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भोपाल त्रासदी में यात्रियों की जान बचाते कई रेल कर्मियों ने गंवाई थी जान

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 1984 में हुए गैस त्रासदी कांड के दौरान रेल कर्मचारियों ने भी साहस दिखाया था और अनेक यात्रियों की जान बचाने के लिए अपनी जान को दाव पर लगा दिया था

भोपाल त्रासदी में यात्रियों की जान बचाते कई रेल कर्मियों ने गंवाई थी जान
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भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 1984 में हुए गैस त्रासदी कांड के दौरान रेल कर्मचारियों ने भी साहस दिखाया था और अनेक यात्रियों की जान बचाने के लिए अपनी जान को दाव पर लगा दिया था। डीआरएम पंकज त्यागी ने शहीद कर्मचारियों के स्मारक पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।

भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को घटित भोपाल गैस त्रासदी विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक थी। इस त्रासदी में शहीद एवं दिवंगत सभी रेल कर्मचारियों के लिए समर्पित भोपाल स्टेशन पर स्थापित स्मारक पर डीआरएम पंकज त्यागी सहित अन्य अधिकारियों व कर्मचारियों ने पुष्प अर्पित और मौन धारण कर स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि दी।

दरअसल, यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस के रिसाव से हजारों लोगों की जान चली गई और लाखों लोग प्रभावित हुए। इस त्रासदी में आधिकारिक रूप से 3,787 लोगों की मृत्यु दर्ज की गई, जबकि अन्य आकलनों के अनुसार लगभग 8,000 लोगों की मौत दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8,000 लोग गैस रिसाव से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गए। हादसे के समय पूरा शहर भय और अफरातफरी में डूबा हुआ था। भोपाल स्टेशन पर पदस्थ स्टेशन प्रबंधक हरीश धुर्वे एवं उनके साथ अन्य 44 रेल कर्मचारियों ने मानव सेवा और अपने कर्तव्य का ऐसा अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसकी मिसाल दुर्लभ है।

जहरीली गैस से प्रभावित वातावरण में मुंह पर कपड़ा बांधकर ये सभी कर्मचारी ड्यूटी पर डटे रहे, ताकि बीना एवं इटारसी की दिशा से आने वाली ट्रेनों को भोपाल स्टेशन पर प्रवेश से रोका जा सके। स्टेशन प्रबंधक हरीश धुर्वे उसी रात शहीद हो गए, जबकि शेष 44 रेल कर्मचारियों में से कई ने एक सप्ताह के भीतर तथा कुछ ने वर्षों तक इलाज के बाद अपने प्राण त्याग दिए। इन सभी 45 अमर रेल-वीरों की स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के उद्देश्य से भोपाल स्टेशन परिसर में ‘भोपाल गैस त्रासदी रेलकर्मी स्मारक’ निर्मित किया गया है, जिसमें सभी शहीद एवं दिवंगत कर्मचारियों के नाम अंकित हैं। यह स्मारक न केवल उनके बलिदान का प्रतीक है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को कर्तव्य, मानव सेवा और साहस के सर्वोच्च आदर्शों का संदेश भी देता है।


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