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मजदूरी पर आश्रित गांवों में लॉकडाऊन से भारी दिक्कत

लॉकडाऊन में वे ही गांव किसी तरह से जीवित रह जाएंगे जिसकी अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है, लेकिन जहां खेती अच्छी नहीं है

मजदूरी पर आश्रित गांवों में लॉकडाऊन से भारी दिक्कत
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- डॉ. दीपक पाचपोर व एसआर घाटगे

रायपुर। लॉकडाऊन में वे ही गांव किसी तरह से जीवित रह जाएंगे जिसकी अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है, लेकिन जहां खेती अच्छी नहीं है, उन्हें इस स्थिति का सामना करने में दिक्कत आएगी। दो हफ्ते के लॉकडाऊन ने ऐसे ही कई गांवों पर अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। ‘लॉकडाऊन में गांव’ के अंतिम चरण में उन तीन गांवों के दर्शन हुए जहां के लोग लॉकडाऊन के जल्दी समाप्त होने की दुआ कर रहे हैं। ये गांव हैं- आरंग विकासखंड के ओड़का व बरभाठा और अभनपुर विखं का मोखेतरा। तीनों ही गांवों में विकास का नामो-निशान नहीं है। यहां के ज्यादातर लोग बाहर मजदूरी करने बाहर जाते हैं। अब सभी घरों में बैठे लॉकडाऊन खुलने का इंतजार कर रहे हैं।

तीनों गांवों में कुछ बातें एक जैसी हैं। मसलन, सभी में खेती कमजोर है, पेयजल की समस्या है, लोगों में बेरोजगारी है, गांवों में साफ-सफाई का अभाव है जो बताता है कि यहां की ग्राम पंचायतें कमजोर हैं। इसका असर यह दिखता है कि कोरोना जैसी बीमारी को लेकर पर्याप्त जागरूकता का अभाव है। चूंकि यहां के लोग अन्य गांवों-शहरों में ज्यादा जाते हैं, तो यहां के लोगों को खतरा भी ज्यादा है। हालांकि अब तक इन गांवों में एक भी कोरोना संक्रमित व्यक्ति नहीं मिला है।

लोगों की आवास समस्या होने से कोरोना होने पर परिवार के सभी लोगों पर खतरा आ सकता है। लोगों द्वारा आवास के लिये कई बार आवेदन देने के बाद भी स्वीकृति नहीं मिली है। बड़ी संख्या में टूटे-फूटे घरों में लोग रहते हैं। अधिकारियों का आना-जाना कम है। एक झलक में ही गांव का पिछड़ापन दिख जाता है। अगर कोई यहां के विकास के आंकड़े दिखलाए तो वे आंकड़े ही संदेहास्पद माने जाने चाहिये।

लोगों के मनरेगा के अंतर्गत किये कामों के पैसे नहीं मिले हैं और इन दिनों किसी के पास कोई काम नहीं है। इससे इन लोगों पर कोरोना और लॉकडाऊन का असर होने की आशंका अधिक है। मोखेतरा की हालत फिर भी बेहतर है।

वैसे सभी गांवों में शिक्षा संबंधी व्यवस्था का अभाव है। बच्चों को पढ़ने दूर जाना पड़ता है। लॉकडाऊन के चलते सभी को राशन तो मिल गया है परंतु राशन से इतर अन्य इंतजाम कहां से होंगे, इसकी चिंता सभी को है। मोखेतरा को छोड़ दिया जाए तो शेष दोनों गांवों (ओड़का व बरभाठा) में अंदरूनी रास्ते कच्चे होने से लोगों को आने-जाने की भी दिक्कत होती है। गंदा पानी रास्तों पर ही बहता रहता है। बरभाठा की स्थिति अत्यंत दयनीय है।

ओड़का में सरपंच का इंतज़ार

आरंग से करीब छह किलोमीटर की दूरी पर बसे ओड़का को अभी अलग किया गया है। यहां उप सरपंच जयकुमार डहरिया ही सारा काम देख रहे हैं। चूंकि यह नयी पंचायत बनी है, इसलिए अभी कामों की शुरुआत होनी है। पिछले सरपंच की निष्क्रियता यहां पूरी तरह से दीखती है। डहरिया कहते हैं कि वे अधिकारियों से मिलकर विकास कार्य करायेंगे।

मोखेतरा में स्थिति बेहतर

ओड़का व बरभाठा के मुकाबले इस गांव की हालत कुछ ठीक है। हालांकि यहां पेयजल का अभाव है। हैंड पंप ठीक से काम नहीं करते।

बरभाठा की स्थिति दयनीय

यह गांव विकास के नाम पर शून्य है। अनेकानेक समस्याएं हैं। निकासी का कोई प्रबंध न होने से रास्ते भर गंदा पानी एकत्र रहता है। उन पर भिनभिनाते हुए मच्छर दिन में भी देखे जा सकते हैं। इसे भी स्वतंत्र पंचायत का दर्जा अभी मिला है।

यहां की पंचायत पहले नरारा के अंतर्गत आती थी लेकिन अब स्वतंत्र हो गयी है। इन कामों को आगे बढ़ाने वाला गांव का कोई सशक्त प्रतिनिधि न होने से मामले को आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं है।

मोखेतरा में स्थिति अन्य से ठीक

यहां फिर भी हालत अन्य दो के मुकाबले बेहतर है। अंदरूनी रास्ते ठीक-ठाक हैं। बोरिंग की समस्या है।


युवकों के सामने बेराजगारी का संकट

इन गांवों से बड़ी संख्या में लोग आरंग, महासमुंद, अभनपुर, राजिम, रायपुर आदि में काम करने के लिये जाते हैं। लॉकडाऊन के कारण वे पिछले करीब 15 दिनों से बेकार बैठे हैं। एक तो लंबे समय से वैसे ही रोजगार घटते चले गये हैं जिसके कारण पहले से ही रोज मजदूरी नहीं मिल पाती थी। अब लॉकडाऊन ने लोगों को और भी घरों में बैठा दिया है। ओड़का के कनक कुमार खंडेलवाल और चुनीलाल खंडेलवाल व उनकी पत्नी कमलेश्वरी की मनरेगा की मजदूरी दबा दी गयी हैं। इस समय उन्हें पैसों की सख्त आवश्यकता है पर सरकारी अधिकारी या ग्राम सचिव कोई जवाब नहीं देते। उन्हें उम्मीद नहीं कि अब उन्हें पैसे मिलेंगे।

बरभाठा के सचिन कुमार कुर्रे शादी-शुदा हैं। वे आरंग की एक मदिरा दूकान में काम करते हैं, जहां उन्हें आठ हजार रुपये मासिक मिलते हैं। 15 दिनों से दूकान नहीं खुलने के कारण उन्हें चिंता खाये जा रही है। वे यह भी नहीं जानते कि उन्हें वेतन मिलेगा या नहीं। यही स्थिति और मानसिकता इसी गांव के सूरज सोनेकर की भी है। वे नया रायपुर में सीबीडी बिल्डिंग में एक ठेकेदार के यहां काम करने जाते हैं। वहां उन्हें आठ हजार रु. तनख्वाह मिलती है। वे भी पखवाड़े भर से खाली बैठे हैं।

इन सभी परिवारों की कोई खेती-बाड़ी नहीं है। सारे मेहनत-मजदूरी पर जीवित हैं। लॉकडाऊन ने इनकी कमर तोड़कर रख दी है। भविष्य की चिंता उन्हें अलग खाये जा रही है।


लॉकडाऊन से शादी हुई रद्द

लॉकडाऊन जैसे शासकीय निर्णयों से कैसे आम लोगों के सपने टूटते हैं या जीवन प्रभावित होते हैं, उसका एक उदाहरण है बरभाठा की सुहानी सोनवानी। उसका शादी छोटा लाफी (महासमुंद) के कमलनारायण मार्कंडे से 2 अप्रैल को तय हुई थी। इसकी पूरी तैयारियां महीनों पहले हो गयी थी, पर लॉकडाऊन के कारण ब्याह को रद्द करना पड़ा। सुहानी ने मोखला से 10वीं तक पढ़ाई की है।

यह पूछे जाने पर कि अब शादी की नई तारीख क्या तय की गयी है, उसके पिता ने बताया कि अभी कुछ नहीं कह सकते। जब तक लॉकडाऊन नहीं खत्म होता, वे कुछ नहीं कर सकते।


कई तरस रहे हैं आवास के लिये

अनेक लोग ऐसे मिले जिन्होंने इंदिरा आवास के लिये आवेदन किये हैं परंतु अभी तक शासकीय स्तर पर कोई सकारात्मक पहल उनकी समस्या के निराकरण को लेकर नहीं हुई है। बरभाठा में तो ऐसे अनेक परिवार हैं। इतवारी बंजारे व लैलाबाई अपने बच्चों सुमन व सुशीला के साथ रहते हैं। वे मकान चाहते हैं। नरेश व नंदिनी बंजारे के तीन बच्चे हैं- अदिति, प्रियेश व नजमा। उन्हें भी आवास की सख्त ज़रूरत है। बरभाठा के ही फूलसिंह सोनवानी अपनी पत्नी व पांच बच्चों (हेमंत, सुहानी, ढालूराम, हमेश व अमरौतीन) के साथ टूटे-फूटे मकान में रहते हैं। उन्हें भी मकान की ज़रूरत है पर कोई सुनवाई नहीं हो रही। सिरदानी सोनवानी अपनी पत्नी कंचन व तीन बच्चों (कमलेश, कोमल, वंशिका) को साथ रहते हैं। उनकी एक बेटी प्रेमबाई की शादी हो गयी है। ये भी लंबे समय से आवास की मांग कर रहे हैं। ओड़का के कनक कुमार खंडेलवाल कई बार आवास का आवेदन लगा चुके हैं पर सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं आता।


मनरेगा में डूबे अनेक ग्रामीणों के पैसे

ओड़का में बड़े पैमाने पर शिकायत मिली कि कई लोगों से पिछले साल मनरेगा में तालाब का काम कराया गया परंतु उसकी मजदूरी आज तक नहीं मिली है। रोजगार सहायक से बार-बार पैसे मांगे जाते रहे हैं। पहले तो आश्वासन दिया गया कि उन्हें पैसे मिल जायेंगे लेकिन अब एक तरह से स्पष्ट कर दिया गया है कि मजदूरी मिलने की अब कोई संभावना नही हैं।


सोहदरा का जीवन बना दूभर

बरभाठा के बंजारे परिवार की सोहदरा की शादी महासमुंद के तुमगांव के कुकराडीह में हुई थी। करीब छह वर्ष साथ रहने के बाद उसके शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। इसके कारण उसे पति ने मायके भेज दिया। तब से वह यहीं रहती है। उसे चलने में दिक्कत होती है। उसका कोई भी दस्तावेज नहीं बन पाया है। उसे विकलांगता का तक प्रमाणपत्र नहीं दिया जा रहा है। खाने-पीने से लेकर हर बात के लिये वह मायके वालों पर ही आश्रित है। उसका आय का कोई साधन नहीं है।


खाद्यान्न बंटा, मुनादी भी हो रही है

मतदाता सूची में त्रुटि के कारण यहां ओबीसी आरक्षित सरपंच निकल गया था। अब मुझे सरपंच सभी पंचों द्वारा किया गया है। निर्णय का इंतजार है। सरकारी योजनाओं के अलावा कोरोना के मद्देनज़र खाद्यान्न सामग्री का वितरण किया गया है। यहां 80 प्रतिशत मजदूर हैं। सब रोजगार से वंचित हैं। उन्हें पैसे की कमी है। अभी भूखमरी की स्थिति तो नहीं है लेकिन पंचायत विभाग के आदेशों के अनुसार कदम उठाये जाएंगे। 60 निराश्रितों के यहां ज़रूरी सामान पहुंचाया गया है। 150 को दो माह का दिया गया है। शेष 120 को दिया जायेगा। दाल आने पर मिलेगी। मंत्री शिवकुमार डहरिया गांव की खबरें लेते रहते हैं।

कोरोना को लेकर साफ-सफाई के बारे में समझाया गया है। दूर-दूर खड़े होने, हाथ धोते रहने आदि की समझइशें दी गयी हैं। स्वास्थ्य संबंधी किसी को कोई शिकायत नहीं हैं। मितानिनें हैं। वे बच्चों के पोषण की चिंता कर रही हैं।

- जयकुमार डहरिया

उपसरपंच

ओड़की (आबादी 400)

काम ठप होने से मजदूर परेशान

अधिकतर कृषि कार्य वाले हैं। लॉकडाऊन के कारण उन्हें दिक्कतें तो हैं। जीवन निर्वाह की समस्या हो रही है। यहां से करीब 200 लोग रायपुर काम पर जाते हैं। काम ठप होने से ऐसे लोग परेशान हैं।

यहां अस्पताल व स्कूल की समस्या है। स्वास्थ्य समस्या होने पर नयापारा, अभनपुर या आरंग जाना पड़ता है। दोनों दूर हैं। पेय जल की भी कमी है। गांव के सारे हैंड पंप बेकार हो चुके हैं। तोरला में उपस्वास्थ्य केंद्र है पर वहां पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। इंदिरा आवास के तहत 10-12 लोगों को लाभ मिला है। फिलहाल मनरेगा का काम बंद है।

कोरोना को लेकर हमने लोगों को जागरूक किया है। किसी व्यक्ति की तबियत खराब होने की शिकायत नहीं मिली है। कोटवार अमरीका साहू के जरिये मुनादी होती है।

मैं दो फरवरी को ही नियुक्त हुआ हूं। अभी बैंक में भी हमारा हस्ताक्षर नहीं गया है।

- नरेंद्र कुमार साहू

सरपंच

मोखेतरा (आबादी करीब 1200)

नई पंचायत बनी है

अभी यहां बहुत सी समस्याएं हैं। पेय जल, सड़क, निकासी आदि का काम करना है। पिछले सरपंच से अभी प्रभार मिल नहीं पाया है। लॉकडाऊन से यह समस्या आई है। हम लोग पूरी तरह से काम संभाल लें तभी कोई कार्य कर पायेंगे। पहले नरारा के अंतर्गत थी, अब स्वतंत्र पंचायत बन गयी है।

गरीबों की आवास समस्या पर हमें ध्यान देना होगा।

- मंगल सोनवानी

सरपंच

बरभाठा (आबादी 400)


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