कोरबा के बुकी दूसरे शहरों में बैठकर खेल रहे आईपीएल सट्टा
आईपीएल मैच का दौर हो और मैच के रोमांच के बीच सटोरिए अपना रोमांचक सट्टा का खेल न खेलें ऐसा शायद ही संभव है

यहां चेले-चपाटे के जरिए भाव देकर रोज हो रहे लाखों के दांव
कोरबा। आईपीएल मैच का दौर हो और मैच के रोमांच के बीच सटोरिए अपना रोमांचक सट्टा का खेल न खेलें ऐसा शायद ही संभव है। पूर्व के वर्षों में पुलिस के हाथ सट्टा के बड़े-बड़े मामले और रकम लगते रहे, लेकिन इस बार सूखा-सूखा सा है। कोरबा शहर व जिले के बुकी आईपीएल में हाथ न धो रहे हों यह भी असंभव है पर इनके गिरेबां तक आईपीएल मैच के एक महीने के दौर में पुलिस के हाथ नहीं पहुंच पाये हैं।
सट्टा और सटोरियों के मामले में कोरबा महानगरों से कम नहीं है। यहां के नामचीन सटोरियों के संरक्षण में छोटे-छोटे सटोरिए भी पनप रहे हैं। अब तो गली-मोहल्ले में भी सट्टा खेलना-खेलाना आम बात हो चला है लेकिन आईपीएल मैच के दौर में यह बड़ा रूप ले लेता है। शहर व जिले के खास खाईवाल बुकी हाईटेक होकर अपना कारोबार फैला रहे हैं।
पुष्ट सूत्रों के मुताबिक इस आईपीएल में कोरबा के बुकी यहां छोड़कर बड़े शहरों खरसिया, रायपुर, भाटापारा, इंदौर, नागपुर में बैठकर बड़े-बड़े दांव ऑन लाइन खेला रहे हैं। एक-एक बॉल पर हजारों का सट्टा लग रहा है। सट्टा के इस खेल में कभी कोई हजारों गवां रहा है तो कोई लाखों जीत रहा है।
खाईवालों के शहर से बाहर रहने पर यहां उनके चेले-चपाटे निर्देश अनुसार व मार्गदर्शन में पान ठेला से लेकर किराने की दुकान, कबाड़ की दुकान, आम बाजारों में, होटलों में बैठकर सट्टा खेलने वालों को भाव देने का काम कर रहे हैं। जीतने वाली पार्टी तक रूपए पहुंचाने का काम धड़ल्ले से बेखौफ होकर यही चेले-चपाटे दुपहिया से लेकर चार पहिया वाहन के जरिए कर रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो हर दिन एक लाख से लेकर 50 लाख, 1 करोड़ रूपए तक का वारा-न्यारा शहर व जिले में हो रहा है। यह राशि, जीतने वाले तक नगद के अलावा उसके बैंक खाता में हवाला के जरिए ट्रांसफर करा कर भी पहुंचाई जा रही है। शार्टकट तरीके से ज्यादा रूपए कमाने के फेर में युवा वर्ग भी सट्टा की चपेट में आता जा रहा है जो गंभीर चिन्ता का विषय है।
छुपे खाइवालों को तलाशने की जहमत नहीं
पुलिस का मुखबिर तंत्र और स्वयं पुलिस के संसाधन के जरिए सट्टे के छुटपुट मामले ही अब तक पकड़े जा सके हैं। मोबाइल पर वाट्सअप के जरिए खेले जाने वाले सिर्फ छोटे-छोटे सट्टा को पकड़ कर वाहवाही लूटी जा रही है जबकि बड़े सटोरिए और खाईवाल हर दिन लाखों का वारा-न्यारा कर रहे हैं, जिन तक न तो मुखबिर पहुंच पा रहे हैं और न ही पुलिस का खुफिया तंत्र। पुराने बड़े सटोरिये सक्रिय न हों, ऐसा भी संभव नहीं लेकिन किस बिल में घुसकर वे कारोबार चला रहे हैं, उस बिल को तलाशने की जहमत भी नहीं उठाई जा रही है।
ऐसा भी नहीं है कि पुलिस को पुराने सटोरियों के बारे में जानकारी न हो लेकिन उनके शहर से एकाएक गायब होने का रहस्य भी सुलझाया नहीं जा रहा।
राजनेताओं पर भी खेला जा रहा दांव
बाजार में जिस मुद्दे की ज्यादा सरगर्मी होती है, सटोरिये उस पर दांव खेलने-खिलाने से नहीं चूकते। अब तो राजनेताओं पर भी दांव खेला जाने लगा है। चुनावी साल होने के कारण खासकर छत्तीसगढ़ की राजनीति में ज्यादा ही उबाल है और इस उबाल में अपनी खिचड़ी पकाने की तैयारी सटोरियों ने कर ली है। किस विधानसभा से किसको टिकट मिलेगी, कौन कितने मतों से जीतेगा से लेकर कौन पार्टी कितनी सीट पायेगी और किसकी सरकार बनेगी व उस सरकार का मुख्यमंत्री कौन होगा? इस पर अभी से दांव लगने लगे हैं।


