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लोकसभा चुनाव 2024 : पश्चिमी यूपी की आठ सीटों पर नामांकन शुरू, कौन पड़ेगा भारी

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए चुनावी प्रक्रिया आज से शुरू हो गई है. यूपी में पहले चरण में आठ सीटों पर चुनाव होने हैं

लोकसभा चुनाव 2024 : पश्चिमी यूपी की आठ सीटों पर नामांकन शुरू, कौन पड़ेगा भारी
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2024 के लोकसभा चुनाव के लिए चुनावी प्रक्रिया आज से शुरू हो गई है. यूपी में पहले चरण में आठ सीटों पर चुनाव होने हैं. लेकिन कुछ पार्टियों ने अभी तक उम्मीदवार भी नहीं तय किए हैं.

चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद भी दोनों ही गठबंधनों की स्थिति अब तक स्पष्ट नहीं हो पाई है लेकिन उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर ली है. पश्चिमी यूपी में बीजेपी ने राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन किया है तो पूर्वी यूपी में सुभासपा, अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के साथ.

वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबंधन में भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बीच सीटों का तालमेल हो चुका है लेकिन बहुजन समाज पार्टी की स्थिति को लेकर अभी भी संशय बरकरार है कि वो अकेले चुनाव लड़ेगी या फिर गठबंधन में शामिल होगी. हालांकि पार्टी प्रमुख मायावती इस बात को कई बार कह चुकी हैं कि उनकी पार्टी किसी गठबंधन में शामिल नहीं होगी.

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इस चरण में सहारनपुर, कैराना, नगीना, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत सीटें आती हैं. सभी सीटों पर 20 मार्च यानी बुधवार को अधिसूचना जारी हो गई और इसी के साथ नामांकन शुरू हो जाएंगे. नामांकन का काम 27 मार्च तक चलेगा, 28 मार्च को नामांकन पत्रों की जांच होगी और नाम वापसी 30 मार्च तक होगी. 19 अप्रैल को इन आठों सीटों पर मतदान होगा.

साल 2014 में बीजेपी ने जहां इस चरण की सभी आठ सीटों पर जीत हासिल की थी वहीं 2019 के चुनाव में सपा-बीएसपी-रालोद के गठबंधन ने उनका विजय रथ रोक दिया था. 2019 में सपा को दो और बीएसपी को 3 सीटें मिली थीं जबकि बीजेपी के हिस्से में सिर्फ तीन सीटें ही आईं.

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2014 में तो बीजेपी की जीत का अंतर भी ज्यादा था और चार सीटों पर उसके उम्मीदवार दो लाख वोटों के अंतर से जीते थे. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर बीजेपी का जनाधार कम हो गया. यहां तक कि 2014 में जिस मुजफ्फरनगर सीट पर बीजेपी को सबसे ज्यादा यानी चार लाख से भी ज्यादा वोटों से जीत हासिल हुई थी, वहां 2019 में जीत का ये अंतर सिर्फ छह हजार रह गया.

मुजफ्फरनगर सीट पर बीजेपी की जीत का अंतर भले ही बहुत कम रहा लेकिन 2019 में उसके मुकाबले आरएलडी थी और इस बार वही आरएलडी बीजेपी के साथ एनडीए गठबंधन में है. इस चरण की पीलीभीत सीट पर 2019 में बीजेपी के वरुण गांधी करीब ढाई लाख वोटों से जीते थे लेकिन अभी तक पीलीभीत सीट पर बीजेपी ने उम्मीदवार की घोषणा ही नहीं की है और वरुण गांधी को टिकट मिलेगा भी या नहीं, इसे लेकर संशय बरकरार है.

हालांकि मेनका गांधी और वरुण गांधी की मजबूत पकड़ को देखते हुए यह मुश्किल लग रहा है कि बीजेपी वरुण गांधी का टिकट काटेगी लेकिन पिछले कुछ दिनों से वरुण गांधी जिस तरह से अपनी ही पार्टी और सरकार के खिलाफ मुखर हुए हैं, उसे देखते हुए उनके टिकट कटने पर हैरानी भी नहीं होनी चाहिए. 1998 से लेकर अब तक छह चुनावों में इस लोकसभा सीट पर या तो मेनका गांधी ने जीत दर्ज की है या फिर वरुण गांधी ने.

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इस चरण के चुनाव से इस इलाके के जिन प्रमुख राजनीतिक चेहरों के राजनीतिक भविष्य और राजनीतिक कद भी तय होने हैं, उनमें से एक वरुण गांधी भी हैं. इसके अलावा आरएलडी नेता जयंत चौधरी का भी कद तय होगा, लगातार तीसरी बार चुनाव जीतकर केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान की राजनीतिक हैसियत बढ़ेगी या नहीं, ये भी तय होगा.

दरअसल, पश्चिमी यूपी का इलाका किसान और जाट नेता चौधरी चरण सिंह और फिर उनके बेटे अजित सिंह के प्रभाव वाला माना जाता रहा है. वे हारें या जीतें, लेकिन माना यह जाता है कि जो भी पार्टी उन्हें साथ लेकर चलती है, उसे फायदा होता है. हालांकि 2019 में मुजफ्फरनगर जैसी अपनी परंपरागत सीट पर खुद अजित सिंह चुनाव हार गए थे जबकि उनके साथ सपा और बीएसपी का समर्थन भी था. बावजूद इसके उनके और उनकी पार्टी के प्रभाव में कमी नहीं है.

इस बार यह चुनाव अजित सिंह के बिना हो रहा है और उनके उत्तराधिकारी जयंत चौधरी ऐन चुनाव के वक्त एनडीए गठबंधन के साथ चले गए हैं. हालांकि किसान आंदोलन और पहलवानों के विरोध प्रदर्शन जैसे मुद्दों पर उनके सरकार के साथ मतभेद थे, लेकिन चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने के फैसले के बाद वो एनडीए में चले गए. लेकिन उनके तमाम समर्थक अभी भी जयंत चौधरी के फैसले से खुश नहीं हैं.

मुजफ्फरनगर के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार शरद मलिक कहते हैं, "आरएलडी मुख्य रूप से जाटों की पार्टी है और यह चुनावी फायदा तभी उठाती है जब इसके साथ मुसलमानों का समर्थन रहता है. बीजेपी के साथ जाने पर मुस्लिम समर्थन तो मिलने से रहा, जो जाट किसान आंदोलन के चलते बीजेपी से नाराज थे, आरएलडी ने उनका समर्थन भी खो दिया है. दूसरी बात ये कि जाटों के वोट का एक बड़ा हिस्सा 2014 से वैसे ही बीजेपी के पास जा रहा है. ऐसे में आरएलडी के आने से बीजेपी को बहुत फायदा हो जाएगा, यह कोई जरूरी नहीं है. वहीं दूसरी ओर, संजीव बालियान जैसे बीजेपी के नेता जयंत से खुद को राजनीतिक नुकसान के तौर पर भी देख रहे हैं.”

इस क्षेत्र की सबसे हॉट सीट कही जाती है रामपुर. समाजवादी पार्टी का प्रमुख मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले आजम खान इस समय जेल में हैं लेकिन एक समय ऐसा भी था कि समाजवादी पार्टी की न सिर्फ रामपुर बल्कि आस-पास की सीटें भी उन्हीं के इशारे से तय होती थीं. पिछले पांच साल में उनका राजनीतिक करियर लगभग खात्मे की ओर चला गया है.

एक समय था जब आजम खान खुद सांसद या विधायक रहते थे, उन्होंने अपनी पत्नी को भी सांसद बनवाया, बेटे को विधायक बनवाया लेकिन अब आजम खान की सांसदी और विधायकी दोनों ही जा चुकी हैं, उन्हें सजा हो चुकी है और पत्नी-बेटे भी जेल में हैं. समाजवादी पार्टी ने अभी तक वहां उम्मीदवार भी नहीं घोषित किया है जबकि बीजेपी ने उन्हीं घनश्याम लोधी को उम्मीदवार बनाया है जिन्होंने 2022 में उप चुनाव में रामपुर से बीजेपी को जीत दिलाई थी. बीएसपी ने भी यहां से अभी उम्मीदवार नहीं उतारे हैं.

बीएसपी ने मुरादाबाद और पीलीभीत समेत 14 उम्मीदवारों की घोषणा जरूर की है लेकिन राजनीतिक गलियारों में यही चर्चा है कि उम्मीदवारों की घोषणा में देरी की एक वजह यह भी हो सकती है कि गठबंधन में शामिल होने पर अभी भी अंतिम फैसला न हुआ हो. कांग्रेस पार्टी ने भी खुद को मिलीं 17 सीटों पर अभी उम्मीदवार नहीं घोषित नहीं किए हैं.


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