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लालू की अनुपस्थिति में राजद को सीट के लाले

बिहार में इस लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व में महागठबंधन तो बना लिया

लालू की अनुपस्थिति में राजद को सीट के लाले
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पटना। बिहार में इस लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व में महागठबंधन तो बना लिया, परंतु महागठबंधन के घटक दलों को ही नहीं, बल्कि मतदाताओं ने राजद को भी नकार दिया। माना जा रहा है कि पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद की अनुपस्थिति के कारण राजद को इस बड़ी नाकामी से रूबरू होना पड़ा।

चारा घोटाला के कई मामलों में रांची की एक जेल में सजा काट रहे लालू प्रसाद ने जेल से ही मतदाताओं को राजद की ओर आकर्षित करने की हर कोशिश की, परंतु चुनाव परिणाम से स्पष्ट है कि राजद की रणनीति को मतदाताओं ने नकार दिया।

लालू की अनुपस्थिति में पार्टी की कमान संभाल रहे लालू के पुत्र और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने राजद के वोट बैंक मुस्लिम-यादव (एम-वाई) समीकरण को साधने के लिए जातीय गोलबंदी करने की कोशिश की और आरक्षण समाप्त करने का भय दिखाकर 'संविधान बचाओ' के नारे जरूर लगाए, परंतु मतदाताओं ने उसे भी नकार दिया। राजद की ऐसी करारी हार इसके पहले कभी नहीं हुई थी।

पिछले लोकसभा चुनाव में भी राजद ने चार लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी, परंतु इस चुनाव में अबतक मिले रुझानों से स्पष्ट है कि राजद के हिस्से एक सीट या खाता भी नहीं खुले। हालांकि इसकी अभी अधिकारिक घोषणा शेष है।

इस चुनाव में लालू प्रसाद की पुत्री और राज्यसभा सांसद मीसा भारती को एक बार फिर पाटलिपुत्र से हार की संभावना है। पाटलिपुत्र से राजग प्रत्याशी रामकृपाल यादव ने निर्णायक बढ़त बना ली है।

पिछले लोकसभा चुनाव में राजद को चार सीटें मिली थीं, जबकि वर्ष 2004 में राजद ने 22 सीटें हासिल की थी।

कहा जाता है कि महागठबंधन के घटक दल इस भरोसे पर रहे कि राजद के वोट बैंक के सहारे वे चुनावी मंझधार से पार निकल जाएंगे।

बिहार की राजनीति के जानकार संतोष सिंह कहते हैं, "राजद ही नहीं महागठबंधन के घटक दल अपने वोटबैंक के भरोसे रहे और नकारात्मक राजनीति करते रहे, जबकि दूसरी तरह राजग विकास की बात की।"

उन्होंने कहा कि लालू एक दक्ष नेता हैं, जबकि तेजस्वी अभी राजनीति की शुरुआत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद अगर अपने वोट बैंक को मजबूत रखते थे तो उस वोटबैंक का इजाफा भी करते थे।

इधर, राजद के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि "तेजस्वी ने कभी भी अपनी पार्टी के अनुभवी नेताओं से चुनाव के दौरान मुलाकात नहीं की और न ही उनसे सलाह मांगी। इसी दौरान दोनों भाइयों के बीच विवाद की भी खबरें आती रहीं। इसका भी प्रभाव इस चुनाव पर पड़ा है।"

इस बीच, राजद के नेता भी मानते हैं कि लालू प्रसाद के नाम पर ही महागठबंधन को कुछ वोट हासिल हो सका। लालू प्रसाद सोशल मीडिया के जरिए मतदाताओं से अपील करते रहे थे।

पटना के वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार कहते हैं, "बिहार की राजनीति की समझ लालू को थी। यहां तक कि क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के नाम तक लालू प्रसाद को याद रहते हैं। जेल में रहने के कारण तेजस्वी के लिए लालू इस बार उतने सुलभ भी नहीं हो सके कि उनसे सलाह भी ली जा सके।"

उल्लेखनीय है कि महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, रालोसपा के अलावा कई अन्य छोटे दल शामिल थे।


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