कांग्रेस का ओबीसी आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत की सीमा समाप्त करने का केंद्र से आग्रह
कांग्रेस ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण पर 50 प्रतिशत के दायरे को बढ़ाने तथा शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक क्षेत्रों में बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह किया है

बेंगलुरु। कांग्रेस ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण पर 50 प्रतिशत के दायरे को बढ़ाने तथा शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक क्षेत्रों में बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह किया है।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के नेतृत्व में बुधवार को यहां आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति(एआईसीसी) की ओबीसी सलाहकार परिषद की बैठक में इस मांग को लेकर घोषणापत्र जारी किया जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया।
ओबीसी के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था को संवैधानिक सीमा बताते हुए घोषणापत्र में तर्क दिया गया कि गहरे तक जड़ें जमाए बैठी असमानता को दूर करने और हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए आनुपातिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए इस प्रतिबंध को हटाया जाना चाहिए।
बैठक में कांग्रेस ने देशव्यापी जाति जनगणना की पार्टी की मांग भी दोहराई और कहा कि इसका संचालन भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय की ओर से आधिकारिक रूप से किया जाना चाहिए। पार्टी ने इस मुद्दे पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की निरंतर और साहसिक वकालत की सराहना की तथा उनके प्रयासों को सामाजिक न्याय की दीर्घकालिक लड़ाई में ऐतिहासिक हस्तक्षेप बताया। पार्टी ने कहा कि जनगणना में न केवल जाति, बल्कि सामाजिक-आर्थिक, शैक्षिक, राजनीतिक और रोजगार की स्थिति पर आंकड़े एकत्र किए जाने चाहिए। पार्टी ने तेलंगाना राज्य सर्वेक्षण को अनुकरणीय और बेहतर मॉडल बताया।
ओबीसी सलाहकार परिषद के दो दिवसीय सम्मेलन में देश भर से वरिष्ठ कांग्रेस ओबीसी नेता और प्रतिनिधि एकत्रित हुए। सम्मेलन का उद्घाटन पूर्व मुख्यमंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, कार्यसमिति के सदस्य वी. नारायणस्वामी और कानूनी सलाहकार महेश सुरेश की उपस्थिति में किया। बैठक में 25 जुलाई को नयी दिल्ली में होने वाले राष्ट्रीय स्तर के ओबीसी नेतृत्व सम्मेलन की तैयारियों को भी अंतिम रूप दिया गया।
बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए सिद्दारमैया ने भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा) पर तीखा हमला बोला तथा उस पर ओबीसी हितों की उपेक्षा करने और अपने कार्यकाल के दौरान जाति जनगणना पर कार्रवाई न करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2013 में जब वह मुख्यमंत्री थे, तब कांग्रेस सरकार ने राज्य के सभी समुदायों को शामिल करते हुए एक सामाजिक-शैक्षणिक सर्वेक्षण कराया था। भाजपा सहित बाद की सरकारों ने हालांकि न तो इस रिपोर्ट पर कार्रवाई की और न ही इसकी सिफारिशों को लागू किया।
उन्होंने आरोप लगाया कि कर्नाटक में भाजपा के साढ़े तीन साल के शासन के दौरान, पिछड़ा वर्ग आयोग के निष्कर्षों को जारी करने या उन पर कार्रवाई करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। उन्होंने कहा कि वर्तमान कांग्रेस सरकार ने एक दशक की देरी के बाद अब आंकड़ों का पुनः सर्वेक्षण करने का फैसला किया है और स्थायी पिछड़ा वर्ग आयोग को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। उन्होंने इस पहल को पिछड़ा वर्ग सशक्तीकरण के ‘कर्नाटक मॉडल’ का हिस्सा बताया, जिससे कर्नाटक वर्ष 1931 के बाद से देश का पहला राज्य बन गया है जिसने इस तरह की महत्वाकांक्षी जाति-आधारित गणना शुरू की है।
मुख्यमंत्री ने हाल में फैली राजनीतिक अटकलों का स्पष्ट खंडन करते हुए राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की खबरों को भाजपा प्रेरित षड़यंत्र बताते हुए इसे खारिज कर दिया। उन्होंने कहा,“मैंने और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने पहले ही पांच साल का कार्यकाल पूरा करने की अपनी प्रतिबद्धता स्पष्ट कर दी है। कांग्रेस एकजुट है और आंतरिक राजनीति पर नहीं, बल्कि ओबीसी सशक्तीकरण पर केंद्रित है।”


