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Pakistan News: तालिबान से लड़ने के लिए इस संगठन के आतंकियों का उपयोग करने की तैयारी में पाकिस्तान
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम लंबे समय में कारगर साबित नहीं होगा। लश्कर-ए-तैयबा में कई ऐसे लोग हैं जो तालिबान के प्रति सहानुभूति रखते हैं। इसके कई सदस्य तालिबान और उसकी कार्यशैली का समर्थन करते हैं।

इससे निपटने के लिए उसने लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों को अफगानिस्तान भेजने का फैसला किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम लंबे समय में कारगर साबित नहीं होगा। लश्कर-ए-तैयबा में कई ऐसे लोग हैं जो तालिबान के प्रति सहानुभूति रखते हैं। इसके कई सदस्य तालिबान और उसकी कार्यशैली का समर्थन करते हैं।दोनों देशों के तनाव से नाखुश
लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के शीर्ष नेता भी तालिबान और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव से नाखुश हैं। ये नेता तालिबान को अपना स्वाभाविक सहयोगी मानते हैं। मुंबई के 26-11 आतंकी हमलों से पहले भी लश्कर-ए-तैयबा के कई सदस्य संगठन छोड़कर तालिबान के साथ मिलकर पश्चिमी ताकतों के खिलाफ लड़ने की योजना बना रहे थे। उस समय आइएसआइ ने हस्तक्षेप कर इसे होने से रोक दिया था। मुंबई में 26-11 हमले को इसलिए अंजाम दिया गया ताकि लश्कर-ए-तैयबा के कार्यकर्ताओं का ध्यान भटकाया जा सके। अधिकारियों का कहना है कि लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों को तालिबान के खिलाफ लड़ने के लिए भेजने का यह फैसला उल्टा पड़ सकता है। संगठन के कई सदस्य नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह कर देंगे, जिससे बड़े पैमाने पर फूट पड़ सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भर्ती प्रक्रिया पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि कई लोग तालिबान के खिलाफ लड़ने से हिचकिचाएंगे क्योंकि वे उन्हें अपना भाई मानते हैं।हताशा भरा फैसला
आपरेशन सिंदूर के दौरान लश्कर-ए-तैयबा के कई ठिकानों, प्रशिक्षण केंद्रों पर हमले हुए थे। इसके बाद इस आतंकी संगठन को भारी नुकसान हुआ है। पाकिस्तानी प्रशासन और नेतृत्व से निराश होकर इसके आतंकियों ने संगठन छोड़ने की कोशिश भी की है। आपरेशन सिंदूर में उन्हें आसानी से मार गिराया गया। वे अचानक हमले के लिए तैयार नहीं थे। इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते बहुत सारा ढांचा नष्ट हो चुका था। आतंकियों ने आपरेशन से पहले खुफिया जानकारी की कमी पर भी सवाल उठाए थे। इन सभी कारणों और शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी से उनका मनोबल टूट गया है। ऐसे समय में तालिबान के खिलाफ लश्कर-ए-तैयबा को तैनात करने का पाकिस्तानी सेना का हताशा भरा फैसला स्थिति को और भी खराब कर देगा।
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