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सुरंग में जीवन, तो आस्मां में छवि की तलाश

ऐसे वक्त में जब उत्तरकाशी स्थित सिल्क्यारा की धसकी हुई सुरंग में 14 दिनों से 41 मजदूर फंसे पड़े हैं

सुरंग में जीवन, तो आस्मां में छवि की तलाश
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ऐसे वक्त में जब उत्तरकाशी स्थित सिल्क्यारा की धसकी हुई सुरंग में 14 दिनों से 41 मजदूर फंसे पड़े हैं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गगन में लड़ाकू विमान में बैठकर उड़ान भर रहे हैं। पिछले करीब एक हफ्ते से लग रहा था कि अंधेरी सुरंग में मजदूर कभी भी बाहर आ सकते हैं, लेकिन हर गुजरता दिन बेनतीजा साबित हो रहा है। इन सबसे बेपरवाह मोदी के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। एक राज्य से निकलकर दूसरे राज्य में चुनावी रैलियों को सम्बोधित करते हुए राजस्थान में गुरुवार की शाम को प्रचार अभियान थमने के तुरन्त बाद मोदी मथुरा पहुंचे जहां उन्होंने ब्रज रज उत्सव के नाम से आयोजित मीरा जन्मोत्सव में हिस्सा लिया। फिर वे शुक्रवार की अल्लसुबह कृष्णजन्मभूमि में उस स्थान पर भगवा वस्त्र धारण कर पहुंचे जहां श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। शनिवार को सुरंग में बचाव अभियान इसलिये रुक गया क्योंकि ड्रिलिंग के दौरान ऑगर मशीन की ब्लेड सरियों से टकराकर टूट गई। अब मलबे को हाथ से हटाये जाने की तैयारी है और मजदूरों को बाहर का सूरज देखने के लिये अभी इंतज़ार करना पड़ सकता है।

यह विडंबना ही है कि बचाव अभियान की समीक्षा करने या मजदूरों की खोज-खबर लेने या फिर इस बाबत कोई बात करने की बजाये पीएम की वरीयता लड़ाकू विमान में बैठकर उड़ान भरने की है। वैसे मोदी नामक फिनोमिना में यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं रह गयी है क्योंकि देश उन्हें पिछले तकरीबन साढ़े नौ वर्षों से यही सब करता हुआ देख रहा है। उनके इस कार्यकाल में अनगिनत घटनाएं ऐसी हुई हैं जिनमें प्रधानमंत्री उन्हें नज़रंदाज़ कर या आवश्यक कार्रवाई न कर गैरजरूरी काम करते हुए दिखे हैं। छोटी-मोटी घटनाओं को एक तरफ कर दें तो 20 जवानों को लील लेने वाले पुलवामा में सीआरपीएफ की टुकड़ी पर आतंकी हमला होने के बावजूद मोदी वन्य जीवन पर शूटिंग करने में व्यस्त थे।

जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कई बार उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन वे संचार प्रणाली की पहुंच से बाहर थे। शाम को जब उनसे बात हुई भी तो मोदी ने उनसे चुप रहने के लिये कहा। मणिपुर में उन्हें जाने का कभी भी समय नहीं मिला जो हिंदू मैतेई एवं ईसाई कुकी सम्प्रदायों के परस्पर टकराव से जल रहा है। लगभग आठ महीनों में वहां अनेक हत्याएं हुई हैं। अब भी जारी हैं। हजारों मकान जल गये हैं, बड़ी तादाद में लोग शरणार्थी शिविरों में बसर कर रहे हैं। तो भी वहां जाना तो दूर की बात है, मोदी ने इस बाबत मुंह से तब तक एक शब्द भी नहीं निकाला जब तक कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को यह चेतावनी नहीं दे दी कि अगर वह कुछ नहीं करती तो शीर्ष न्यायालय ही कोई कदम उठायेगा।

जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उनमें प्रचार के दौरान मोदी ने मुद्दों पर कम बात की और विरोधी दलों के नेताओं पर व्यक्तिगत हमले और उनकी छवि को धूमिल करने के ही अधिक प्रयास किये। मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के शीर्ष नेताओं- सोनिया-राहुल-प्रियंका गांधी तथा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पर मोदी अपने खास सिपहसालार केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह एवं स्टार प्रचारकों के साथ विशेष आक्रामक रहे हैं। उनकी छवि पर बड़े हमलों का कारण यह भी है कि मोदी की अपनी छवि लगातार दरक रही है। सिलसिलेवार प्रशासनिक असफलताओं के कारण अब उनकी योग्यता पर सवाल उठने लगे हैं। इनके चलते, प्रमुख प्रदेश राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़, जहां मतदान हो चुका है उन सभी में भाजपा की पराजयों के अनुमान व्यक्त किये जा रहे हैं। तीनों राज्यों में स्थानीय नेतृत्व को दरकिनार कर दिया गया है और चुनाव मोदी के चेहरे पर ही लड़ा गया है। ऐसे में आने वाले समय में मोदी की छवि के पूर्णत: ध्वस्त होने की भी पूरी सम्भावना बताई जा रही है।

इन तमाम परिस्थितियों में मोदी को अपनी छवि को दुरुस्त करने और नये सिरे से निखारने की ज़रूरत है। तेजस के कॉकपिट में बैठकर शून्य में मोदी न जाने किसे हाथ लहरा रहे हैं, लेकिन यह बात तो साफ है कि वे अपनी छवि को नयी ऊंचाइयां देने के लिये संघर्षरत हैं जिसे उन्हें अगले वर्ष के मध्य में होने जा रहे लोकसभा चुनावों तक संजोकर रखना होगा। ऐसा न होने पर चुनाव जीतने की बात तो दूर है, उनकी दावेदारी तक को स्वीकार नहीं किया जायेगा।

इसलिये मोदी को क्रिकेट विश्व कप का अंतिम मुकाबला उन्हीं के नाम पर बने अहमदाबाद के स्टेडियम में कराना पड़ता है जबकि ऐसे आयोजनों के लिये मुम्बई का वानखेड़े या कोलकाता का ईडन गार्डन स्टेडियम अपनी ऐतिहासिकता और खेल सन्दर्भों के कारण कहीं अधिक मुफ़ीद माना जाता है। जैसा कि अब खुलासा हुआ है, विश्व कप जीतने पर ट्रॉफी के साथ मोदी की राजस्थान में भव्य यात्रा निकालने की योजना थी ताकि उसका सियासी लाभ लिया जा सके, लेकिन जिस जीत का श्रेय वे लेना चाहते थे, वह मुकाबला भारत हार गया और वे जनता से मिले नये नाम 'पनौती' को खुद पर चस्पां कर स्टेडियम से बाहर निकले। उनका गुस्सा निर्वाचन आयोग के जरिये राहुल को जारी नोटिस से निकला।

बहरहाल, तेलंगाना को छोड़कर, जहां प्रचार मंगलवार को थम जायेगा, सभी जगहों पर (उपरोक्त के अलावा मिजोरम भी) मतदान हो गया है। इसके मद्देनज़र मोदी के पास एक और डबल इंजिन वाले राज्य उत्तराखंड की सुरंग में फंसी 41 ज़िंदगियों के लिये चिंता करने का समय नहीं है। उन्हें आकाश में उड़ान भरकर पहले अपनी छवि को गगनचुंबी बनाना है।


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