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मध्य प्रदेश: 65 प्रतिशत घरों पर सेकंड हैंड स्मोक का कहर

धूम्रपान सिर्फ उपभोग करने वाले पर ही नहीं बल्कि उसके संपर्क में आने वालों पर भी दुष्प्रभाव डालता है

मध्य प्रदेश: 65 प्रतिशत घरों पर सेकंड हैंड स्मोक का कहर
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भोपाल। धूम्रपान सिर्फ उपभोग करने वाले पर ही नहीं बल्कि उसके संपर्क में आने वालों पर भी दुष्प्रभाव डालता है। मध्य प्रदेश में 65 प्रतिशत ऐसे घर हैं, जो सेकंड हैंड स्मोक (उपभोग न करने वाले) का कहर झेल रहे है। ऐसे लोगों में श्वसन का कैंसर होने की आशंका ज्यादा है।

धूम्रपान से उपयोगकर्ता के अलावा अन्य लोगों को होने वाले नुकसान का जिक्र करते हुए विश्व तंबाकू निषेध दिवस (31 मई) के मौके पर जारी ब्यौरे में वायॅस ऑफ टोबेको विक्टिमस (वीओटीवी) ने बताया है कि अकेले मध्य प्रदेश में ही 65 प्रतिशत घरों में सेकंड हैंड स्मोक का कहर है, जोकि बेहद खतरनाक साबित हो रहा है। घरों या फिर कार्यालय इत्यादि स्थानों पर जो धूम्रपान उपयेाग किया जाता है उससे उपभेागकर्ता व सेकंड हैंड स्मोक से प्रभावित को कैंसर जैसी घातक बीमारी का सामना करना पड़ता है।

वायॅस ऑफ टोबेको विक्टिमस (वीओटीवी) के स्टेट पैट्रेन डा़ टी़पी़. शाहू ने बताया, "मध्यप्रदेश में वर्तमान में 10.2 प्रतिशत लोग धूम्रपान के रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं, जिसमें 19 प्रतिशत पुरुष, 0.8 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। यहां पर 28.1 प्रतिशत लोग चबाने वाले तंबाकू उत्पादों का प्रयोग करते हैं, जिसमें 38.7 प्रतिशत पुरुष व 16.8 प्रतिशत महिलाए हैं। घरों में सेकंड हैंड स्मोक का शिकार होने वाले 6.5 प्रतिशत है, जिसमें 66.8 प्रतिशत पुरुष, 63.2 प्रतिशत महिलाएं हैं। कार्यस्थल पर 38 प्रतिशत लोग सेकंड हैंड स्मोक का शिकार हो रहे हैं, जिसमें 41 प्रतिशत पुरुष, 23.7 प्रतिशत महिलाएं हैं, सरकारी कार्यालय व परिसर में 6़.3 प्रतिशत शामिल हैं।"

सेकंड हैंड स्मोक से आशय उन लोगों से है जो धूम्रपान का सेवन नहीं करते, मगर उससे प्रभावित होते हैं। उदाहरण के तौर पर सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान करने वाले को तो उसका दुष्प्रभाव हो ही रहा है, मगर जो सामने है और धूम्रपान नहीं कर रहा वह भी उससे प्रभावित हो रहा है।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, इस वर्ष की थीम तंबाकू और फेफड़ों का स्वास्थ्य है। यह अभियान तंबाकू से फेफड़े पर कैंसर से लेकर श्वसन संबंधी बीमारियों (सीओपीडी) के प्रभाव पर केंद्रित होगा। लोगों को फेफड़ों के केंसर के बारे में जागरूक किया जाएगा, जिसका प्राथमिक कारण तंबाकू धूम्रपान है। तंबाकू के धूम्रपान के कारण विश्व स्तर पर फेफड़ों के कैंसर से दो-तिहाई मौतें होती हैं। यहां तक कि दूसरो द्वारा धूम्रपान करने से पैदा हुए धुएं के संपर्क में आने से भी फेफडों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। दूसरी ओर धूम्रपान छोड़ने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा कम हो सकता है। धूम्रपान छोड़ने के 10 वर्षो के बाद, धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के फेफड़ों के कैंसर का खतरा लगभग आधा हो जाता है।

चिकित्सकों के अनुसार, फेफड़ों के कैंसर के अलावा, तंबाकू धूम्रपान भी क्रोनिक प्रतिरोधी फुफुसीय रोग (सीओपीडी) का कारण बनता है। इस बीमारी में फेफड़ों में मवाद से भरे बलगम बनाते है जिससे दर्दनाक खांसी होती है और सांस लेने में काफी कठिनाई होती है।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, विश्व स्तर पर अनुमानित 1़.65 लाख बच्चे पांच वर्ष की आयु से पहले दूसरों के धूम्रपान करने से पैदा हुए धुएं के कारण श्वसन संक्रमण के कारण मर जाते हैं। ऐसे बच्चे जो वयस्क हो जाते हैं, वे हमेशा बीमारी से पीड़ित रहते हैं और इनमें सीओपीडी विकसित होने का खतरा होता है।

ग्लोबल टीबी रिपोर्ट- 2017 के अनुसार, भारत में टीबी की अनुमानित मामले दुनिया के टीबी मामलों के एक चौथाई लगभग 28 लाख दर्ज हो गए थे। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि टीबी फेफड़े को नुकसान पहुंचाता है और फेफड़ों की कार्यक्षमता को कम करता है और ऐसी स्थिति में यदि कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है तो यह आगे चलकर उसकी स्थिति और खराब हो सकती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि तंबाकू का धुआं इनडोर प्रदूषण का खतरनाक रूप है, क्योंकि इसमें 7000 से अधिक रसायन होते हैं, जिनमें से 69 कैंसर का कारण बनते हैं। तंबाकू का धुआं पांच घंटे तक हवा में रहता है, जो फेफड़ों के कैंसर, सीओपीडी और फेफड़ों के संक्रमण को बढ़ाता है।

संबंध हेल्थ फाउंडेशन (एसएचएफ) के ट्रस्टी अरविद माथुर ने बताया कि ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2017 के अनुसार, भारत में सभी वयस्कों में 10़ 7 प्रतिशत धूम्रपान करते हैं। इनमें 19 प्रतिशत पुरुष और दो प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं।


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