महिलाओं के मामले में इंडियन बैंक के दिशा-निर्देश पर दिल्ली महिला आयोग का कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को पत्र
दिल्ली महिला आयोग ने कर्मचारियों की भर्ती के लिए भेदभावपूर्ण दिशा-निर्देशों को वापस न लेने पर इंडियन बैंक के महाप्रबंधक (मानव संसाधन) को समन जारी किया है

नई दिल्ली। दिल्ली महिला आयोग ने कर्मचारियों की भर्ती के लिए भेदभावपूर्ण दिशा-निर्देशों को वापस न लेने पर इंडियन बैंक के महाप्रबंधक (मानव संसाधन) को समन जारी किया है। मामले में तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हुए भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को भी एक पत्र लिखा है।
आयोग ने कहा है कि, कई अन्य बैंक और विभाग इन पुराने दिशानिदेशरें का पालन कर रहे हैं जो 35 साल पहले जारी किए गए थे। आयोग ने विभाग को इस मामले की जल्द से जल्द जांच करने और सभी विभागों और बैंकों से गर्भवती महिलाओं के कार्यभार ग्रहण करने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाने का अनुरोध करते हुए तत्काल स्पष्टीकरण जारी करने का आग्रह किया है।
आयोग ने विभाग से महिलाओं के खिलाफ किसी भी तरह के भेदभाव को रोकने के लिए 'सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2022' के अनुरूप अपने दिशानिर्देशों को संशोधित करने के लिए भी कहा है।
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल ने कहा, यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि इंडियन बैंक ने अपने लिंगभेदी दिशानिर्देशओं को वापस नहीं लिया है। इसके बजाय उन्होंने एक नया फिटनेस प्रमाणपत्र विकसित किया है जो कि भेदभावपूर्ण प्रतीत होता है। यह मामला उन लोगों की पितृसत्तात्मक मानसिकता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जो गर्भवती होने पर एक महिला को 'अस्थायी रूप से अयोग्य' मानते हैं। जब आयोग ने इसी तरह के मामले में एसबीआई को नोटिस जारी किया था, तो उन्होंने तुरंत अपने दिशा-निर्देशों को वापस ले लिया था।
इससे पहले आयोग ने इंडियन बैंक द्वारा कर्मचारियों की भर्ती के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने की मीडिया रिपोटरें पर स्वत: संज्ञान लिया था, जिसमें यह बताया गया था कि बैंक ने कथित तौर पर ऐसे नियम बनाए हैं, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई महिला उम्मीदवार तीन महीने की गर्भवती है, तो उस को 'अस्थायी रूप से अयोग्य' माना जायेगा और उसका चयन होने पर उसको तत्काल कार्यभार नहीं दिया जाएगा।
इसके साथ ही इंडियन बैंक ने अपने जवाब में आयोग को सूचित किया कि गर्भावस्था की स्थिति में महिला उम्मीदवारों के शामिल होने के लिए उनके द्वारा कोई नये दिशानिर्देश जारी नहीं किये गये थे, बल्कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार द्वारा जारी मौजूदा दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं।
हालांकि, भारत सरकार के उक्त दिशा-निर्देशों में 1958 में जारी दिशा निर्देश जिसमे 12 सप्ताह की गर्भवती पाए जाने पर महिला को अस्थायी रूप से अयोग्य घोषित किया गया था, उसको कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा 1985 में संशोधित कर दिया गया था।
इसके अलावा, इंडियन बैंक ने आयोग को सूचित किया कि वे महिला पात्रता पर किसी भी अस्पष्टता को दूर करने के लिए अपने 'फिटनेस प्रमाणपत्र' को संशोधित कर रहे हैं। संशोधित प्रारूप में महिलाओं की गर्भावस्था की स्थिति के साथ-साथ गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा, अंडाशय या स्तन के रोगों के उनके इतिहास की जानकारी मांगी गयी है। संशोधित प्रारूप भी महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करता है क्योंकि इसमें महिलाओं की विशिष्ट बीमारियों का विवरण मांगा गया है, जबकि पुरुष विशिष्ट बीमारियों का कोई उल्लेख नहीं है।


