ताज़ा हिंडनबर्ग रिपोर्ट : भ्रष्टाचार की नई परतें
आर्थिक मामलों तथा वित्तीय गतिविधियों की रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग ने पिछले साल ही अडानी समूह पर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाया था

आर्थिक मामलों तथा वित्तीय गतिविधियों की रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग ने पिछले साल ही अडानी समूह पर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाया था, अब एक बार फिर एजेंसी ने जो नया मामला उजागर किया है, उसके केन्द्र में अडानी समूह तो है ही, इसके अलावा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी सेबी का नाम भी इसमें शामिल हो गया है। ताजा खुलासे के मुताबिक सेबी की प्रमुख माधवी बुच एवं उनके पति धवल बुच ने 3 ऑफ शोर कम्पनियों में बड़ी राशि का निवेश किया है। इन कंपनियों का संबंध अडानी समूह से है। रिपोर्ट के मुताबिक आज तक सेबी ने अडानी की दूसरी संदिग्ध शेयरहोल्डर कंपनियों पर कोई कार्रवाई नहीं की है जो इंडिया इन्फोलाइन की ईएम रिसर्जेंट फंड और इंडिया फोकस फंड की ओर से संचालित की जाती हैं। हालांकि बुच दंपती ने एक बयान जारी कर इन आरोपों को गलत बताया है।
इस खुलासे के बाद अब उंगलियां प्रधानमंत्री मोदी पर भी उठ रही हैं। क्योंकि विपक्ष कई बार गौतम अडानी और नरेन्द्र मोदी के संबंधों पर सवाल उठा चुका है। संसद में भी इस पर सवाल उठाए गए, लेकिन न नरेन्द्र मोदी न ही उनकी सरकार ने इस पर कोई संतोषजनक जवाब दिया। हिंडनबर्ग की पहली रिपोर्ट के बाद भी अडानी समूह के खिलाफ जांच नहीं की गई, इसलिए विपक्ष के आरोप और तेज हो जाते हैं। अब श्री मोदी का इस मामले से कोई सम्बन्ध नहीं है- यह तभी माना जायेगा जब वे इन आरोपों की तत्काल जांच का आदेश दें। विपक्ष अब यह सवाल भी उठा रहा है कि 12 अगस्त तक निर्धारित संसद के सत्र को आनन-फानन में क्या इसलिये अनिश्चितकाल के लिये स्थगित कर दिया गया क्योंकि इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने की बातें सुनाई देने लगीं थीं। खुद हिंडनबर्ग ने एक सूचना देकर हलचल मचा दी थी कि शनिवार को भारत में कुछ बड़ा होने जा रहा है।
इस मामले को पूरा समझने के लिये यह जान लेना ज़रूरी है कि पिछले साल की जनवरी में इस आशय की रिपोर्ट सामने आई थी कि गौतम अडानी विश्व के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति इसलिये बने हैं क्योंकि उन्हें भारत सरकार का प्रश्रय और सहायता मिल रही है। इसके चलते ही उनके शेयरों में भारी उछाल आया था। इसके पीछे उनके भाई विनोद अडानी द्वारा विदेशों में स्थापित ऑफ शोर कम्पनियां हैं। सरल भाषा में कहें तो ये वे कम्पनियां होती हैं जिनमें अवैध तरीके से कोई कारोबारी पैसे डालता है। फर्जी कम्पनियां होने के कारण उन पर खर्च तो होता नहीं लेकिन काला धन निवेश करने की सुविधा होती है। मोदी के साथ अडानी की नज़दीकियों के कारण विपक्ष द्वारा जांच की बार-बार मांग होने के बाद भी ऐसा नहीं किया गया, न ही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) बिठाई गई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा अदानी-मोदी के सम्बन्धों पर कई बार बातें उठाई गईं। अपनी पहली राष्ट्रव्यापी पदयात्रा में भी राहुल इस बात को उठाते रहे कि अदानी और अंबानी (मुकेश) मिलकर देश के सभी संसाधनों पर कब्जा कर रहे हैं क्योंकि उनके पीछे खुद मोदी हैं। यह सवाल भी पूछा जाता रहा है कि जब देश में गरीबी और भुखमरी बढ़ रही है तो अडानी किस प्रकार से दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक हैं। यह इसलिये सबके लिये आश्चर्य का विषय रहा क्योंकि कुछ ही समय पहले तक अडानी की विश्व रैंकिंग 600 के भी नीचे थी।
यहां यह भी याद किये जाने की आवश्यकता है कि पिछली लोकसभा के आखिरी दिनों में हुए एक सत्र में राहुल गांधी ने जब उस चित्र को दिखाया था जिसमें अडानी के हवाई जहाज में बैठकर मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के लिये दिल्ली आ रहे हैं, वर्तमान लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला उस वक्त सीधे-सीधे मोदी के बचाव में उतर आये थे। राहुल की जुबान बन्द करने हेतु उनके खिलाफ लम्बित अवमानना का एक मुकदमा भी पुनर्जींवित किया गया और उनकी सदस्यता छीन ली गई थी। वैसे उनकी सदस्यता बहाली सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के चलते हुई पर गौर करने वाली बात यह है कि ओम बिड़ला को ही दोबारा सदन का अध्यक्ष बनाया गया।
बहरहाल, हिंडनबर्ग की इस नयी रिपोर्ट से यह संदेह उपजता है कि अडानी को सेबी की ओर से मिलने वाली क्लीन चिट का कारण सेबी प्रमुख का यही व्यक्तिगत हित हो सकता है। यदि अडानी समूह के खिलाफ सेबी उदार रहता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। याद रहे कि इस लोकसभा चुनाव के जब नतीजे आने वाले थे तब उसके ऐन पहले भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड बहुमत की सरकार बनने का दावा गोदी मीडिया कहे जाने वाले प्रकाशन एवं प्रसारण संस्थानों ने किया था। इसके चलते सेंसेक्स एवं निफ्टी में भारी उछाल आया था। यह वृद्धि कृत्रिम थी। इस अफवाह में, कि भाजपा सरकार फिर से आ रही है, लोगों ने जमकर शेयर खरीदे परन्तु जब भाजपा एवं उसकी सहयोगी पार्टियों (नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस ) की सीटें कम आईं तो शेयर मार्केट धड़ाम हो गया। इस नियोजित उतार-चढ़ाव में मध्यवर्गीय निवेशकों के कई लाख करोड़ डूबे। अब हिंडनबर्ग की जो रिपोर्ट आई है, उसके मद्देनज़र यह भी देखा जाना चाहिये कि क्या इसमें भी सेबी ने साथ दिया था। अगर ऐसा है तो यह बेहद गंभीर मामला है जो बताता है कि भ्रष्ट कारोबारियों को बचाने के लिये सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था की गई है कि कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता- चाहे निवेशकों का कितना भी नुकसान हो।


