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प्रकृति के साथ जीना ही है जैविक खेती : त्यागी

फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान रासायनिक उर्वरक का अंधाधुंध उपयोग कर रहे हैं, एक समय ऐसा आता है कि धरती की उर्वराशक्ति खत्म होने की कगार पर पहुंच जाती है

प्रकृति के साथ जीना ही है जैविक खेती : त्यागी
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ग्रेटर नोएडा। फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान रासायनिक उर्वरक का अंधाधुंध उपयोग कर रहे हैं, एक समय ऐसा आता है कि धरती की उर्वराशक्ति खत्म होने की कगार पर पहुंच जाती है, फसल पर कीटों का हमला हो जाता है और किसान आत्महत्या के कगार पर पहुंच जाते है।

देश के किसानों को आत्महत्या से बचाने के लिए जैविक खेती से जोड़ने की बात धरती मित्र किसान भारत भूषण त्यागी का कहना है। इंडिया एक्सपोमार्ट में चल रहे जैविक कृषि विश्व कुंभ में बुलंदशहर के किसान भारत भूषण त्यागी को जैविक खेती के लिए धरती मित्र का प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया। उन्होंने बताया कि आधुनिक खेती सिर्फ बाजार का खेल है, जिसमें किसानों को कुछ लाभ नहीं मिलता सिर्फ उनका शोषण हो रहा है। प्रकृति के साथ जीना ही जैविक खेती है, उर्वरक तो प्रकृति की हत्या कर रहे हैं, खेत की मृदा खराब हो रही है। भारत भूषण त्यागी चेतना विकास ट्रस्ट के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षण देने के साथ जैविक खेती से जोड़ रहे हैं। अपने गांव में 8 एकड़ जमीन में खेती कर हर वर्ष लाखों रुपए की कमाई करते हैं।

त्यागी ने बताया कि दिल्ली विवि से 1975 में ग्रेजुएट करने का बाद पिताजी ने घर पर खेती करने के लिए बुला लिया। उन्होंने चार वर्ष 1982 से 85 तक खेत की जुताई, सिंचाई, खाद, बाजार के बारे में बारिकियों को जाना। 1986-87 से खेती के विकल्प की तलाफ में बागवानी का विकास, मधुमक्खी पालन, गौशाला गोबर संयंत्र, बीज उत्पादन, पौधा संरक्षण में लगाया। 1996-97 में मध्यस्थ दर्शन सह अस्तित्ववाद के प्रणेता अगहार नागराज से प्रकृति के प्रति प्रेरणा मिलने से जैविक खेती शुरू कर दिया।

उन्होंने बताया कि एक वर्ष में 8-10 फसल उगाते हैं, जबकि सामान्यतया किसान एक वर्ष में दो ही फसल उगाते हैं। उन्होंने बताया कि खेत के एक चौथायी हिस्से में मिक्स खेती करते हैं, फसलों में खाद डालने की जरुरत ही नहीं पड़ती, खेत में खाद स्वत: तैयार हो जाती है। छोटे किसानों के लिए जैविक खेती सबसे अच्छा विकल्प है।

छोटे किसान सहकारिता की तरह खेती करते हैं। पीजीएस इंडिया ग्रीन से किसानों को जोड़ा जा रहा है, उन्हें प्रशिक्षण देने के बाद जो उत्पादन होता है उन्हें पुरस्कार स्वरूप दिया जाता है। कई किसानों को जोड़कर 50 एकड़ में खेती की जा रही है, पहले उत्पादन कम जरुर होता है दो वर्ष बाद उत्पादन बढ़ जाता है, उन्होंने किसानों से जैविक खेती अपनाने के लिए अपील किया है। देश के किसान उत्पादन बढ़ाने के लिए उर्वरक का प्रयोग कर जरुर रहे हैं लेकिन उसका दूरगामी परिणाम बहुत ही भयावह होने वाला है, जिसका खामियाजा देश के किसानों को भी भुगतना पड़ेगा।


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