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'आप' की दुर्दशा से विपक्ष के लिये सबक

एक तरफ तो देश लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है वहीं दूसरी तरफ जो अनेक घटनाक्रम जारी हैं उनमें राजनैतिक बयानों, सीटों के तालमेल, प्रचार सभाओं, प्रेस कांफ्रेंसों आदि के अलावा जिस विषय की सर्वाधिक चर्चा है

आप की दुर्दशा से विपक्ष के लिये सबक
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एक तरफ तो देश लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है वहीं दूसरी तरफ जो अनेक घटनाक्रम जारी हैं उनमें राजनैतिक बयानों, सीटों के तालमेल, प्रचार सभाओं, प्रेस कांफ्रेंसों आदि के अलावा जिस विषय की सर्वाधिक चर्चा है, वह है आम आदमी पार्टी के नेताओं पर कथित शराब घोटाले की जांच के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की रोज गिरती गाज। पिछले लगभग एक पखवाड़े के भीतर दो बार ईडी की हिरासत (पहले 6 एवं बाद में 4 दिनों की) में रहने के बाद मंगलवार को राउज़ एवेन्यू कोर्ट द्वारा 15 दिनों की न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेजे गये दिल्ली के मुख्यमंत्री व आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल अब दिल्ली हाईकोर्ट में जमानत पाने हेतु संघर्षरत हैं। दूसरी ओर करीब 6 माह जेल में गुजारने के बाद पार्टी के सांसद संजय सिंह जमानत पाने में सफल हो चुके हैं।

हालांकि उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया एवं पूर्व स्वास्थ्य मंत्री रहे सत्येन्द्र जैन अब तक सलाखों के पीछे हैं। इतना ही नहीं, आप सरकार की मंत्री आतिशी व स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज मुख्य रूप से सीधे तौर पर कहें तो ईडी के और परोक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर हैं। कोई दावे से नहीं कह सकता कि आप के कितने मंत्री, विधायक या नेता भी जांच एजेंसी के रडार पर हैं। यह साफ हो जाने के बाद कि इसे करोड़ों का घोटाला बतलाकर दो साल से इसकी जांच कर रही ईडी न तो एक पैसा बरामद कर सकी और न ही यह बतला पाई है कि इसका पैसा किसे मिला है, न तो जांच पूरी हो सकी है और न ही गिरफ्तारियां रुक रही हैं।

अब तो यह भी साफ हो चला है कि भाजपा का उद्देश्य जो पहले आप को कमजोर करना था, अब वह चाहती है कि पार्टी नेताओं का ज्यादा से ज्यादा समय कोर्ट-कचहरियों में उलझकर बर्बाद होता रहे ताकि वे पार्टी का प्रचार न कर सकें। आप की दिल्ली के अलावा पंजाब में बड़ी उपस्थिति है परन्तु भाजपा की वहां कोई बड़ी दावेदारी नहीं है। भाजपा की दिलचस्पी ही नहीं, बल्कि नाक का भी सवाल है कि वह दिल्ली लोकसभा की सारी सीटें जीते। आप के हाथों विधानसभा चुनावों में मिली दो-दो बार की पराजयों के भी मद्देनज़र वह आहत है तथा अगला विधानसभा चुनाव जीतने के लिये उसे यहां से बड़ी जीत चाहिये जिसके आसार काफी कम हैं


यह बात सामने आ चुकी है कि जांच एजेंसियां भाजपा के वे हथियार हैं जिनके बल पर वह 'ऑपरेशन लोटस' के नाम से निर्वाचित सरकारों को गिराती है, अल्पमत में होकर भी अपनी सरकारें बनाती है, विरोधियों को उनका डर दिखाकर अपने खेमे में करती है, अपने लिये चुनावी चंदा बटोरने में उसका सहयोग लेती है।

अब जबकि मतदान कुछ ही दिनों की दूरी पर रह गया है, आप का कांग्रेस के साथ दिल्ली में गठबन्धन हो चुका है, सीटों के बंटवारे पर मुहर लग चुकी है, वह कांग्रेस के नेतृत्व में बने इंडिया गठबन्धन का हिस्सा भी बन चुका है (यह निर्णय भी उसने काफी देर से लिया) तथा उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ 31 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में इंडिया के सभी दलों ने एक विशाल रैली भी की थी- तो भी यह उन दलों व नेताओं के मंथन का मुफ़ीद अवसर है जो अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के चलते देश व लोकतंत्र पर छाये उस बड़े खतरे से आंखें मूंदे हुए हैं जो एक बहुत बड़े रूप में सबके समक्ष है। पिछले 10 वर्षों में, खासकर भाजपा के 2019 से जारी दूसरे कार्यकाल के दौरान जिस प्रकार से सरकार निरंकुश बनी है, उसमें प्रमुख हमला विपक्ष पर हो रहा है। 2014 में तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'कांग्रेस मुक्त भारत' का ही नारा दिया था लेकिन अब वह 'विपक्ष मुक्त भारत' का सपना न केवल देख रही है बल्कि उसे साकार भी कर रही है। उसका ऑपरेशन लोटस तथा विपक्ष को तोड़ने में जांच एजेंसियों का निर्लज्ज इस्तेमाल इसी अभियान के माध्यम व उपकरण हैं। हाईकोर्ट में केजरीवाल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी कह चुके हैं कि भाजपा आप को पूरी तरह से खत्म करना चाहती है।

यह समय इस बात को याद करने का भी है कि आप लम्बे समय तक भाजपा की 'बी' टीम के रूप में काम करती रही है। राजनैतिक महत्वाकांक्षा कोई बुरी बात नहीं और यह सभी का हक भी है कि वह जिस प्रकार से चाहे अपना विस्तार करे, लेकिन आम आदमी पार्टी के बहुत से निर्णय भाजपा को मजबूत करने के हुए हैं। जनांदोलन तथा सिविल सोसायटियों से निकली पार्टी यह समझ नहीं पाई- यह आश्चर्य है। उसने कई ऐसे राज्यों में चुनाव लड़े जहां उसका अस्तित्व तक नहीं था। अब भी पंजाब में वह कांग्रेस से अलग चुनाव लड़ रही है। आप की जो मौजूदा दुर्दशा है उसके लिये वह खुद बड़े पैमाने पर जिम्मेदार है और उसकी इस हालत से उन दलों को सबक लेना चाहिये जो भाजपा के विरोध में तो हैं पर विपक्षी मत विभाजन के भी जिम्मेदार हैं।


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