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भोपाल में जमीयत उलमा-ए-हिंद की बैठक, मौलाना महमूद मदनी बोले- विशेष वर्ग का वर्चस्व स्वीकार्य नहीं

भोपाल में जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी की अध्यक्षता में प्रबंधन कमेटी की सभा हुई

भोपाल में जमीयत उलमा-ए-हिंद की बैठक, मौलाना महमूद मदनी बोले- विशेष वर्ग का वर्चस्व स्वीकार्य नहीं
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मौलाना महमूद मदनी का बड़ा बयान: मुसलमानों को अपमानित करने का कृत्य बर्दाश्त नहीं

  • जमीयत उलमा-ए-हिंद सभा में वक्फ अधिनियम, लव जिहाद और समान नागरिक संहिता पर चर्चा
  • मौलाना मदनी बोले- इस्लामोफोबिया और बुलडोजर राजनीति से समाज को बांटने की कोशिश
  • भोपाल में जमीयत की सभा, मदरसों की सुरक्षा और आधुनिक शिक्षा पर भी हुआ मंथन

भोपाल। भोपाल में जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी की अध्यक्षता में शनिवार को प्रबंधन कमेटी की सभा हुई, जिसमें वक्फ संशोधन अधिनियम, इस्लामोफोबिया, कथित लव जिहाद, मदरसों की सुरक्षा, इस्लामी माहौल में आधुनिक शिक्षा, समान नागरिक संहिता और फिलिस्तीन में जारी नरसंहार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर स्पष्ट रुख प्रस्तुत किया गया। बैठक में देश भर से प्रबंधन कमेटी के 1500 सदस्यों ने भाग लिया।

सुबह के पहले सत्र में मौलाना महमूद असद मदनी ने कहा कि देश की वर्तमान परिस्थितियां काफी संवेदनशील और चिंताजनक हैं। यह कहना बेहद दुखद है कि एक वर्ग विशेष का वर्चस्व स्थापित करने और अन्य वर्गों को कानूनी रूप से मजबूर, सामाजिक रूप से अलग-थलग करने और आर्थिक रूप से अपमानित और वंचित करने के लिए आर्थिक बहिष्कार, बुलडोजर कार्रवाई, मॉब लिंचिंग, मुस्लिम वक्फ संपत्तियों में तोड़फोड़ और धार्मिक मदरसों और इस्लामी प्रतीकों के खिलाफ नकारात्मक अभियान चलाकर नियमित और संगठित प्रयास किए जा रहे हैं।

मौलाना मदनी ने धर्मांतरण कानून को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि देश का संविधान हमें अपने धर्म का पालन करने और उसका प्रचार करने की अनुमति देता है, लेकिन इस कानून में संशोधन करके इस मौलिक अधिकार को खत्म किया जा रहा है। इस कानून का इस्तेमाल इस तरह किया जा रहा है कि धर्म का प्रचार करना अपराध और सजा योग्य बन जाए। दूसरी ओर, 'घर वापसी' के नाम पर हिंदू धर्म अपनाने वालों को खुली छूट है। उनसे न तो कोई सवाल किया जाता है और न ही कोई कानूनी कार्रवाई की जाती है। ऐसा लगता है कि समाज को एक खास धार्मिक दिशा की ओर धकेला जा रहा है।

मौलाना मदनी ने 'लव जिहाद' जैसी मनगढ़ंत अवधारणा पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि इस्लाम विरोधी तत्वों ने जिहाद जैसे पवित्र धार्मिक शब्द को गाली और हिंसा का पर्याय बना दिया है और लव जिहाद, जमीन जिहाद, शिक्षा जिहाद, थूक जिहाद जैसे जुमलों से मुसलमानों को बदनाम किया जा रहा है और उनके धर्म का अपमान किया जा रहा है। दुर्भाग्य से, कुछ सरकारी और मीडिया कमी भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने से बाज नहीं आते। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्लाम में जिहाद एक पवित्र कर्तव्य है, जिसका उद्देश्य प्रताड़ना का अंत, मानवता की रक्षा और शांति स्थापित करना है, और यहां तक कि उत्पीड़न और अराजकता को रोकने के लिए युद्ध भी जायज है। लेकिन यह हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि जिहाद कोई व्यक्तिगत या निजी पहल नहीं है, बल्कि केवल एक सशक्त और संगठित राज्य ही शरीआ के सिद्धांतों के अनुसार इस पर निर्णय ले सकता है।

उन्होंने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश है जहां इस्लामी राज्य की अवधारणा मौजूद नहीं है, इसलिए यहां जिहाद के नाम पर कोई बहस ही नहीं। मुसलमान संवैधानिक रूप से बाध्य हैं और नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार जिम्मेदार है। मौलाना मदनी ने स्पष्ट किया कि इस्लाम के अनुसार, 'जिहाद-ए-अकबर' मनुष्य के भीतर की बुराई, लालच, लोभ, क्रोध और आत्म-विद्रोह से लड़ने का नाम है, जो हर युग का सबसे बड़ा संघर्ष है।

इस अवसर पर दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम और हदीस के शेख मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने तजकिया नफ्स (आत्म शुद्धि) पर संबोधित करते हुए कहा कि हमारा मुख्य लक्ष्य धर्म है। हम अपनी पीढ़ियों की रक्षा और धर्म की रक्षा के लिए जमीयत से जुड़े हैं और किसी भी कार्य की सफलता ईमानदारी पर निर्भर करती है, जबकि ईमानदारी का आधार नीयत की शुद्धता पर है।

जमीयत उलमा-ए-हिंद के उपाध्यक्ष और दारुल उलूम देवबंद के प्रोफेसर मौलाना मोहम्मद सलमान बिजनौरी ने कहा कि ईमान सबसे बड़ी नेमत है और इसकी रक्षा के लिए हर त्याग दिया जा सकता है। इसी उद्देश्य से इस्लामी माहौल वाले स्कूलों की स्थापना अपरिहार्य हो गई है, अन्यथा हमारी पीढ़ियां बौद्धिक और धार्मिक भटकाव का शिकार हो सकती हैं। उन्होंने मदरसों पर लग रहे आरोपों को निराधार बताया और विरोधियों को खुद मदरसों का दौरा करने का न्योता दिया, क्योंकि यह संस्थान खुली किताब की तरह पारदर्शी हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारतीय मुसलमान कभी भी देश विरोधी तत्वों के साथ नहीं रहे हैं और न ही कभी रहेंगे। अंत में उन्होंने कहा कि हम अपने धर्म की शिक्षाओं के अनुसार इस देश से प्यार करते हैं और एक व्यक्ति जितना अच्छा मुसलमान होगा, उतना ही वह अपनी मातृभूमि से प्यार करेगा।

इनके अलावा, दारुल उलूम देवबंद के प्रोफेसर मौलाना मुफ्ती मोहम्मद सलमान मंसूरपुरी ने धार्मिक शिक्षा के महत्व पर विस्तृत भाषण दिया। जमीयत उलमा कर्नाटक के अध्यक्ष मुफ्ती इफ्तिखार कासमी, दारुल उलूम देवबंद के प्रोफेसर मौलाना अब्दुल्ला मारूफी, मौलाना अमीनुल हक महासचिव जमीअत उलमा यूपी, जमीअत उलमा तेलंगाना के उपाध्यक्ष मौलाना अब्दुल कवी, मुफ्ती अशफाक काजी मुंबई, मौलाना नदीम सिद्दीकी महाराष्ट्र, मौलाना साजिद फलाही, मुफ्ती अब्दुल रज्जाक अमरोहवी, मौलाना याह्या करीमी, मौलाना जैनुल आबिदीन कर्नाटक, और मौलाना मुफ्ती सलीम साकरस ने भी विभिन्न विषयों पर संबोधन दिया। मौलाना नियाज अहमद फारूकी ने सालाना बजट पेश किया।


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