भाषाएं सरहदों की सीमा को भी समाप्त करती हैं : नाईक
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि लोग दीवारे खड़ी करते हैं लेकिन भाषाएं लोगों को एक दूसरे से जोड़ती है और ये सरहदों की सीमा को भी समाप्त करती हैं

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि लोग दीवारे खड़ी करते हैं लेकिन भाषाएं लोगों को एक दूसरे से जोड़ती है और ये सरहदों की सीमा को भी समाप्त करती हैं।
श्री नाईक गुरूवार को यहां राजभवन में अमेरिका में रह रहे प्रवासी भारतीय एवं सुप्रसिद्ध शायर नूर अमरोहवी के द्विभाषीय गज़ल संग्रह ‘दुआएं काम आती हैं‘ के लोकार्पण कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संविधान में उदृत सभी भाषाओं को भारतीय भाषा का दर्जा प्राप्त है। संस्कृत सभी भाषाओं की माँ है। हिन्दी की अपनी बहुत बड़ी ताकत है।
उन्होंने कहा कि गत दिनों माॅरीशस में हुए हिन्दी सम्मेलन में बड़ी संख्या में हिन्दी भाषियों का उपस्थित होना इस बात का प्रमाण है। हिन्दी के बाद सबसे ज्यादा उर्दू बोली जाती है। हिन्दी और उर्दू भाषा में संग्रह वास्तव में हिन्दी उर्दू का मिलन और गंगा-जमुना के संगम जैसा भाव देता है। श्री अमरोहवी ने अमेरिका में रहते हुए अपने संग्रह में दोनों भाषाओं को बराबर न्याय देने का सराहनीय प्रयास किया है।
इस अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को याद कर श्रद्धांजलि भी अर्पित की गई। राज्यपाल ने स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को ‘भाषाप्रभु’ बताते हुए कहा कि आज उनका अस्थि क्लश लखनऊ आ रहा है। उन्होंने कहा कि अटल जी देश की राजनीति में अद्वितीय एवं अप्रतिम थे जिन्होंने देश के लिये स्वयं को समर्पित कर दिया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे वासिफ फारूखी ने एक शेर ‘मौत उसकी है करे जिसका जमाना अफसोस, यूं तो जमाने में सभी आये हैं मरने के लिये’ के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि की।


