पशु औषधालय में स्टाफ की कमी, तालाबंदी
दाढ़ी शासकीय पशु औषधालय अंतर्गत संचालित औषधालय में पिछले चार पांच वर्षो से डॉक्टर सहित अन्य कर्मचारियों की कमी के कारण पशुओं को होने सिजनेबल बीमारीओ के इलाज के लिए किसानों को दाये बाये भटकना पड़ता है

बेमेतरा। दाढ़ी शासकीय पशु औषधालय अंतर्गत संचालित औषधालय में पिछले चार पांच वर्षो से डॉक्टर सहित अन्य कर्मचारियों की कमी के कारण पशुओं को होने सिजनेबल बीमारीओ के इलाज के लिए किसानों को दाये बाये भटकना पड़ता हैं। औषधलयो में डॉक्टर एवम अन्य कर्मचारियों की कमी वर्षो से बनी हुई हैं जिसके कारण फिलहाल सरकारी इलाज का कार्य पूरी तरह से बंद हो चुका है।
शासन द्वारा पशु औषधालय का भवन जरूर बनाया गया है। किंतु अधिकारी कर्मचारियों की कमी के कारण सरकारी पशु ओषधालय का कोई लाभ ग्रामीण अंचल के किसानों को नहीं मिल पा रहा है। खेती किसानी के कारण अधिकतर किसानों के यहां पालतू मवेशी पाले जाते हैं। जिसमे गाय भैंस दूध के लिए एवं अन्य किस्म के पशुओं से खेती किसानी का कार्य लिया जाता है। सिजनेबल बीमारी के कारणों को होने वाली समस्याओं के दरमियान सरकारी इलाज नहीं मिलने के कारण दिनों-दिन अब पालतू पशुओं की संख्या घटने लगी है।
इस संबंध में अनेक कृषकों ने बताया कि बारिश के सीजन के अलावा मौसम आधारित होने वाले बीमारी खुरहा चपका सहित अन्य बीमारियों बुखार एवं जुखाम के बाद इलाज के नाम पर दाएं-बाएं भटकना पड़ता है सरकारी पशु ओषधालय दाढ़ी छिरहा खंडसरा में डॉक्टर की कमी पिछले कई वर्षों से बनी हुई है स्थानीय जनप्रतिनिधियों के द्वारा इस ओर ध्यान ही नहीं दिया जाता। इसी का परिणाम है कि आज पशु औषधालय सहित अन्य सरकारी अस्पतालों में भी यही स्थिति बनी हुई है।
ग्राम दाढ़ी के उन्नतशील कृष्ण सोन लाल साहू राम लाल साहू दयाराम साहू फागुराम निर्मलकर झड़ी राम जायसवाल पोषण साहू रामजी जयसवाल मन संतोष चंद्राकर सहित अनेक किसानों ने शासन प्रशासन से मांग की है कि अभिलंब दाढ़ी पशु ओषधालय में चिकित्सक की नियुक्ति की जाए ताकि पशुओं को होने वाली बीमारियों से बचाया जा सके। सरकारी इलाज के अभाव में किसानों को जानवरों के इलाज के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ती है। आस पास करीब 25 किलोमीटर में केवल जिला मुख्यालय बेमेतरा में ही पशुओं का सरकारी इलाज हो पाता है।
किसानों द्वारा बीमार पशुओं को इलाज के लिए बेमेतरा रायपुर कवर्धा ले जाना पूरी तरह से असंभव है। इसके बावजूद सरकार ध्यान नहीं दे रही है जिसके चलते पशु औषधालय में तालाबंदी जैसी स्थिति बनी हुई है। दिखावे के नाम पर एक एक कार्यालय में कर्मचारी कहीं भृत्य तो कही चौकीदार को पशु औषधालय की जिम्मेदारी सौंप कर विभाग कुंभकरण की निद्रा में लीन है। वहीं दूसरी ओर सरकार के द्वारा पशुओं को होने वाले विभिन्न रोगों से बचाने के लिए पशु औषधालय में डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं करने से अब किसानों को भी भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। जिससे विभाग की निष्क्रियता को लेकर किसानो में जन आक्रोश व्याप्त है।


