मध्यप्रदेश: 14 से 20 मार्च तक चलेगा आदिवासियों का भगौरिया पर्व
मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिले झाबुआ में आदिवासियों को वेलेंनटाइन डे ‘भगौरिया पर्व’ 14 मार्च से शुरू होकर 20 मार्च तक चलेगा

झाबुआ। मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिले झाबुआ में आदिवासियों को वेलेंनटाइन डे ‘भगौरिया पर्व’ 14 मार्च से शुरू होकर 20 मार्च तक चलेगा। इसके साथ ही यहां आदिवासियों के 21 दिवसीय त्यौंहारों की श्रृखंला प्रारंभ हो जाएगी। इस दौरान आदिवासी अंचलों में उल्लास, मौज-मस्ती का आलम होगा।
भगौरियां हाट बाजारों को लेकर कई गाथाएं प्रचलित है, कोई इसे प्रणय पर्व, तो कोई फसल पकने का त्यौहार कहता है, असल में भगौरियां आदिवासी जीवन का सबसे प्रमुख त्यौहार है।
जिसका प्रत्येक आदिवासी को पूरे वर्ष भर इंतजार होता है। काम की तलाश में वर्ष भर घुमक्कड की तरह घूमता मजदूर, पैसा वर्ग भगौरिया पर अपने अपने घरों में ऐसे लौटने लगते हैं मानों परिदें अपने घोसलों को लौट रहे हो।

भगौरिया पर्व है उल्लास, मौज-मस्ती, बंसत ऋतु में जब चारों और पलास के फूलखिल उठते है, धरती पर हरियाली छाई होती है, वातावरण में महुआ और ताडी की मादकता रस घोल रही होती है, खेतों में फसले पक कर खडी होती है, ऐसे अनुपम प्राकृतिक सौदर्य को देख मन झूम उठता है।
युवा दिलों में नई उंमगे कुचाले भरने लगती है, मद मस्त होकर आदिवासी बांसुरी की धुन पर मधुर तान छेडता है, पक्षी चहचहाने लगते है, ढोल-मांदल की थाप पर आदिवासी नाचने लगता है, आदिवासी महिलाएं सुरीले गीत गाने लगती हैं, तो भगौरिया पर्व का आनन्द और बढ जाता है।
भगौरिया से लेकर तेरस तक पूरे 21 दिन आदिवासी मौज मस्ती के आलम में सारे काम, काज, तकलीफे, भुलकर आनन्दित रहता है। इक्कीस दिनों के इन त्यौहारों में भगौरिया, होली, धुलेंडी, रंगपंचमी, गल, सितला सप्तमी, दशामाता और गढ के त्यौहार आदिवासी परम्परागत रूप से मनाते हैं।
इन त्यौहारों में अब आधुनिकता भी समाने लगी है तो राजनीतिक पार्टियां भी इन्हे अपने राजनैतिक उपयोग के लिये इस्तेमाल करने लगे है। शासन की ओर से भी प्रशासनिक व्यवस्थाएं की जाने लगी है।
दूसरी और आदिवासियों पर भी पाश्चात संस्कृति का असर होने लगा है और उनके पहनावे में परिवर्तन आने लगा है स्थानीय गीतों के स्थान पर फिल्मी गाने बनजे लगे है। परम्परागत गीतों में आदिवासी अपनी प्रेयसी से कहता है चाल थने बैलगाडी में बेठाणी ने भगौरिया भालवा ले चालूं।
अर्थात चल तूझे बैलगाडी में बिठाकर भगौरिया देखले ले चलता हूं। वहीं आजकल इन गितों के साथ आधुनिक गीतों हमू काका बाबा ना पोरिया, कुंण्डालियां खेला और या कालि चिडि घणी नखराली जैसे गाने वो भी टेप रिकार्ड पर बजाये जाते है वहीं मोबाईल फोन पर भी गाने बजते हैं।
भगौरिया हाट मेले जिले, प्रदेश, देश व विदेशों तक में लोकप्रिय है, इसलिये इन्हे देखने देशी-विदेशी पर्यटक यहां आते है, झाबुआ और आलिराजपुर जिलोे में लगने वाले भगौरिया मेलों में चांदपुर, वालपुर, छकतला, बखतगढ, कठिवाडा, रानापुरा, झाबुआ, पारा क्षेत्र के भगौरिये मेले काफी प्रसिद्व है।
भगौरिया हाट बाजारों में प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे पर पान की पीक थूंक कर कपडे पर या फिर गाल पर गुलाल लगाकर अपने प्रेम का इजहार करते है, लेकिन आजकल के पढे लिखे आदिवासी युवक भागने और भगाने की बात से इंकार करते है। उनकी सोच से इन परम्पराओं से आदिवासी समाज की बदनामी होती है, लेकिन बुजुर्ग व्यक्ति आज भी भगौरिया हाट से भागकर विवाह करने की बात मानते है। क्योंकि अक्सर प्रेमी-प्रेमिकाएं भगौरिया हाट से भागकर विवाह करते है, इन्ही कारणों से भगौरिया हांट को प्रणय पर्व भी कहां जाता है।
समय के साथ साथ भगौरियां मेलों की रोनकता खत्म होती जा रही है, इसकी वजह इसका राजनैतिकरण होना और मंहगाई है। भगौरिया कई बार उल्लास के साथ साथ मातम भी लाता है।
आदिवासी परम्परा के अनुसार भगौरिया मेलों में जब दो आपसी दुश्मन गुट आमने सामने मिल जाते है तो खून खराबा हो जाता है। भगौरिया पर्व झाबुआ, आलिराजपुर, धार, बडवानी और गुजरात के दाहोद, छोटा उदयपुर, कवाट क्षेत्रों में मनाया जाता है।


