बांग्लादेश में हिंदू युवक की नृशंस हत्या पर भड़कीं तसलीमा नसरीन, पुलिस पर उठाए सवाल
तसलीमा नसरीन ने सोशल मीडिया पोस्ट पर इस पूरे घटनाक्रम को साझा करते हुए कहा कि दीपू दास की लिंचिंग में पुलिस की भूमिका हो सकती है।

नई दिल्ली: निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता तसलीमा नसरीन ने शनिवार को दावा किया कि भीड़ हिंसा में मारे गए हिंदू युवक दीपू चंद्र दास पर ईशनिंदा का आरोप झूठा था। तसलीमा नसरीन ने सोशल मीडिया पोस्ट पर इस पूरे घटनाक्रम को साझा करते हुए कहा कि दीपू दास की लिंचिंग में पुलिस की भूमिका हो सकती है उन्होंने सवाल उठाया कि इस हत्या के दोषियों को आखिर न्याय के कटघरे में कौन लाएगा। उन्होंने कहा कि फैक्ट्री में काम करने वाले एक मुस्लिम सहकर्मी ने मामूली विवाद के बाद भीड़ के बीच दीपू पर पैगंबर के खिलाफ टिप्पणी करने का आरोप लगा दिया, जिसके बाद हिंसा भड़क उठी।
सहकर्मी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की
तसलीमा नसरीन ने ‘एक्स’ पर दीपू का एक वीडियो साझा करते हुए कहा कि वह एक गरीब मजदूर था और भालुका की फैक्ट्री में काम करता था। उनके अनुसार, आरोप लगते ही उग्र भीड़ ने दीपू पर हमला कर दिया। बाद में पुलिस ने उसे बचाकर हिरासत में लिया, यानी वह पुलिस संरक्षण में था। नसरीन ने सवाल उठाया कि पुलिस ने आरोप लगाने वाले सहकर्मी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि या तो पुलिस ने उसे फिर से उग्र भीड़ के हवाले कर दिया, या फिर कट्टरपंथियों ने थाने से उसे निकाल लिया। घटना को बेहद कठोर शब्दों में बयान करते हुए नसरीन ने कहा कि दीपू को पीटा गया, फांसी दी गई और फिर जलाया गया, जिसे उन्होंने “जिहादी उत्सव” करार दिया।
थरूर और प्रियंका गांधी ने घटना की कड़ी निंदा की
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार समेत देश के बड़े राजनीतिक दलों ने हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की हत्या की कड़ी निंदा की। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने एक पोस्ट में लिखा कि बांग्लादेश में फैली भीड़तंत्र की हिंसा के बीच यह एक असहनीय रूप से दुखद घटना है। उन्होंने इस तरह की घटना पर बांग्लादेश सरकार पर सवाल उठाए। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने केंद्र से इस मामले में कड़ा संज्ञान लेने की मांग की और कहा कि बांग्लादेश में हिंदू, ईसाई और बौद्ध अल्पसंख्यकों के साथ बढ़ती हिंसा चिंताजनक है। बांग्लादेश के अल्पसंख्यक संगठनों ने भी घटना की कड़ी निंदा की है।


