कृष्ण बाल लीला की कथा में झूमे श्रोता
श्रीधाम वृन्दावन से पधारे अनिरूद्धाचार्य महाराज व्दारा महासती मंदिर परिसर में गोयल परिवार व्दारा आयोजित श्रीमद भागवत कथा के पांचवे दिवस

भाटापारा,। श्रीधाम वृन्दावन से पधारे अनिरूद्धाचार्य महाराज व्दारा महासती मंदिर परिसर में गोयल परिवार व्दारा आयोजित श्रीमद भागवत कथा के पांचवे दिवस उपस्थित श्रोतागणों का अपने ओजस्वी मुखारविन्द से भगवान श्री कृष्ण के बाल लीलाओं को विस्तृत से वृतांन्त सुनाया, श्रीकृष्ण के बाल लीलाओं को सुनकर, श्रोतागण ओतप्रोत व मग्धमुग्ध हो गये व उनके संगीत मय भजनों से आनंद होकर नाचने लगे।
श्री महाराज ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण जब पौंगड अवस्था में थे तब तक उन्होंने गृह लीलायें की। जब वे मात्र छै दिन के ही थे तब चतुर्दशी के दिन पूतना आई जब भगवान तीन माह के हुए तो करवट उत्सव मनाया जा रहा था तभी शकटासूर आया, भगवान ने संकट भजन करके उसे राक्षस का उद्धार किया इसी तरह बाल लीलायें, माखन चोरी लीला, उखल बंधन लीला, यमलार्जुन का उद्धार आदि दिव्य लीलायें की श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला दिव्य है और हर लीला का आध्यात्मिक पक्ष है।
भांति भांति के पक्षी अपने मधुर कंठ स्वरो से वातावरण को गुंजित कर रहे थे एक ओर गोवर्धन पर्वत था और दूसरी ओर यमुना कल कल करती बह रही थी श्री कृष्ण प्रतिदिन प्रात: ग्वाल बालो के साथ गायो को चराते और आपस में तरह तरह के खेल खेला करते थे। पूरे दिन वन में संध्या होने पर गायो के साथ पुन: घर लौटते थे दिन भर का सूनापन उनके आने पर समाप्त हो जाता था और बस्ती में आनंद का सागर उमड पड़ता था।
दोपहर के पूर्व का समय था श्रीकृष्ण कदंब के वृक्ष के नीचे ग्वाल बालो के साथ खेल रहे थे चारो ओर सन्नाटा था सहसा श्री कृष्ण की दृष्टि सामने चरते हुए बछडो की ओर गई उन बछड़ो क मध्य वे एक अद्भुत बछड़े को देखकर चौक उठे दरअसल वह कोई बछडा नही था वह एक दैत्य था जो बछड़े का रूप धारण करके बछडो में जा मिला था वह श्री कृष्ण को हानि पहुंचाने के लिये अवसर की प्रतिक्षा में था।
उसने गाय के बछडे का रूप धारण किया था इसीलिये लोग उसे वत्सासूर कहते थे ,श्री कृष्ण ने वत्सासूर को देखते ही पहचान लिया जो बिना नेत्रों के ही संपूर्ण भूमंडल को देखता है उससे वत्सासूर अपने को कैसे छिपा सकता था।
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श्री कृष्णा वत्सासूर को पहचानते ही उसकी ओर अकेले ही चल पडे उन्होने उसके पास पहुंचकर उसकी गरदन पकड ली उन्होने एक पेट में इतनी जोर से घूंसा मारा कि उसकी जिहवा निकल आई वह अपने असली रूप में प्रकट होकर धरती पर गिर पडा और बेदम हो गया सभी ग्वाल बाल उस भयानक राक्षस को देखकर विस्मित हो गये वे श्रीकृष्ण की प्रशंसा करने लगे और जय कन्हैया के नारे लगाने लगे संध्या समय जब वह लौटकर घर गये तो उन्होने पूरी बस्ती में भी इस घटना को फैला दिया गोपो और गोपियां ने जहां श्री कृष्ण के शौर्य की प्रशंसा की वही उन्होने वत्सासूर से बच जाने की प्रसन्नता में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट की ।
इसके अलावा महाराज जी ने अंत में गोपीओ चीरहरण की कथा सुनाई ,महाराज जी ने कहा कि स्त्रीओं हमेशा ही परदे में स्नान करना चाहिये । गोवर्धन धारण आदि कथायें सभी को सुनाई और अंत में गिरीराज भगवान को 56 भोग लगाये गये।


