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अफगान बच्चों के लिए रोज का खतरा हैं बारूदी सुरंगें

अफगानिस्तान में हर दूसरे दिन बारूदी सुरंग विस्फोट से एक बच्चे की मौत हो जाती है. खेलते-खेलते बच्चे अनजाने में बारूदी सुरंग की चपेट में आ जाते हैं

अफगान बच्चों के लिए रोज का खतरा हैं बारूदी सुरंगें
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अफगानिस्तान में चार दशकों के संघर्ष के बाद नागरिक अभी भी बारूदी सुरंगों और छोड़े गए अन्य हथियारों से मर रहे हैं. अफगानिस्तान के गजनी प्रांत में काले धुएं का बादल अभी साफ ही हुआ था कि बच्चे बारूदी सुरंग विस्फोट से बने गड्ढे के किनारे इकट्ठा हो गए. इन बारूदी सुरंगों से अफगानिस्तान में हर दूसरे दिन एक बच्चे की मौत हो जाती है.

2021 में तालिबान द्वारा अपना विद्रोह समाप्त करने और पश्चिमी समर्थित सरकार को हटाने के बाद से अफगान लोग खेतों, स्कूलों और सड़कों पर लौटने में सक्षम हो गए हैं. लेकिन आवाजाही की इस आजादी के साथ-साथ अफगान नागरिकों को 40 वर्षों के निरंतर संघर्ष के बाद छोड़े गए हथियारों और विस्फोटकों के खतरों का भी सामना करना पड़ता है.

जान को खतरा

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2023 से इस साल अप्रैल तक लगभग 900 लोग ऐसे विस्फोटकों से मारे गए या घायल हुए. मृतकों में ज्यादातर बच्चे थे.

1979 से 1989 तक सोवियत संघ के आक्रमण के बाद प्रांतीय राजधानी गजनी के दक्षिण में काचकिला गांव से सिर्फ 100 मीटर की दूरी पर एंटी-टैंक सुरंग लगाई गई थी. ब्रिटिश संगठन हलो ट्रस्ट के डिमाइनिंग विशेषज्ञों ने इसका पता लगाया और इसे डेटोनेट कर दिया. इस धमाके की गूंज तीन किलोमीटर दूर तक सुनाई दी.

अफगानिस्तान में बारूदी सुरंग का जाल

अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र मिशन, यूएनएएमए के माइन एक्शन सेक्शन के प्रमुख निक पॉन्ड के मुताबिक तालिबान सरकार "देश में बारूदी सुरंगों को खत्म करने के बहुत पक्ष में है और उन्हें जल्द से जल्द खत्म करना चाहती है."

1988 की शुरुआत में अफगानिस्तान में बारूदी सुरंगों को हटाने का काम शुरू हुआ, लेकिन दशकों के युद्ध के बाद देश फिर से बारूदी सुरंगों और अन्य विस्फोटकों से त्रस्त हो गया.

पॉन्ड ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि इस समय यह अनुमान लगाना लगभग असंभव है कि देश में कितनी बारूदी सुरंगें हैं.

जनवरी 2023 से बचे हुए हथियारों या विस्फोटकों से मारे गए या घायल हुए लोगों में से 82 प्रतिशत बच्चे थे, जिनमें से आधे हादसे बच्चों के खेलने के दौरान हुए. इसी साल अप्रैल के अंत में नोकुर्दक गांव में इसी कारण से दो बच्चों की मौत हो गई.

अपने छोटे बच्चों से घिरी शाओ ने बताती हैं कि कैसे उसका 14 साल का बेटा ऐसी ही एक बारूदी सुरंग का शिकार हो गया. वह कहती हैं, "उसने उस पर एक बार पत्थर मारा, दूसरी बार मारा और तीसरी बार में धमाका हो गया."

बच्चे की मौके पर ही मौत हो गई. इस धमाके में जावेद के दोस्त सखी दाद की भी मौत हो गई. उसकी उम्र भी 14 साल थी.

सखी दाद के 18 साल के भाई मोहम्मद जाकिर ने कहा, "लोगों ने सुना था कि यहां आसपास विस्फोटक रखे गए हैं, लेकिन गांव में पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ था." उन्होंने कहा, "बच्चों को खतरे के बारे में चेतावनी देने के लिए गांव में कोई नहीं आया."

हलो ट्रस्ट के एक अधिकारी जबतो मायर ने कहा कि "धन की कमी" उनके काम के लिए एक बड़ी चुनौती है.

पॉन्ड ने कहा, "साल 2011 के आसपास बारूदी सुरंग हटाने के काम में 15,500 लोग थे. वर्तमान में यह संख्या 3,000 है."

दुनियाभर में चल रहे अन्य संघर्षों के कारण फंडिंग में कमी आई है, जबकि अफगानिस्तान में भी तालिबान के सत्ता में आने के बाद दानदाताओं ने हाथ खींच लिए हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि तालिबान सरकार को किसी अन्य देश ने मान्यता नहीं दी है


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