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SC का बड़ा फैसला: समुदाय से बाहर शादी पर पिता छीन सकता है जायदाद

मौजूदा मामले में शाइला जोसेफ के पिता एनएस श्रीधरन ने शाइला को समुदाय से बाहर शादी करने पर वसीयत के जरिये अपनी संपत्ति में उत्तराधिकार से बाहर कर दिया। श्रीधरन की शाइला सहित नौ संतानें थीं।

SC का बड़ा फैसला: समुदाय से बाहर शादी पर पिता छीन सकता है जायदाद
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नई दिल्ली: समुदाय से बाहर शादी करने पर पिता ने वसीयत के जरिये बेटी को अपनी संपत्ति से वंचित कर दिया। लेकिन, पिता की संपत्ति में बंटवारा कर हिस्से का दावा कर रही शाइला को अब कोई अधिकार नहीं मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि वसीयत स्पष्ट रूप से साबित हो चुकी है और इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने वसीयत पर संदेह जताने वाले निचली अदालत और हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को पिता की उस संपत्ति में बंटवारे और हिस्से का दावा करने का अधिकार नहीं है, जो उसके पिता ने उसके भाई-बहनों के नाम कर दी है।

दलील खारिज
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और के विनोद चंद्रन की पीठ ने वसीयत में संपत्ति से वंचित की गई वादी शाइला के वकील की यह दलील खारिज कर दी कि उसे पिता की संपत्ति में सिर्फ नौवां हिस्सा मिलेगा, जो कि नगण्य भाग ही होगा। पीठ ने कहा कि हम यहां न्याय के आधार पर विचार नहीं कर रहे और वसीयतकर्ता की इच्छा सर्वोपरि है। वसीयतकर्ता की अंतिम वसीयत से हटा नहीं जा सकता या उसे विफल नहीं किया जा सकता।

संपत्ति में उत्तराधिकार से बाहर कर दिया
मौजूदा मामले में शाइला जोसेफ के पिता एनएस श्रीधरन ने शाइला को समुदाय से बाहर शादी करने पर वसीयत के जरिये अपनी संपत्ति में उत्तराधिकार से बाहर कर दिया। श्रीधरन की शाइला सहित नौ संतानें थीं। श्रीधरन ने अपनी संपत्ति शाइला को छोड़कर बाकी आठ बच्चों में बांट दी थी। शुरुआत में शाइला ने वसीयत पर न तो कोई सवाल उठाया और न ही कोई दावा किया। लेकिन, काफी बाद में उसने अपने पिता की संपत्ति में बंटवारे का मुकदमा दाखिल किया। इसका अन्य भाई-बहनों ने पिता की वसीयत को आधार बनाते हुए विरोध किया। निचली अदालत और हाई कोर्ट ने मुकदमे की सुनवाई में वसीयत में गवाह के बयानों को देखते हुए संदेह जताया था। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि वसीयत संतोषजनक रूप से सिद्ध हो चुकी है। वसीयतकर्ता और गवाहों की उपस्थिति और उस पर सभी के हस्ताक्षर गवाह ने बताए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम अपनी राय वसीयतकर्ता की राय की जगह नहीं रख सकते। उसकी इच्छा अपने तर्कों से प्रेरित है।

वसीयत में कोई हस्तक्षेप नहीं
शीर्ष अदालत ने कहा कि वसीयतकर्ता वसीयत बनाते समय स्वस्थ और विवेकशील पाया गया था। वसीयत में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से सिद्ध हो चुकी है। उच्च न्यायालय और निचली अदालत का फैसला रद किया जाता है। वादी का अपने पिता की संपत्ति पर कोई विभाज्य दावा नहीं है, जो वसीयत के द्वारा वादी के अन्य भाई-बहनों को दी गई है।


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