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लोकसभा चुनाव: मतदान के छठे चरण में दिल्ली पर नजर

दिल्ली में पहली बार कांग्रेस और 'आप' मिल कर बीजेपी के खिलाफ लड़ रही हैं, लेकिन क्या यह गठबंधन लगातार पिछले दो चुनावों से सातों सीटें जीतने वाली बीजेपी को रोक पाएगा?

लोकसभा चुनाव: मतदान के छठे चरण में दिल्ली पर नजर
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लोकसभा चुनावों के छठे चरण में दिल्ली की सातों सीटों समेत देश में कुल 58 सीटों पर मतदान होना है. दिल्ली को अक्सर देशभर में आने वाले लोकसभा चुनावों के नतीजों का एक सूचक माना जाता है. 2004 में जब एनडीए 'इंडिया शाइनिंग' का नारा देकर सत्ता में बने रहने की आस लगाए बैठी थी, तब दिल्ली में उसे सात में से सिर्फ एक सीट हासिल हुई थी.

एनडीए सत्ता दोबारा हासिल नहीं कर पाई. छह सीटें कांग्रेस को मिलीं और पार्टी के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन ने सरकार बनाई. 2009 में यूपीए ने दोबारा चुनाव जीता और दिल्ली में सातों सीटें जीती.

देश के हाल का संकेत

2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो दिल्ली के मतदाताओं ने सातों सीटें कांग्रेस से लेकर बीजेपी को दे दीं. 2019 में मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बने और बीजेपी ने एक बार फिर दिल्ली की सातों सीटों पर अपनी पकड़ बनाए रखी.

शायद इसलिए एक दूसरे के प्रतिद्वंदी होने के बाद कांग्रेस और 'आप' इस बार दिल्ली में मिल कर लड़ रही हैं. सात सीटों में से चार (नई दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली) सीटों पर 'आप' लड़ रही है और तीन (उत्तर-पूर्वी दिल्ली, उत्तर-पश्चिमी दिल्ली और चांदनी चौक) सीटों पर कांग्रेस.

दोनों पार्टियां अपने अपने मतभेद पूरी तरह से मिटा नहीं पाई हैं. कुछ ही दिनों पहले दिल्ली में कांग्रेस के अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने गठबंधन के विरोध में पार्टी से इस्तीफा दे दिया. वो बाद में बीजेपी में शामिल हो गए.

लेकिन दोनों पार्टियों के नेता एकजुट होने का संदेश देने की काफी कोशिश कर रहे हैं. जब 'आप' के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 'नई आबकारी नीति' मामले में ईडी ने हिरासत में लिया, तो कांग्रेस ही नहीं बल्कि गठबंधन के लगभग सभी बड़े नेताओं ने केजरीवाल की रिहाई की मांग करते हुए दिल्ली में एक रैली की.

केजरीवाल को जब सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर जेल से रिहा किया तो उन्होंने अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के साथ साथ कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए भी कैंपेन किया. राहुल गांधी ने एक रैली में यहां तक कहा कि इस बार कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को चार सीटों पर 'आप' के आगे बटन दबाना है.

कड़ा मुकाबला

लेकिन इस गठबंधन के आगे कई चुनौतियां हैं. दिल्ली बीजेपी का पुराना गढ़ है. यहां 1993 में ही बीजेपी की सरकार बन गई थी और बीजेपी के दिग्गज नेता मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बने. उसके बाद साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज के रूप में पार्टी ने दिल्ली को दो और मुख्यमंत्री दिए.

और पिछले दो चुनावों से भी बीजेपी दिल्ली की सभी सीटें जीतती आ रही है. दिल्ली में 'आप' के भी कई मतदाता लोकसभा चुनावों में बीजीपी का समर्थन करते हैं. कई मतदाता कहते हैं कि वो दिल्ली में केजरीवाल की सरकार और केंद्र में मोदी की सरकार चाहते हैं.

'आप' के लिए सबसे बड़ी समस्या 'नई आबकारी नीति' मामला है. इसमें उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और खुद केजरीवाल समेत कई लोग जेल भेजे जा चुके हैं. बीजेपी ने 'आप' सरकार की एक भ्रष्ट सरकार की छवि बनाने की पूरी कोशिश है.

'इंडिया' गठबंधन बनने से पहले कांग्रेस भी इन प्रयासों में शामिल थी. बल्कि इस मामले में शुरूआती एफआईआर कांग्रेस की तरफ से ही दर्ज करवाई गई थी. एक अन्य मामले में दिल्ली के पूर्व गृहमंत्री सत्येंद्र जैन को भी जेल की सजा हुई. अब 'आप' के खिलाफ इन आरोपों को मतदाताओं ने सच माना है या नहीं, यह मतदान के नतीजे ही बता पाएंगे.

'आप' के सामने दूसरी चुनौती स्वाति मालिवाल का मामला भी है. स्वाति ने आरोप लगाए हैं कि मुख्यमंत्री आवास में केजरीवाल के निजी सचिव बिभव कुमार ने उनके साथ मार-पीट की और वो भी तब जब मुख्यमंत्री आवास में ही मौजूद थे.

दिल्ली पुलिस ने कुमार को गिरफ्तार कर लिया है और मालीवाल के आरोपों की जांच कर रही है. बीजेपी ने इस मामले को भी फायदे के लिए भुनाने की पूरी कोशिश की है.

दूसरी तरफ 'आप' और कांग्रेस एक ही बात को लेकर मतदाता तक जा रही हैं. दोनों पार्टियों का कहना है कि बीजेपी की वजह से लोकतंत्र खतरे में है और अगर लोकतंत्र को बचाना है तो बीजेपी को सत्ता से हटाना होगा.


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