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एलजी वी.के. सक्सेना ने की मेधा पाटकर के लिए अधिकतम सजा की मांग

दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) की कार्यकर्ता मेधा पाटकर को सजा सुनाने की प्रक्रिया सात जून तक के लिए स्थगित कर दी

एलजी वी.के. सक्सेना ने की मेधा पाटकर के लिए अधिकतम सजा की मांग
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नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) की कार्यकर्ता मेधा पाटकर को सजा सुनाने की प्रक्रिया सात जून तक के लिए स्थगित कर दी। मेधा पाटकर को दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) वी.के. सक्सेना द्वारा दायर मानहानि एक मामले में दोषी ठहराया गया है।

24 मई को साकेत कोर्ट के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर को दोषी ठहराया था। सन 2000 में यह विवाद तब शुरू हुआ था, जब सक्सेना अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे।

गुरुवार को सजा के मामले में दोनों पक्षों ने अपनी दलीलें पूरी की। न्यायाधीश ने मामले की अगली सुनवाई सात जून तय की है।

सक्सेना ने पाटकर के लिए अधिकतम सजा की मांग करते हुए इस संबंध में दलीलें दीं।

उन्होंने पाटकर के 'आपराधिक इतिहास' का उल्लेख करते हुए कहा कि कानून की अवहेलना उनकी आदत बन चुकी है।

झूठी दलीलों के लिए सुप्रीम कोर्ट भी उन्हें फटकार लगा चुका है।

एलजी सक्सेना की ओर से कहा गया कि कानून की लगातार अवहेलना करने के कारण पाटकर को कठोर सजा दी जानी चाहिए।

उन्होंने पाटकर को 'आदतन अपराधी' बताते हुए वर्ष 2006 के एक अन्य मानहानि मामले का उल्लेख किया। यह मामला अभी भी अदालत के समक्ष लंबित है।

शिकायतकर्ता ने यह भी दावा किया कि पाटकर समाज व नैतिकता की भी कोई चिंता नहीं करती हैं।

ऐसे में समाज में एक उदाहरण स्थापित करने के लिए मामले में उन्हें अधिकतम सजा दी जानी चाहिए।

मानहानि का यह मामला साल 2000 में शुरू हुआ। पाटकर ने सक्सेना के खिलाफ विज्ञापनों को प्रकाशित करने के लिए केस किया था। पाटकर का दावा था कि येे विज्ञापन उनके तथा एनबीए के लिए अपमानजनक थे।

इसके जवाब में, सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ मानहानि के दो मामले दायर किए। पहला, टेलीविजन कार्यक्रम के दौरान उनके बारे में कथित अपमानजनक टिप्पणी के लिए, और दूसरा पाटकर के एक बयान से संबंधित था।

पाटकर को दोषी ठहराते हुए, मजिस्ट्रेट ने उल्लेख किया था कि पाटकर ने आरोप लगाया और प्रकाशित किया कि शिकायतकर्ता ने मालेगाव का दौरा किया, एनबीए की प्रशंसा की थी और 40 हजार रुपये का चेक जारी किया था, जो लाल भाई समूह से आया था। "वह कायर हैं और देश भक्त नहीं हैं।"

मजिस्ट्रेट शर्मा ने अपने आदेश में कहा, "पाटकर ने शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचानेे के इरादे से उपरोक्त आरोप लगाए। "

पाटकर को दोषी ठहराने का फैसला देते हुए मजिस्ट्रेट शर्मा ने रेखांकित किया कि प्रतिष्ठा किसी व्यक्ति की सबसे मूल्यवान संपत्तियों में से एक है। यह व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों रिश्तों को प्रभावित करती है, और समाज में किसी व्यक्ति की स्थिति को विशेष रूप से प्रभावित कर सकती है।


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