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भाजपा के लिए अब आसान नहीं रहा लोकसभा चुनाव

चुनाव के पहले दो चरणों में मतदान उम्मीद से कम रहा है। मतदान के रुझान को समझने के कई तरीके हैं

भाजपा के लिए अब आसान नहीं रहा लोकसभा चुनाव
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- लेखा रत्तनानी

चुनाव के पहले दो चरणों में मतदान उम्मीद से कम रहा है। मतदान के रुझान को समझने के कई तरीके हैं। एक विचार यह है कि भाजपा ने शुरुआत में ही यह जताने के लिए भरपूर प्रयास किया कि वास्तव में कोई मुकाबला ही नहीं है। समृद्ध और अच्छी तरह से वित्त पोषित अभियान व मशीनरी की पूरी ताकत के साथ यह संदेश भेजा गया था। इसलिए भाजपा के मतदाता उत्साहित और तय नहीं थे- जब अंतिम परिणाम यही है तो काम करने का क्या मतलब है?

कई लोगों के मन में इस बात को लेकर थोड़ा ही संदेह रह गया है कि इस लोकसभा चुनाव में बाजी पलट रही है। अब यह उतना आसान नहीं रह गया है जितना भाजपा ने कल्पना की थी। भाजपा को उम्मीद थी कि वह आसानी से सीधे-सीधे तीसरी बार सत्ता में बैठेगी लेकिन अब यह मुश्किल नजर आ रहा है। कई आंकड़े उछाले जा रहे हैं लेकिन उनमें से लगभग सभी भाजपा को 272 के जादुई आंकड़े से कम और कमतर बता रहे हैं। एकमात्र सवाल जो पूछा जा रहा है वह यह है कि पार्टी सरकार बनाने के लिए आवश्यक आधी संख्या से कितनी नीचे जा सकती है। मिल रहे सभी संकेत इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि सत्ताधारी पार्टी को इस बार भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। भाजपा में जो दृढ़ विश्वास दिखाई दे रहा था वह भाप बन कर उड़ गया सा प्रतीत होता है। ऐसे स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि भाजपा हलकों में कहीं भी 'चार सौ पार' (400 के आंकड़े से अधिक) की कोई चर्चा नहीं है। 'चार सौ पार' भाजपा चुनाव अभियान की पहचान थी क्योंकि इस विश्वास के साथ ही उसने अपना प्रचार शुरू किया था। फिर भी कोई भविष्यवाणी करने में सतर्कता बरतनी चाहिए। अभी पांच चरणों का मतदान और मतगणना में एक महीना बाकी है। कुछ भी हो सकता है। चुनाव की सावधानीपूर्वक निगरानी की आवश्यकता होगी और यह एक थ्रिलर बनने के लिए तैयार है।

चुनाव के पहले दो चरणों में मतदान उम्मीद से कम रहा है। मतदान के रुझान को समझने के कई तरीके हैं। एक विचार यह है कि भाजपा ने शुरुआत में ही यह जताने के लिए भरपूर प्रयास किया कि वास्तव में कोई मुकाबला ही नहीं है। समृद्ध और अच्छी तरह से वित्त पोषित अभियान व मशीनरी की पूरी ताकत के साथ यह संदेश भेजा गया था। इसलिए भाजपा के मतदाता उत्साहित और तय नहीं थे- जब अंतिम परिणाम यही है तो काम करने का क्या मतलब है? दूसरा विचार मौसम का है- इस बार मौसम असामान्य रूप से गरम है। तीसरा यह है कि भाजपा खुद अपने कैडर को प्रेरित करने में सक्षम नहीं रही है। इसका एक कारण यह है कि पहला वोट डाले जाने से पहले ही पार्टी ने चुनाव को जीता हुआ घोषित कर दिया था और दूसरा व अधिक महत्वपूर्ण कारण पार्टी में बड़ी संख्या में गैर-भाजपा कार्यकर्ताओं की आमद है जो या तो अपने दम पर भाजपा में शामिल हुए हैं या उन पर भाजपा में शामिल होने के लिए प्रलोभन दिया गया अथवा दबाव डाला गया है। 'घुसपैठिये' बनाम कैडर का अजीब मिश्रण कुछ हद तक बेमेल रसायन बन रहा है और जो प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं के भीतर निराशा की भावना पैदा कर रहा है। वे अब खुद को पार्टी से बहिष्कृत महसूस करते हैं जिसमें उन्होंने लंबे समय तक काम किया है। अंतिम कारण- मतदाताओं के एक व्यापक वर्ग के बीच निराशा हो सकती है और यदि यह कारण है तो कम मतदान हर तरह से परिणामों को प्रभावित करेगा।

बहरहाल, सप्ताह की समाप्ति के करीब भाजपा के लिए और बुरी खबर आती गई। एक तरफ राहुल गांधी आग उगलते हुए मांग कर रहे थे कि 'सामूहिक बलात्कारी' प्रज्वल रेवन्ना के लिए वोट मांगने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की हर लड़की और महिला से माफी मांगें जो कह रहे हैं कि रेवन्ना के लिए वोट मोदी को मजबूत करेगा। यह भाजपा के नए सहयोगी जेडीएस के समर्थन में एक चुनावी रैली थी जहां प्रधानमंत्री ने रेवन्ना सहित जेडीएस उम्मीदवारों के समर्थन में स्पष्ट अपील की। रेवन्ना पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के पोते हैं। रेवन्ना 26 अप्रैल को कर्नाटक में अपने निर्वाचन क्षेत्र हासन में मतदान समाप्त होने के अगले दिन जैसे ही महिलाओं के बारे में उनके विचार और महिलाओं पर हमले के टेप लीक हो गए, वे जर्मनी भाग गए। रेवन्ना को समर्थन देने के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब भाजपा नहीं दे पाई है जिसने विशेष रूप से प्रधानमंत्री को बेनकाब कर दिया है। यह बात तब विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाती है जब यह बात सामने आई है कि रेवन्ना के आचरण और उनके खिलाफ आरोपों के बारे में पार्टी को पहले ही चेतावनी दे दी गई थी। इसके बावजूद पार्टी ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने की पहल की।

दूसरी ओर भाजपा द्वारा कांग्रेस के खिलाफ लगाए गये उन आरोपों ने पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी कि कांग्रेस धन को फिर से वितरित करना चाहती है या इसे मध्यम वर्ग से लेना और अल्पसंख्यकों को देना चाहती है। राहुल गांधी द्वारा उठाये गए आर्थिक असमानता से जुड़े मुद्दे को धर्म को जोड़ने का एक ज़बरदस्त लेकिन हताश प्रयास भाजपा को महंगा पड़ गया। गलगोटिया विश्वविद्यालय के छात्रों के एक वर्ग के हास्यास्पद विरोध मार्च के कारण भाजपा का यह दांव उलटा पड़ गया। गलगोटिया विश्वविद्यालय 300 से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों के साथ एनएएसी ग्रेड ए प्लस होने का दावा करता है। भाजपा समर्थित इस विरोध मार्च में शामिल छात्रों को मालूम नहीं था कि उनके हाथों में पकड़ी हुई तख्तियों में कांग्रेस के खिलाफ क्या लिखा है। वे उन मुद्दों के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे जिनका विरोध करने के लिए वे एकत्र हुए थे। गलगोटिया विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में है और इस खेदजनक प्रदर्शन ने उत्तर प्रदेश में शिक्षा की स्थिति और एक ऐसी प्रणाली को उजागर किया है जिसके तहत नकली समाचार को राजनीतिक व्यवस्था के शीर्ष से ही प्रसारित किया जाता है, जहां छात्र कोई सवाल नहीं पूछते और बिना रुचि या जिज्ञासा के सीखते हैं।

भाजपा कई मायनों में अति आत्मविश्वास से पीड़ित है और उसके प्रभावों का अब उसे सामना कर पड़ रहा है। इससे उबरने के लिए सांप्रदायिक कार्ड का मनमाना उपयोग कर रही है। कांग्रेस पर अपने हमलों में खुद प्रधानमंत्री चरम पर चले जाते हैं। (उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस के घोषणापत्र में 'मुस्लिम लीग की मुहर है')। ऐसा लगता है कि पार्टी ने यह हिसाब नहीं लगाया है कि चुनावी बॉन्ड में अपनी भूमिका, अरविंद केजरीवाल जैसे विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी और किसी भी कीमत पर सत्ता पाने की उसकी कोशिशों की (जैसा कि महाराष्ट्र में हुआ) उसे कुछ कीमत चुकानी होगी। महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जहां विपक्ष को भारी समर्थन मिल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के दबाव के कारण यह खुलासा हुआ कि भाजपा ने चुनावी बॉन्ड के माध्यम से 8,000 करोड़ रुपये कैसे एकत्र किए। इससे एक व्यापक विचार सामने आया है कि पार्टी मूल रूप से भ्रष्ट है। भ्रष्टाचारियों के पाला बदलते और पार्टी में शामिल होते ही 'भाजपा वॉशिंग मशीन' से साफ घोषित करने का तरीका भी भाजपा की छवि और प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचा रहा है। यहां तक कि पार्टी के प्रति वफादार लोग भी इस तरीके से नाखुश हैं। 400 से अधिक सीटें मिलने के दावे से डर पैदा हो गया है कि यह जनादेश संविधान को खतरे में डाल देगा और तब भाजपा आरक्षण जैसी कुछ बुनियादी गारंटी के साथ खिलवाड़ करने की स्थिति में आ जाएगी। इसके अलावा इस बात का भी डर है कि अगर मोदी को लगातार तीसरा कार्यकाल मिलता है तो देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने में तानाशाही शैली के शामिल होने की आशंका है।

कुल मिलाकर, इस समय एजेंडे के मुद्दे उन मुद्दों से बहुत अलग हैं जिनके बारे में भाजपा ने सोचा था कि वे एजेंडे में होंगे। मुकाबला अंत तक चलेगा और वोटों की गिनती तथा परिणाम घोषित होने के बाद कई सबक सीखे जाएंगे।
(लेखिका द बिलियन प्रेस की प्रबंध संपादिका हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)


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