राज्य में पशुधन विकास परियोजना शुरू: वीरेंद्र कंवर
हिमाचल प्रदेश सरकार ने पांच वर्ष की अवधि के लिए देसी नस्ल के जीन पूल को संरक्षित करने के उद्देश्य से केंद्रीय प्रायोजित 595 करोड़ रुपये की पशु धन विकास परियोजना शुरू की

शिमला । हिमाचल प्रदेश सरकार ने पांच वर्ष की अवधि के लिए देसी नस्ल के जीन पूल को संरक्षित करने के उद्देश्य से केंद्रीय प्रायोजित 595 करोड़ रुपये की पशु धन विकास परियोजना शुरू की है।
यह जानकारी पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर ने आज यहां दी । उन्होंने कहा कि प्रारंभिक तौर पर मंडी और चंबा जिलों में शुरू की गई केंद्र पोषित लाइव स्टाॅक विकास परियोजना के लिए भारत सरकार लगभग 535.50 करोड़ रुपये देगी जबकि शेष 59.50 करोड़ रुपये राज्य सरकार प्रदान करेगी। प्रथम वर्ष के लिए 179.47 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। दूसरे, तीसरे, चैाथे और पांचवें वर्ष के लिए क्रमशः 324.44 करोड़, 26.43 करोड़, 32.33 करोड़, और 32.33 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम चंबा और मंडी जिलों के दूर-दराज इलाकों में रहने वाले लगभग 500 परिवारों की पांच हजार गद्दी आबादी की आर्थिक स्थिति में सुधार करेगा। परियोजना का लक्ष्य उत्पादन प्रजनन मापदंडों पर आधारित है जैसे कि शरीर का वजन और संतान पैदा करने की क्षमता और उत्पादकता बढ़ाना। पशुपालन विभाग ने विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शनियों का आयोजन कर क्राॅस ब्रीडिंग के लिए 30 मेंढों और 1090 भेड़ों के चयन के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है और मार्च के अंत तक यह प्रक्रिया पूरी होने की संभावना है। इसके बाद परियोजना को और गति के साथ क्रियान्वित किया जाएगा।
कंवर ने कहा कि वर्ष 2012 की जनगणना के अनुसार हिमाचल प्रदेश में 197278 गैर-वर्णित भेडें हैं और क्राॅस ब्रीडिंग के माध्यम से उन्नयन की तत्काल आवश्यकता है। राज्य में भेड़ उत्पादन प्रणाली में एक बड़ी चुनौती शरीर के वजन और ऊन की पैदावार में सुधार करना है। जनगणना के अनुसार, जिला चंबा और मंडी की कुल मादा स्वदेशी भेड़ की आबादी क्रमशः 173081 और 54095 है।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, गद्दी भेड़ का चयनात्मक प्रजनन न केवल शरीर के वजन और ऊन की उपज के प्रतिशत को बढ़ाने के लिए सहायक होगा, बल्कि देसी नस्ल के जीन पूल को संरक्षित करने में भी मदद करेगा। परियोजना का उद्देश्य पारंपरिक प्रजनन तकनीक के माध्यम से मौजूदा आबादी को कवर करने के लिए बड़ी संख्या में मेढ़ों की मांग को पूरा करना है। स्थानीय प्रजनकों द्वारा आनुवंशिक रूप से बेहतर मेढ़ों की बहुत मांग है। कृत्रिम वीर्यारोपण तकनीक का उपयोग कर, हम न केवल भेड़ के प्रजनकों के लिए वांछित सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले मेढ़ों का उत्पादन कर सकते हैं, बल्कि आनुवंशिक रूप से राज्य की गैर-विवरणित भेड़ आबादी को भी उन्नत कर सकते हैं।
वीरेंद्र कंवर ने कहा कि इस अभिनव परियोजना से गद्दी भेड़ की कम उत्पादकता की समस्या से निपटा जा सकेगा और धीरे-धीरे चुनिंदा प्रजनन के माध्यम से गद्दी भेड़ की कम आनुवांशिक क्षमता में सुधार होगा। साथ ही रोग मुक्त तरल वीर्य के साथ कृत्रिम वीर्यारोपण तकनीक का उपयोग किया जाएगा। गद्दी भेड़ के लिए नस्ल सुधार पर अभिनव कार्यक्रम के कार्यान्वयन के साथ, देसी नस्ल के संरक्षण और उच्च आनुवंशिक सामग्री, बढ़ती मांस और ऊन की मांग और किसानों की आय में वृद्धि होगी ।


