Top
Begin typing your search above and press return to search.

वकील राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा : जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने आंतरिक संप्रभुता बरकरार रखी थी

वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (एससी) के समक्ष दलील दी कि जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने आंतरिक संप्रभुता बरकरार रखी थी और अनुच्छेद 370 स्थायी समझौते का संवैधानिक विकल्प है

वकील राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा : जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने आंतरिक संप्रभुता बरकरार रखी थी
X

नई दिल्ली। वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (एससी) के समक्ष दलील दी कि जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने आंतरिक संप्रभुता बरकरार रखी थी और अनुच्छेद 370 स्थायी समझौते का संवैधानिक विकल्प है।

उन्होंने तर्क दिया कि भारतीय संघ के साथ विलय पत्र में प्रवेश करने से एक हद तक राज्य की बाहरी संप्रभुता का नुकसान हुआ, लेकिन आंतरिक संप्रभुता नहीं खोई है।

धवन ने कहा कि भारत में दुनिया की सबसे अधिक विविधता है और भारतीय संविधान कई राष्ट्रों और कई संस्कृतियों वाली सभ्यता का संविधान है।

उन्होंने कहा, "जिस विविधता को संजोया जाना है, उसे एकरूपता के नाम पर खत्म नहीं किया जा सकता है। भारतीय संविधान बहु-सममितीय है, जिसका जम्मू और कश्मीर एक हिस्सा है।"

धवन ने तर्क दिया कि राष्ट्रपति शासन के तहत केंद्रीय संसद राज्य विधानमंडल की कानून बनाने की शक्तियों का प्रयोग कर सकती है, लेकिन सीमाओं को बदलने जैसे कार्य नहीं कर सकती।

उन्होंने कहा कि जबकि संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा की गई है, अनुच्छेद 3, 4 और 370 (पूर्व शर्त के रूप में राज्य विधायिका की अनिवार्य सहमति प्रदान करना) के तहत निहित प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा, ''शर्तें राज्य की विधायिका के लिए विशिष्ट हैं... न तो संसद और न ही राष्ट्रपति उन्हें प्रतिस्थापित कर सकते हैं।'' उन्होंने कहा कि प्रतिस्थापन की ऐसी प्रक्रिया संविधान के लिए विध्वंसक होगी।

उन्होंने बताया कि अनुच्छेद 370 कई प्रावधानों में से एक है, जो संविधान में संघवाद की बुनियादी संरचना का गठन करता है।

उन्होंने संघवाद के संरक्षण के बारे में अपने तर्कों के समर्थन में दिल्ली की एनसीटी सरकार को सेवाओं का नियंत्रण सौंपने के सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले और कई अन्य न्यायिक उदाहरणों का हवाला दिया। उन्होंने कहा, राज्यों की स्वायत्तता हमारे संविधान के लिए मौलिक है।

धवन के बाद वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने संविधान पीठ के समक्ष मौखिक दलीलें शुरू कीं। उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने में शक्तियों का प्रयोग संविधान के साथ "धोखाधड़ी" के अलावा कुछ नहीं था।

उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने की केंद्र की कार्रवाई का देश के भविष्य पर प्रभाव पड़ेगा।

दवे ने कहा, “कल ऐसा हो सकता है कि मेरी पार्टी 'ए' राज्य में निर्वाचित न हो सके। मैं (केंद्र में सत्तारूढ़ दल का जिक्र करते हुए) इसे (राज्य 'ए') केंद्र शासित प्रदेश में विघटित कर दूंगा? क्योंकि कानून व्यवस्था की समस्या है? यह गंभीरता से विचार करने लायक बात है।''

उन्होंने कहा, “हमारे पास उत्तर पूर्व भारत के कई राज्यों में विद्रोह है। पंजाब में हमारा लंबे समय तक विद्रोह रहा। अगर हम राज्यों को केंद्र शासित प्रदेशों में विघटित करना शुरू कर देंगे, तो कोई भी राज्य नहीं बचेगा।”

दवे ने तर्क दिया कि राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र का जिक्र करते हुए कहा, "2019 में सत्तारूढ़ पार्टी के घोषणापत्र में कहा गया था कि हम (अनुच्छेद) 370 को निरस्त कर देंगे।"

इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करना संविधान की लोकतंत्र, संघवाद आदि जैसी बुनियादी विशेषताओं पर प्रहार करता है।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ 02 अगस्त से संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

संविधान पीठ में शामिल शीर्ष अदालत के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं : सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बी.आर. गवई, और सूर्यकांत।

संविधान पीठ याचिकाकर्ताओं की दलीलें गुरुवार को भी सुनना जारी रखेगी।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it