठाए सवाल
भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर सवाल उठाते हुए आज कहा कि ये लोकतंत्र की जड़ों पर खतरा है।
उन्होंने यहां संवाददाताओं से चर्चा के दौरान कहा कि चुनाव आयोग का दावा है कि 51 करोड़ मतदाताओं की घर-घर गिनती मात्र 30 दिनों (4 नवम्बर–4 दिसंबर 2025) में पूरी कर ली जाएगी। प्रश्न उठता है कि इतनी विशाल व जटिल प्रक्रिया इतने कम समय में कैसे संभव है? यह शीघ्रता आयोग की ज़मीनी समझ या नीतिगत जल्दबाज़ी को दर्शाती है, जिससे लाखों वैध मतदाता छूट सकते हैं।
उन्होंने कहा कि ये मात्र 12 राज्यों में क्यों और बाकी राज्यों में क्यों नहीं है। चयनमानदण्डों का पारदर्शी खुलासा सार्वजनिक रूप से नहीं किया गया, जिससे निर्णय की पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं। असम को इससे बाहर रखने के पीछे एनआरसी का बहाना संदिग्ध है क्योंकि दोनों की बिल्कुल भिन्न प्रक्रियाएँ हैं। ऐसे विशेष व्यवहार से पक्षपात की आशंका बढ़ती है।
सिंघार ने कहा कि एसआईआर बिहार में लागू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट को बार-बार हस्तक्षेप करना पड़ा। आयोग द्वारा "सफलता" के दावों का समर्थन करने के लिए पारदर्शी डेटा नहीं दिया गया। राष्ट्रीय जनगणना अक्टूबर 2026 में आरंभ होगी, ऐसे में एसआईआर की अत्यधिक जल्दबाज़ी से आयोग की मंशा पर भी प्रश्न उठते हैं।
उन्होंने मध्यप्रदेश के संदर्भ में कहा कि यहां करीब 22 प्रतिशत आदिवासी आबादी जिनमें बहुसंख्यक दूरदराज़ क्षेत्रों में रहते हैं, जहां डिजिटल और दस्तावेज़ी पहुंच सीमित है, ऐसे लाखों आदिवासी मतदाता बिना गलती के सूची से हट सकते हैं। आयोग ने एसआईआर के लिए जिन 13 दस्तावेजों की सूची दी है, उनमें वन अधिकार दावा शामिल है, वहीं राज्य सरकार ने मार्च 2025 तक 3 लाख से अधिक वन अधिकार दावों को खारिज किया, ऐसे में प्रमाणपत्र के अभाव में आदिवासी वोटर वंचित हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि एसआईआर से नाम हटने पर बोझ मतदाता पर आएगा। उसे खुद प्रमाणित करना होगा कि वह पात्र है, जिसकी अपील प्रक्रिया जटिल है।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि मतदाता अधिकार और कमजोर वर्गों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर सीधा खतरा है। यह 'मतदाता सूची की सफ़ाई' नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल अधिकारों की कटौती व नियंत्रण है। आयोग की प्रक्रिया पर नियंत्रण, पारदर्शिता और निष्पक्षता के सवाल प्रमुख हैं।
इसके साथ ही उन्होंने सवाल किया कि 12 राज्यों के चयन के मानदण्ड क्या थे, और उनका सार्वजनिक लेखा-जोखा क्यों नहीं है।


