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ललित सुरजन की कलम से- लेखक का विद्रोह बनाम सत्ता का अहंकार

'भारतीय जनता पार्टी के साथ सदा से दिक्कत रही है कि वह भावनाओं की राजनीति से आगे नहीं बढ़ पाई। उसके लिए देशभक्ति व राष्ट्रप्रेम वही है कि जो मनोज कुमार की फिल्मों में दिखाया जाता है

ललित सुरजन की कलम से- लेखक का विद्रोह बनाम सत्ता का अहंकार
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'भारतीय जनता पार्टी के साथ सदा से दिक्कत रही है कि वह भावनाओं की राजनीति से आगे नहीं बढ़ पाई। उसके लिए देशभक्ति व राष्ट्रप्रेम वही है कि जो मनोज कुमार की फिल्मों में दिखाया जाता है।

यह अकारण नहीं है कि भाजपा में बड़े-छोटे परदों के अभिनेताओं का बड़ा सम्मान होता है। यही देशभक्ति उन्हें सेना व पुलिस के अफसरों की ओर भी आकर्षित करती है और जब साहित्य की बात उठती है तो वे उन मंचीय कवियों पर बिछे जाते हैं जो वीररस या हास्यरस की कथित कविताएं सुनाकर मनोरंजन करते हैं।

ये समझते हैं कि चीनी तुमको पानी में घोलकर पी जाएंगे या पाक तू नापाक है जैसी कविताओं से मोर्चा फतह किया जा सकता है। ऐसा कहना बहुत गलत नहीं होगा कि इन्हें एक असुरक्षा की भावना हरदम घेरे रहती है।

यूं तो संघ परिवार प्राचीन भारतीय संस्कृति का निरंतर जयघोष करता है, लेकिन वास्तविकता यही है कि अधिकतर नेता नाम-जाप और कर्मकांड से आगे संस्कृति से वास्ता नहीं रखते।'

(देशबन्धु में 22 अक्टूबर 2015 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/10/blog-post_21.html


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