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सुप्रीम कोर्ट ने वर्षों से फैसले लंबित रखने पर झारखंड हाईकोर्ट को जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामले में निचली अदालत में दोषी करार दिए गए 10 अभियुक्तों की याचिका पर सोमवार को सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया है

सुप्रीम कोर्ट ने वर्षों से फैसले लंबित रखने पर झारखंड हाईकोर्ट को जारी किया नोटिस
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रांची/नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामले में निचली अदालत में दोषी करार दिए गए 10 अभियुक्तों की याचिका पर सोमवार को सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया है।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उन्होंने झारखंड हाईकोर्ट में 2018-19 में याचिकाएं दाखिल की थीं, जिस पर वर्ष 2022-23 में सुनवाई पूरी होने के बाद भी फैसला अब तक लंबित रखा गया है।

शीर्ष अदालत में याचिका दायर करने वाले 10 लोगों में छह को निचली अदालत में मौत और चार अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। इनमें से 9 लोग रांची के होटवार स्थित बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार में बंद हैं, जबकि एक सजा प्राप्त व्यक्ति हाल में जमानत मिलने के बाद दुमका जेल से बाहर आया है।

इनकी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने नोट किया कि झारखंड हाईकोर्ट में सभी 10 लोगों की याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होने के बाद लंबे समय से फैसला सुरक्षित रखने वाले न्यायाधीश एक ही हैं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें पेश करते हुए अधिवक्ता फौजिया शकील ने कहा कि सुनवाई पूरी होने के बाद फैसले को वर्षों तक लंबित रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को दिए गए जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। संविधान की इस व्यवस्था के अनुसार, ‘त्वरित न्याय’ पाना भी नागरिकों का अधिकार है।

उन्होंने अपनी दलील में फैसला सुनाने में विलंब की वजह से होने वाली मानसिक पीड़ा और मौत की सजा के निष्पादन में देरी से उत्पन्न तनाव का भी जिक्र किया। याचिका में एचपीए इंटरनेशनल बनाम भगवानदास केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया, जिसमें लंबे समय तक निर्णय सुरक्षित रखने की प्रथा पर चिंता जताई गई थी।

याचिका में झारखंड हाईकोर्ट नियमावली (2001) का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि दलीलें पूरी होने के 6 सप्ताह के भीतर फैसला सुनाया जाना चाहिए। अधिवक्ता ने सजा निलंबित करने के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अगर कोई दोषी आठ साल की वास्तविक सजा काट चुका है, तो ज्यादातर मामलों में उसे जमानत मिलनी चाहिए।


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